बलात्कार: जमानत के लिए पहुंचे प्रज्वल रेवन्ना को कर्नाटक उच्च न्यायालय का सत्र अदालत जाने का निर्देश
राजकुमार वैभव
- 09 Jul 2025, 07:20 PM
- Updated: 07:20 PM
बेंगलुरु, नौ जुलाई (भाषा) कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को जनता दल सेक्युलर (जद-एस) के निलंबित नेता प्रज्वल रेवन्ना को उनके खिलाफ दर्ज बहुचर्चित बलात्कार मामले में जमानत के लिए सत्र न्यायालय जाने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अधीनस्थ अदालत द्वारा रेवन्ना की याचिका पर विचार करने के बाद, यदि आवश्यक हो तो वह उच्च न्यायालय में वापस आ सकते हैं।
न्यायमूर्ति एस आर कृष्ण कुमार ने कहा कि रेवन्ना के लिए यह अधिक उचित होगा कि वह उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप का अनुरोध करने से पहले अधीनस्थ अदालत में सभी उपलब्ध विकल्पों को आजमाएं।
इस मामले में जमानत पाने के लिए रेवन्ना द्वारा यह दूसरा प्रयास है।
रेवन्ना की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने दलील दी कि उच्च न्यायालय को जमानत याचिका पर सीधे सुनवाई करने का पूरा अधिकार है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि सही कानूनी रास्ता यही होगा कि पहले सत्र न्यायालय की ओर रूख किया जाए।
नवदगी के अनुरोध पर, उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ अदालत को निर्देश दिया कि वह नयी जमानत अर्जी के दाखिल होने की तारीख से 10 दिन के भीतर उस पर फैसला करे।
रेवन्ना यौन उत्पीड़न, ताक-झांक और अश्लील सामग्री के प्रसार से जुड़ी चार अलग-अलग प्राथमिकियों में मुख्य आरोपी हैं। ये मामले तब सामने आए जब कथित तौर पर यौन हिंसा को दर्शाने वाले 2,900 से ज्यादा वीडियो क्लिप ऑनलाइन और सोशल मीडिया मंचों पर व्यापक रूप से साझा किए गए।
पहली प्राथमिकी अप्रैल 2023 में रेवन्ना के पारिवारिक फार्महाउस में काम करने वाली एक घरेलू सहायिका ने दर्ज कराई थी। उसने रेवन्ना पर बार-बार बलात्कार करने और मुंह खोलने पर इस कृत्य का वीडियो क्लिप लीक करने की धमकी देने का आरोप लगाया था। उसकी शिकायत के अनुसार, यह उत्पीड़न 2021 में शुरू हुआ था।
बेंगलुरु की निचली अदालत ने पहले ही रेवन्ना के खिलाफ कई आरोप तय कर दिए हैं, जिनमें बलात्कार, आपराधिक धमकी, ताक-झांक और बिना सहमति के निजी तस्वीरें जारी करना आदि शामिल हैं।
रेवन्ना की पिछली ज़मानत याचिका अक्टूबर 2023 में उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी। इसके बाद, उच्चतम न्यायालय ने भी उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया।
मार्च 2024 में, उन्होंने ‘परिस्थितियों में बदलाव’ का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय में एक नयी जमानत याचिका दायर की।
उनकी कानूनी टीम ने तर्क दिया कि मुकदमा शुरू करने में लंबे समय तक देरी के परिणामस्वरूप संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।
जमानत याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने दलील दी कि मुकदमे में किसी भी प्रकार की देरी रेवन्ना और उनके परिवार के कारण हुई है, अभियोजन पक्ष के कारण नहीं। राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व विशेष लोक अभियोजक वरिष्ठ अधिवक्ता प्रोफेसर रवि वर्मा कुमार और बी एन जगदीश ने किया।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, उच्च न्यायालय ने इस समय जमानत याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और रेवन्ना को सत्र न्यायालय में इसे दायर करने का निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी कानूनी तर्क खुले हैं और उचित मंच पर उठाए जा सकते हैं।
अब इस मामले का फैसला सत्र न्यायालय द्वारा किया जाएगा, जिसे आवेदन पर शीघ्र विचार करने के लिए कहा गया है।
भाषा
राजकुमार