कोल्हापुरी चप्पल विवाद : अदालत ने प्राडा के खिलाफ जनहित याचिका खारिज की
वैभव नरेश
- 16 Jul 2025, 02:04 PM
- Updated: 02:04 PM
मुंबई, 16 जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को इतालवी फैशन हाउस प्राडा के खिलाफ प्रसिद्ध कोल्हापुरी चप्पलों के कथित अनधिकृत इस्तेमाल के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले छह वकीलों के ‘अधिकार क्षेत्र’ और वैधानिक अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे पीड़ित व्यक्ति या कोल्हापुरी चप्पल के पंजीकृत प्रोपराइटर या स्वामी नहीं हैं।
अदालत ने पूछा, ‘‘आप इस कोल्हापुरी चप्पल के मालिक नहीं हैं। आपका अधिकार क्षेत्र क्या है और जनहित क्या है? कोई भी पीड़ित व्यक्ति मुकदमा दायर कर सकता है। इसमें जनहित क्या है?’’
याचिका में कहा गया था कि कोल्हापुरी चप्पल को वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम के तहत भौगोलिक संकेत (जीआई) के रूप में संरक्षित किया गया है।
इसके बाद पीठ ने कहा कि जीआई टैग के पंजीकृत स्वामी अदालत में आकर अपनी कार्रवाई के बारे में बता सकते हैं।
अदालत ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह बाद में विस्तृत आदेश पारित करेगी।
प्राडा ने अपने वसंत/ग्रीष्म संग्रह में, अपने ‘टो-रिंग सैंडल’ प्रदर्शित किए, जिनके बारे में याचिका में कहा गया है कि वे कोल्हापुरी चप्पलों से मिलते-जुलते हैं। इन सैंडल की कीमत एक लाख रुपये प्रति जोड़ी है।
पीठ ने यह भी कहा कि प्रभावित पक्ष चाहे तो वाद दायर कर सकता है।
प्राडा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रवि कदम ने दलील दी कि जीआई टैग एक ट्रेडमार्क है। उन्होंने वकीलों द्वारा दायर जनहित याचिका का विरोध किया।
इस महीने की शुरुआत में दायर की गई याचिका में भारतीय कारीगरों को उनके डिजाइन की कथित नकल के लिए मुआवजा दिलाने का अनुरोध किया गया था।
पुणे के छह वकीलों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘कोल्हापुरी चप्पल महाराष्ट्र का सांस्कृतिक प्रतीक है।’’
यह याचिका प्राडा समूह और महाराष्ट्र सरकार के विभिन्न अधिकारियों के खिलाफ दायर की गई थी।
इसमें प्राडा को बिना अनुमति के अपने ‘टो-रिंग सैंडल’ का व्यावसायीकरण और उपयोग करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई थी, और लक्जरी फैशन समूह को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और कोल्हापुरी चप्पलों के उपयोग को स्वीकार करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया था, ‘‘अदालत प्राडा के अनधिकृत जीआई उपयोग के खिलाफ स्थायी निषेधाज्ञा का आदेश भी दे और कारीगर समुदाय को प्रतिष्ठा और आर्थिक नुकसान की भरपाई करे।’’
इसमें जीआई-पंजीकृत मालिकों और कारीगर समुदाय के अधिकारों के उल्लंघन के लिए प्राडा के खिलाफ जांच की भी मांग की गई थी।
अंतरिम आदेश के माध्यम से, जनहित याचिका में कारीगर समुदाय को क्षतिपूर्ति और मुआवजा दिए जाने की मांग की गई थी, जिसमें प्राडा को उनके सैंडल के विपणन, बिक्री या निर्यात पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश देने की मांग भी शामिल है।
इसमें दावा किया गया था कि प्राडा ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि उसका संग्रह भारतीय कारीगरों से प्रेरित है, लेकिन उसने अभी तक मूल कारीगरों से कोई औपचारिक माफी नहीं मांगी है या उन्हें मुआवजा नहीं दिया है।
जनहित याचिका में कहा गया है, ‘‘निजी तौर पर स्वीकार करना आलोचना को टालने का एक सतही प्रयास मात्र प्रतीत होता है।’’
भाषा वैभव