दिल्ली दंगों की मंशा विश्व स्तर पर देश को बदनाम करना था: पुलिस ने अदालत में कहा
देवेंद्र माधव
- 09 Jul 2025, 08:30 PM
- Updated: 08:30 PM
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) दिल्ली पुलिस ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी कि राजधानी में फरवरी 2020 के दंगों की मंशा शरजील इमाम और उमर खालिद समेत आरोपी व्यक्तियों द्वारा एक सुनियोजित आपराधिक साजिश के जरिये विश्व स्तर पर राष्ट्र को बदनाम करना था।
दिल्ली पुलिस ने आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध किया। उसने न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की पीठ के समक्ष दलील दी कि यह कोई स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था, बल्कि देश की राजधानी में एक सुनियोजित कृत्य था।
पीठ ने पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और आरोपियों के वकील की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
मेहता ने कहा, ‘‘यदि आप अपने देश के विरुद्ध कुछ कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि आप तब तक जेल में रहें जब तक कि आप बरी नहीं हो जाते या दोषी न ठहरा दिये जाते। देश की राजधानी में दंगा हुआ जिसमें 100 पुलिसकर्मी और 41 अन्य आम लोग घायल हो गए और एक पुलिसकर्मी की जान चली गई।’’
इमाम, खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा की याचिकाओं पर निर्णय सुनाया जायेगा।
आरोपी शादाब अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई बृहस्पतिवार को जारी रहेगी।
मेहता ने आरोपी की लंबी अवधि तक जेल में रहने की दलील का विरोध करते हुए कहा कि केवल लंबे समय तक जेल में रहना जमानत देने का आधार नहीं है।
उन्होंने षड्यंत्र मामले में दिल्ली पुलिस की जांच को बेहतरीन जांचों में से एक बताया, जहां अभियोजन पक्ष ने मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत 58 बयान दर्ज कराए।
उन्होंने कहा, ‘‘यह दंगे के किसी अन्य सामान्य मामले में जमानत का मामला नहीं है। हम एक सुनियोजित, सोची-समझी और संगठित आपराधिक साजिश से निपट रहे हैं, जो देश की राजधानी में एक विशेष दिन और समय को लक्ष्य बनाकर शुरू होती है।’’
मेहता ने कहा, ‘‘उनका एक मंसूबा दंगों और आगजनी के लिए एक विशेष दिन चुनकर हमारे देश को विश्व स्तर पर बदनाम करना था। मैं इस अदालत से अनुरोध करता हूं कि इसे देश के किसी अन्य सामान्य दंगा मामले की तरह न देखा जाए।’’
उन्होंने अदालत से अपराध की गंभीरता और दंगों के पीछे की मंशा को ध्यान में रखने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा, ‘‘इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि हमारे देश के इतिहास में हमने देखा है कि दंगे आमतौर पर स्वतःस्फूर्त होते हैं, किसी अप्रत्याशित घटना के कारण और आम लोग अचानक किसी सामान्य उकसावे के कारण दंगों में शामिल होना शुरू कर देते हैं।’’
मेहता ने कहा कि अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, इमाम और खालिद ने ‘‘जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को तोड़ा’’ और ‘‘जेएनयू के मुस्लिम छात्र’’ नाम से एक सांप्रदायिक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया। उन्होंने कहा कि छात्रों का कोई आंदोलन किसी सांप्रदायिक समूह के अस्तित्व में आने से शुरू नहीं होता।
असम पर शरजील इमाम के कथित भाषण का जिक्र करते हुए मेहता ने कहा, ‘‘यह धार्मिक आधार पर देश को स्थायी रूप से विभाजित कर रहा है।’’
मेहता ने कहा, ‘‘उन्होंने (याचिकाकर्ताओं ने) ऐसा विमर्श पेश किया कि बुद्धिजीवी जेल में हैं। उनका इरादा देश को धार्मिक आधार पर बांटना था। यह कोई स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं है... उनका इरादा वैश्विक स्तर पर राष्ट्र को शर्मिंदा करना था। चौबीस फरवरी, 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति का दौरा होना था। शरजील इमाम ने इससे चार सप्ताह पहले एक भाषण दिया था जिसमें साजिश को अंजाम देने की समय-सीमा साफ तौर पर बताई गई थी। उसने कहा था कि हमारे पास चार सप्ताह हैं...।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वह (इमाम) अमेरिकी राष्ट्रपति के आगमन की संभावित तिथि की ओर इशारा कर रहा था। कार्रवाई 23 जनवरी, 2020 से शुरू होती है। राष्ट्रीय राजधानी में कुछ ऐसा करके पूरे देश को शर्मसार करने का स्पष्ट इरादा था, जहां एक देश के राष्ट्रपति हमारे देश का दौरा करने वाले थे।’’
मेहता ने कहा कि इसका उद्देश्य वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित करना तथा देश को ‘‘बदनाम और शर्मिंदा’’ करना था।
इमाम के वकील ने पहले दलील दी थी कि इमाम के भाषणों और व्हाट्सऐप चैट में कभी कोई अशांति फैलाये जाने का आह्वान नहीं किया गया था।
आरोपियों के खिलाफ फरवरी 2020 के दंगों के कथित तौर पर ‘‘मास्टरमाइंड’’ होने के लिए कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी।
भाषा
देवेंद्र