मजीठिया की गिरफ़्तारी और पंजाब की बदलती राजनीतिक ज़मीन
DailyWorld
- 28 Jun 2025, 07:06 PM
- Updated: 07:06 PM
मनीष तिवारी | चंडीगढ़
वरिष्ठ अकाली नेता और पूर्व पंजाब मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर पंजाब की राजनीति को उबाल पर ला दिया है। यह मामला सिर्फ़ कथित ड्रग सिंडिकेट्स के खिलाफ कार्रवाई या मजीठिया की व्यक्तिगत संलिप्तता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पंजाब की राजनीतिक ज़मीन में आ रहे एक बड़े और गहरे बदलाव का संकेत है, जो 2027 के विधानसभा चुनावों तक राजनीतिक बहस का केंद्र बना रहेगा।
कई महीनों से राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा थी कि भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार मजीठिया पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है। मजीठिया पर ड्रग माफिया से नजदीकी और संरक्षण देने के आरोप वर्षों से लगते रहे हैं। ये आरोप सबसे पहले 2010 के दशक की शुरुआत में सामने आए, जब एक पूर्व डीएसपी और कुख्यात ड्रग तस्कर जगदीश भोला ने मजीठिया का नाम लिया था, जब वह अकाली-बीजेपी सरकार में मंत्री थे। पंजाब विजिलेंस ब्यूरो द्वारा उनके खिलाफ अवैध संपत्ति (Disproportionate Assets) मामले में की गई गिरफ़्तारी की आशंका पहले से थी, लेकिन इस गिरफ़्तारी से राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और समीकरण बदले हैं।
वर्षों बाद पहली बार बीजेपी और कांग्रेस के कुछ नेता—जैसे सुनील जाखड़ और प्रताप सिंह बाजवा—ने मजीठिया के समर्थन में नरम रुख अपनाया है। यह रुख मजीठिया के लिए कम और राजनीति के लिए ज़्यादा है। बीजेपी के लिए मजीठिया एक संभावित राजनीतिक धुरी हो सकते हैं। सुखदेव सिंह ढींडसा, बीबी जगीर कौर और सिकंदर सिंह मलूका जैसे अकाली दल के टूटे हुए नेताओं को परखने के बाद, अब बीजेपी को शायद यह एहसास हो गया है कि शिरोमणि अकाली दल को तोड़ना व्यवहारिक नहीं है। इसके बजाय, राजनीति की ज़रूरत मेल-मिलाप की तरफ इशारा करती है।
इसी संदर्भ में मजीठिया की गिरफ़्तारी को एक अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी इसे पंजाब के ड्रग नेटवर्क पर की गई सख्त कार्रवाई के रूप में प्रचारित करेगी—यह संदेश देते हुए कि बड़े से बड़ी “मछली” भी बख्शा नहीं जाएगा। वहीं अकाली दल इस गिरफ़्तारी को ‘राजनीतिक प्रताड़ना’ के रूप में दिखाकर सहानुभूति की राजनीति करेगा।
कानूनी पहलुओं से हटकर बात करें तो, पंजाब दिल्ली नहीं है—जहां लोग राजनीति के प्रति उदासीन रहते हैं। पंजाब में लोग अपने नेताओं से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, याद रखते हैं और प्रतिक्रिया देते हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह के सक्रिय राजनीति से संन्यास और प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद, पारंपरिक दलों में नेतृत्व का बड़ा शून्य पैदा हुआ है। इस खाली जगह को भरने की जद्दोजहद में मजीठिया का राजनीतिक भविष्य—चाहे वह पुनर्जीवन हो या पतन—एक निर्णायक भूमिका निभाएगा।
दूसरी ओर, बीजेपी पंजाब में वही अवसर देख रही है जैसा उसने हाल में जम्मू-कश्मीर में देखा। पंजाब भी अंतरराष्ट्रीय सीमा वाला राज्य है, जहां बीजेपी राष्ट्रवादी राजनीति को धार देने की कोशिश कर रही है। पार्टी आम आदमी पार्टी को ‘आतंकवाद के प्रति नरम’ और ‘अनुभवहीन’ बताकर घेरना चाहती है। वैचारिक और राजनीतिक रूप से बीजेपी न तो अरविंद केजरीवाल की आप से और न ही राहुल गांधी की कांग्रेस से पंजाब में गठबंधन कर सकती है। ऐसे में उसका एकमात्र संभावित सहयोगी अकाली दल ही बचता है—जो चोटिल ज़रूर है, लेकिन टूटा नहीं।
यही वजह है कि पिछले कुछ महीनों में सुखबीर सिंह बादल और बीजेपी नेताओं के बीच संवाद की भाषा में नरमी आई है। हालांकि बादल अब भी विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहे हैं, लेकिन पंजाब के मतदाता दिल से माफ करने वाले हैं। इतिहास गवाह है कि अगर कोई नेता विनम्रता और स्पष्ट बदलाव के संकेत देता है, तो लोग उसे दूसरा मौका देने में पीछे नहीं रहते।
हालांकि, आम आदमी पार्टी भी अपने राजनीतिक तीरों से खाली नहीं है। भगवंत मान बार-बार ड्रग माफियाओं के खिलाफ अपनी लड़ाई की बात करते हैं। मजीठिया की गिरफ़्तारी उनके लिए एक हाई-वोल्टेज नैरेटिव है। 2027 के चुनाव में आप यह कहकर वोट मांगेगी कि उन्होंने वह किया जो कांग्रेस और अकाली सरकारें करने से कतराती रहीं—प्रभावशाली मगर भ्रष्ट चेहरों को कानून के कटघरे में खड़ा किया। मतदाता इस पर विश्वास करते हैं या इसे राजनीतिक नौटंकी मानते हैं, यह वक्त तय करेगा।
बड़ी तस्वीर में देखें तो पंजाब एक बार फिर चौराहे पर खड़ा है। पुराने विरासत और आज के दौर के नेताओं के अप्रमाणित वादों के बीच राज्य को अब तय करना है कि वह निरंतरता चाहता है या बदलाव, बदला या सुधार। लेकिन एक बात साफ है—मजीठिया की गिरफ़्तारी केवल एक व्यक्ति या पार्टी की नियति नहीं तय करेगी, बल्कि पंजाब की राजनीति की दिशा को वर्षों तक प्रभावित करेगी।
जैसे-जैसे 2027 नज़दीक आएगा, राज्य में और गिरफ्तारियां, जांच और गुप्त राजनीतिक गठजोड़ देखने को मिलेंगे। लेकिन अंततः फैसला पंजाब की जनता करेगी—जो दिल से सोचती है, राजनीति को समझती है और तय करती है कि किसका नैरेटिव टिकेगा और किसकी सच्चाई चलेगी।