न्यायालय ने ईडी की ओर से वकीलों को तलब किए जाने के मामले पर स्वत: संज्ञान लिया
प्रशांत वैभव
- 09 Jul 2025, 08:13 PM
- Updated: 08:13 PM
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक मामला शुरू किया है, जिसमें जांच एजेंसियों द्वारा उन वकीलों को समन भेजे जाने के मुद्दे की जांच की जाएगी, जो किसी मामले में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं या कानूनी राय देते हैं। न्यायालय यह तय करना चाहता है कि क्या ऐसे वकीलों को नोटिस देना विधिसम्मत है।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन तथा न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद अदालत पुनः खुलने पर 14 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी।
न्यायालय ने यह कदम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से वरिष्ठ वकीलों-अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल- को तलब किये जाने के बाद उठाया गया है। हालांकि, बाद में जांच एजेंसी ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे धन शोधन मामलों की जांच के दौरान आरोपी व्यक्ति के वकील को समन जारी न करें।
ईडी ने 20 जून को अपने जांच अधिकारियों को जारी निर्देश में कहा था कि किसी वकील को एजेंसी के निदेशक की “अनुमति” के बिना तलब न किया जाए।
धन शोधन अपराधों से निपटने के लिए कार्यरत केंद्रीय जांच एजेंसी ने अपने क्षेत्रीय संरचनाओं के मार्गदर्शन के लिए परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), 2023 की धारा 132 का उल्लंघन करते हुए किसी भी वकील को “कोई समन” जारी नहीं किया जाना चाहिए।
एजेंसी ने कहा, “इसके अलावा, यदि बीएसए, 2023 की धारा 132 के प्रावधानों के तहत किसी भी समन को जारी करने की आवश्यकता है, तो इसे केवल ईडी के निदेशक की पूर्व स्वीकृति से ही जारी किया जाएगा।”
वकीलों ने रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सलूजा को पेश की गई कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना पर केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड को कानूनी सलाह दी थी।
उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) और उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) ने इस समन की निंदा करते हुए इसे विधिक पेशे की नींव पर हमला करने वाली “चिंताजनक प्रवृत्ति” बताया था।
बार निकायों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश से मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया था।
न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की एक पीठ ने 25 जून को कहा था कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा था कि जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकील या अधिवक्ताओं को सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए भी “प्रत्यक्ष खतरा” पैदा करेगा।
पीठ ने मामले में कुछ प्रश्न भी खड़े किये।
पीठ ने पूछा, ‘‘कुछ विचारणीय प्रश्नों में से एक यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्षकार को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा होता है, तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?’’
एक और प्रश्न पूछते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास ऐसा मामला है जिसमें व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी क्या उन्हें सीधे समन जारी करने की अनुमति दी जानी चाहिए या उन असाधारण परिस्थितियों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?’’
यह आदेश तब आया जब शीर्ष अदालत गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 12 जून को दिये उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
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