बीएपीएस जोहानिसबर्ग होगा दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा मंदिर, 2027 में होगा तैयार
मोना मोना मनीषा
- 04 Mar 2025, 11:03 AM
- Updated: 11:03 AM
(मोना पार्थसारथी)
जोहानिसबर्ग, चार मार्च (भाषा) अबूधाबी के बाद अब जोहानिसबर्ग के सबसे व्यस्त और खूबसूरत लैनसेरिया कॉरिडोर में 37,000 वर्ग मीटर में फैले बीएपीएस मंदिर और सांस्कृतिक परिसर के निर्माण के पहले चरण का काम पूरा हो चुका है और अगले तीन साल में तैयार होने वाला यह दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर होगा ।
पिछले साल फरवरी में अबूधाबी में मध्य पूर्व के पहले अलंकृत नक्काशीदार हिंदू मंदिर के उद्घाटन के बाद बोचासनवासी अक्षर पुरूषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) ने दक्षिण अफ्रीका में इस मंदिर पर युद्धस्तर पर काम शुरू किया ।
पिछले महीने मंदिर के 33,000 वर्ग मीटर में फैले सांस्कृतिक परिसर का उद्घाटन मौजूदा गुरू महंत स्वामी महाराज की मौजूदगी में हुआ और अब दूसरे चरण में 2,500 वर्ग मीटर के परिसर वाले पारंपरिक मंदिर पर काम शुरू होगा । खूबसूरत लैनसेरिया कॉरिडोर में बन रहे इस मंदिर को बहुसांस्कृतिक विनिमय, विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और दक्षिण अफ्रीका में बीएपीएस के मानवीय कार्यों का केंद्र बनाया जायेगा ।
बीएपीएस दक्षिण अफ्रीका के प्रवक्ता हेमांग देसाई ने भाषा से कहा ,‘‘ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछली दक्षिण अफ्रीका यात्रा में इस मंदिर की परियोजना का अनावरण किया था । हमें यकीन है कि इस साल दक्षिण अफ्रीका में होने वाले जी20 (22 और 23 नवंबर) सम्मेलन के दौरान वह फिर यहां आयेंगे ।’’
बीएपीएस हिंदू मंदिर और सांस्कृतिक परिसर दक्षिण अफ्रीकी भारतीय समुदाय के लचीलेपन और समर्पण का प्रमाण होगा जिसने गिरमिटिया श्रम और रंगभेद की प्रतिकूलताओं का सामना किया है। यह दक्षिण अफ्रीका में उनके स्थायी योगदान की बानगी देगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर होगा।
देसाई ने कहा ,‘‘ कलात्मक दृष्टि से अबूधाबी मंदिर में हमने स्थानीय संस्कृति और इतिहास से काफी प्रेरणा ली । इसी तरह अफ्रीका की कला और संस्कृति के साथ हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत की झलक यहां साथ साथ मिलेगी।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ यह जोहानिसबर्ग में पर्यटन की दृष्टि से भी प्रमुख आकर्षण होगा जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा । अगर कोरोना की रूकावट नहीं आई होती तो हम बहुत पहले ही यह मंदिर बना लेते ।’’
इस परिसर के निर्माण में पर्यावरण अनुकूलता का पूरा ध्यान रखा जा रहा है और 500 से अधिक वृक्ष लगाकर जल दक्षता, सौर तत्परता और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है । सौंदर्यीकरण का अधिकतर सामान भारत से मंगवाया गया है ।
बीएपीएस दक्षिण अफ्रीका की स्थापना 1974 में रंगभेद के दौर में 30 लोगों ने मिलकर की थी । अब यहां संस्था के सात मंदिर, आठ कम्युनिटी सेंटर और 2000 से अधिक सदस्य हैं ।
ट्रस्टी बोर्ड के सदस्य मृणाल भगवान ने कहा ,‘‘ दिवंगत प्रमुख स्वामीजी महाराज की प्रेरणा से 2012 में यह भूखंड खरीदा गया और हमारे मौजूदा गुरू महंत स्वामीजी महाराज ने हमें बीएपीएस हवेली, सांस्कृतिक केंद्र और मंदिर बनाने की प्रेरणा दी जिसके लिये भूमि पूजन 2017 में किया गया ।’’
उन्होंने बताया कि 14.5 एकड़ में शहर के सबसे खूबसूरत इलाके में बन रहे इस मंदिर में बड़ा सभा हॉल, बैंक्वेट हॉल, सात्विक भोजन के लिये शायोना रेस्तरां, मंदिर हॉल और विभिन्न गतिविधियों के लिये 20 कमरे होंगे ।
उन्होंने कहा ,‘‘ 33000 वर्गमीटर में फैली हवेली का काम पूरा हो चुका है । मंदिर की नींव का काम हो गया है और तीन साल में मंदिर तैयार हो जायेगा । हमने भारत में जयपुर, तिरूपति समेत विभिन्न शहरों से भगवान स्वामी नारायण, उनके शिष्य अक्षर पुरूषोत्तम जी, राधाकृष्ण, सीताराम, शंकर पार्वती, गणपति जी, तिरूपति बालाजी, हनुमानजी, कार्तिक मुरूगन स्वामी की मूर्तियां लाकर प्राण प्रतिष्ठा कर दी है ।’’
उन्होंने कहा कि मंदिर तैयार होने पर इन मूर्तियों की वहां पुन:स्थापना की जायेगी । उनके अनुसार, जल्दी ही योग, विभिन्न भारतीय भाषाओं, संगीत, नृत्य की कक्षायें शुरू की जायेंगी । ‘‘हमें प्रति सप्ताह यहां दस हजार से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है ।’’
मंदिर की लागत के बारे में उन्होंने बताया ,‘‘ यह कहना मुश्किल है क्योंकि अधिकतर पैसा दान से आया है हालांकि यहां सरकार का रवैया भी कर और वैट को लेकर काफी सकारात्मक रहा है ।’’
मंदिर का एक मुख्य आकर्षण सात्विक रसोई है जहां मोहन थाल, लड्डू साबूदाना वड़ा, खीर और एकादशी या उत्सव पर विशेष पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं।
बीएपीएस स्वयंसेवक मिनिषा पटेल ने कहा ,‘‘ हमारे पास महिला स्वयंसेवकों की टीम है जो यह सब पकाती है । हमारे किचन में कोल्ड स्टोरेज और अत्याधुनिक मशीनें हैं । बड़े बड़े बर्तन भारत से मंगवाये गए हैं जिनमें त्योहारों पर हजारों श्रृद्धालुओं के लिये खाना बनेगा । फिलहाल यहां आने वाले हर भक्त को हम दिन में तीन बार नि:शुल्क भोजन देते हैं ।’’
पटेल ने यह भी बताया कि कैसे प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले मंदिर की रंगाई पुताई और नक्काशीदार स्तंभों की सैंडिंग के लिये महिला स्वयंसेवकों के ‘पिंक हेलमेट ग्रुप’ ने दिन रात एक कर दिये थे ।
उन्होंने कहा ,‘‘ हमें दो फरवरी को हुए समारोह से पहले पूरे मंदिर परिसर की रंगाई पुताई करनी थी । प्रबंधन टीम ने महिलाओं से मदद मांगी । हर रोज करीब 200 महिलायें दिन रात सारे काम छोड़कर इस मिशन में लग गईं । हमने दीवारों को रेतना, प्राइमर लगाना और पुताई करना सीखा और परिसर में पूरा पुताई का काम ‘पिंक हेलमेट’ समूह ने किया जिससे लाखों रैंड भी बच गए ।’’
मंदिर के लोगो में इसके गुंबद को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय फूल प्रोटिया के मध्य से उभरते हुए दिखाया गया है। कठोर परिस्थितियों में खिलने वाला प्रोटिया साहस और लचीलेपन का एक शक्तिशाली प्रतीक है, बहुत कुछ इस देश की ही तरह ।
भाषा मोना मोना