कोलकाता नगर निगम ने मासिक सत्र के दौरान बांग्ला भाषा अनिवार्य की
सुरभि पवनेश
- 29 Jul 2025, 10:22 PM
- Updated: 10:22 PM
कोलकाता, 29 जुलाई (भाषा) कोलकाता नगर निगम (केएमसी) की अध्यक्ष माला रॉय ने सभी पार्षदों को मासिक सत्रों के दौरान केवल बांग्ला भाषा में ही प्रश्न पूछने का आदेश दिया है, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित राज्यों में तृणमूल कांग्रेस के ‘‘बंगाली पहचान की रक्षा और भाषा उपेक्षा के खिलाफ’’ अभियान की याद दिलाता है।
यह आदेश जुलाई सत्र में तृणमूल कांग्रेस के एक पार्षद द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न पूछे जाने के कुछ दिनों बाद आया है, जिसके बाद रॉय ने तुरंत महापौर फिरहाद हकीम को बांग्ला में जवाब देने का निर्देश दिया। इस कदम को एक व्यापक राजनीतिक और सांस्कृतिक दावे का संकेत माना जा रहा है।
हकीम के जवाब पूरा करने के कुछ ही देर बाद रॉय ने सदन में घोषणा की, ‘‘अब से, मासिक सत्रों के दौरान सभी कार्यवाही बांग्ला में ही होनी चाहिए।’’
बाद में, उन्होंने ‘मेयर-इन-काउंसिल’ के सदस्यों और पार्षदों को एक आधिकारिक संदेश के माध्यम से इस निर्देश को दोहराया और अपने कार्यालय को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि कार्यवाही के दस्तावेजीकरण सहित सभी आंतरिक संचार बांग्ला में किए जाएं।
रॉय ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘भाजपा शासित राज्यों में बांग्ला भाषा में बात करना अपराध बन गया है। बंगालियों को सिर्फ अपनी मातृभाषा में बात करने के लिए बांग्लादेशी करार दिया जा रहा है। यह भाषाई उत्पीड़न से कम नहीं है। हमें पूरी ताकत से इसका विरोध करना चाहिए।’’
उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले ही सांसदों को संसद सत्र के दौरान बांग्ला में बोलने का निर्देश दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर सांसद बांग्ला में बोल सकते हैं, बांग्ला में सवाल पूछ सकते हैं, तो केएमसी सत्र के दौरान पार्षद बांग्ला में क्यों नहीं बोल सकते?’’
यह निर्देश तृणमूल कांग्रेस के उस अभियान का हिस्सा है जो केंद्र सरकार द्वारा मतदाता सूची में संशोधन और असम, कर्नाटक तथा दिल्ली जैसे राज्यों में बांग्ला भाषी प्रवासियों को कथित तौर पर निशाना बनाकर ‘‘पिछले दरवाजे से एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजी)’’ लागू करने के प्रयास के खिलाफ है।
ममता बनर्जी ने सोमवार को बोलपुर से ‘भाषा आंदोलन’ की शुरुआत करते हुए संकल्प लिया कि ‘‘वह अपना जीवन त्याग देंगी लेकिर अपनी भाषा नहीं’’। इससे बंगाली अस्मिता पर आधारित पहचान की राजनीति की एक नयी लहर शुरू हो गई।
केएमसी के इस निर्देश का तात्कालिक कारण पिछले शुक्रवार के सत्र के दौरान एक तृणमूल कांग्रेस पार्षद द्वारा अपना प्रश्न अंग्रेजी में प्रस्तुत करने का निर्णय था।
उन्होंने कहा, ‘‘अब तक अंग्रेजी के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं थी। लेकिन अब स्पष्ट निर्देश जारी होने के बाद, मैं भविष्य में सभी प्रश्न बांग्ला में प्रस्तुत करूंगी।’’
तृणमूल कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह कदम भाजपा के नेतृत्व वाले नगर निकायों और संस्थानों से तीव्र विरोध प्रकट करना है, क्योंकि उनका उनका आरोप है कि क्षेत्रीय भाषाओं की कीमत पर इन संस्थानों में हिंदी थोपी जा रही है।
हालांकि, इस निर्देश पर विपक्षी पार्षदों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
वार्ड 50 से भाजपा पार्षद सजल घोष ने पूछा, ‘‘इस ‘केवल बांग्ला’ आदेश को सिर्फ मासिक सत्रों तक ही सीमित क्यों रखा गया है? कोलकाता नगर निगम की इमारतों पर उर्दू साइनेज का क्या? केएमसी के आधिकारिक लेटरहेड पर अब भी उर्दू क्यों लिखी है?’’
घोष ने कहा, ‘‘अध्यक्ष ने महापौर के पिछले बयान पर कुछ क्यों नहीं कहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें उस दिन खुशी होगी जब कोलकाता की 50 प्रतिशत आबादी उर्दू बोलने लगेगी?’’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस पार्षदों ने बांग्ला भाषा के इस्तेमाल पर कोई आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन उन्होंने नीति में एकरूपता की मांग की है और तृणमूल कांग्रेस पर चुनिंदा सांस्कृतिक दिखावे के जरिए लोगों को खुश करने का आरोप लगाया है।
इस बीच, तृणमूल कांग्रेस राज्य के मतदाताओं, खासकर राज्य के अनुमानित 70 लाख प्रवासी मजदूरों की भावनाओं को भांपते हुए अपनी भाषाई दावेदारी को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ दिख रही है। राज्य से कई प्रवासी मजदूरों को अपनी भाषा या पहचान को लेकर दूसरे राज्यों में भेदभाव या यहां तक कि हिंसा का सामना करना पड़ा है।
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सुरभि