एनबीएफसी कर्ज देने के लिए आक्रामक रुख नहीं अपनायें, ब्याज दर वाजिब रखें: सीतारमण
रमण अजय
- 09 Jul 2025, 09:59 PM
- Updated: 09:59 PM
(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से ग्राहकों को कर्ज देने के लिए आक्रामक रूख नहीं अपनाने और ब्याज को वाजिब स्तर पर रखने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी कहा कि वित्तीय समावेश के नाम पर ‘वित्तीय शोषण’ नहीं किया जा सकता।
उन्होंने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) से भारतीय रिजर्व बैंक के ऋण वसूली मानदंडों का कड़ाई से पालन करने का भी आग्रह किया।
सीतारमण ने यहां एनबीएफसी पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि एनबीएफसी और बैंकों के बीच विशेष रूप से प्राथमिकता वाले क्षेत्र को कर्ज देने के लिए मिलकर काम करने की व्यवस्था के जरिये मजबूत सहयोग होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘वित्तीय समावेश के नाम पर वित्तीय शोषण नहीं किया जा सकता।’’ कर्ज ग्राहकों की वास्तविक जरूरतों और उसे लौटाने की क्षमता पर आधारित होना चाहिए।’’
वित्त मंत्री ने कहा कि कर्ज देने के लिए आक्रामक तरीके से विपणन नहीं किया जाना चाहिए या उन्हें व्यक्तियों पर थोपा नहीं जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वसूली प्रक्रिया निष्पक्ष, सहानुभूतिपूर्ण और सम्मानजनक तरीके से होनी चाहिए और इसे आरबीआई के नियमों के अनुरूप होना चाहिए।
उन्होंने एनबीएफसी से कहा, ‘‘...कर्ज वसूली आपके कामकाज का हिस्सा है, लेकिन संवेदनहीन होना आपके काम का हिस्सा नहीं है... यह बिल्कुल साफ होना चाहिए कि वृद्धि ग्राहकों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए।’’
देश में एनबीएफसी की संख्या लगभग 9,000 है।
वित्त मंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे एनबीएफसी मॉडल परिपक्व होता है, जोखिम प्रबंधन पर ध्यान बढ़ाना चाहिए।
सीतारमण ने एनबीएफसी से कहा कि जोखिम उठाना सुनियोजित और आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए और संबंधित संस्था की जोखिम सहने की क्षमता से अधिक कभी नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नकदी और ऋण जोखिमों का कड़ाई से मूल्यांकन और प्रबंधन किया जाना चाहिए। मजबूत आंतरिक नियंत्रण व्यवस्था से परिसंपत्ति-देनदारी के बीच अंतर, वित्तपोषण स्रोतों की प्रकृति और अवधि की निगरानी सुनिश्चित होनी चाहिए।
वित्त मंत्री ने कहा कि एक टिकाऊ कारोबारी मॉडल इस क्षेत्र के विकास की आधारशिला होना चाहिए।
पिछले चार वर्षों में एनबीएफसी का कर्ज बही-खाता 24 लाख करोड़ रुपये से दोगुना होकर मार्च, 2025 तक 48 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा वितरित ऋण की कुल मात्रा में उनकी हिस्सेदारी लगभग 24 प्रतिशत है और लक्ष्य 50 प्रतिशत तक पहुंचने का होना चाहिए।
सीतारमण ने कहा, ‘‘एनबीएफसी अब ‘शैडो बैंक’ नहीं हैं। उनका मजबूत विनियमन और निगरानी वित्तीय प्रणाली और अर्थव्यवस्था में उनके महत्व का सबसे अच्छा प्रमाण है।’’
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल रही सीतारमण ने कहा कि जैसे-जैसे भारत आगे बढ़ेगा, भविष्य की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में एनबीएफसी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसमें हरित पहल, किफायती आवास और एमएसएमई जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि एनबीएफसी की पहुंच उनकी सबसे बड़ी ताकत है। ‘‘2047 तक, एनबीएफसी ऋण का कम-से-कम 50 प्रतिशत उच्च-वृद्धि और उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों के पास होना चाहिए।’’
वित्त मंत्री ने कहा कि बैंक ऋण पर जोखिम भारांश को फिर से लागू करने और वित्तीय स्थितियों में ढील जैसे हाल के नियामक उपायों से ऋण संभावनाओं में और सुधार होने की उम्मीद है। इससे इस क्षेत्र के लिए कुल मिलाकर वित्तपोषण परिवेश मजबूत होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘आरबीआई ने हाल ही में इस क्षेत्र के लिए कोष की लागत कम करने के उपाय किये हैं। इसके साथ मैं एनबीएफसी से इस कमी का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाने का आग्रह करती हूं।’’
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार एक उत्तरदायी नीतिगत माहौल बनाकर एनबीएफसी क्षेत्र का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
कोविड महामारी के बाद से एनबीएफसी की परिसंपत्ति गुणवत्ता में लगातार सुधार हुआ है। इस क्षेत्र का सकल एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्त) मार्च, 2025 में तीन प्रतिशत पर रहा जो मार्च, 2021 में 6.4 प्रतिशत पर पहुंच गया था।
इसके साथ, एनबीएफसी का परिसंपत्तियों पर प्रतिफल मार्च, 2025 में 2.4 प्रतिशत हो गया है, जो मार्च, 2021 में 1.11 प्रतिशत था।
भाषा रमण