न्यायालय ने येस बैंक के एटी-1 बॉण्ड को बट्टे खाते में डालने संबंधी याचिकाओं को दूसरी पीठ के पास भेजा
शोभना मनीषा नरेश
- 22 Jan 2025, 01:34 PM
- Updated: 01:34 PM
नयी दिल्ली, 22 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य की याचिकाओं को एक अन्य पीठ को भेज दिया, जिसमें येस बैंक के प्रशासक की ओर से बेलआउट के तहत 8,415 करोड़ रुपये के ‘एडीशनल टियर’ 1 बॉण्ड को बट्टे खाते में डालने के फैसले को रद्द कर दिया गया था।
‘एडीशनल टियर’ 1 (एटी-1) बैंकों द्वारा अपने पूंजी आधार को बढ़ाने के लिए जारी किए जाने वाले स्थायी बॉण्ड हैं और वे उच्च ब्याज दरों वाले पारंपरिक बॉण्ड की तुलना में अधिक जोखिम भरे हैं। अगर बैंक संकट में है तो आरबीआई बैंक से उन्हें रद्द करने के लिए कह सकता है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर चार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेगी।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाओं पर अब न्यायमूर्ति ए एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ एक सप्ताह बाद सुनवाई करेगी।
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ ने तीन मार्च 2023 को उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ आरबीआई और अन्य द्वारा दायर चार याचिकाओं पर ‘एक्सिस ट्रस्टी सर्विसेज लिमिटेड’ को नोटिस जारी किया था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक को भी बढ़ा दिया था, जिसमें मार्च 2020 में बेलआउट के हिस्से के रूप में 8,415 करोड़ रुपये के एटी -1 बॉण्ड को बट्टे खाते में डालने के येस बैंक प्रशासक के फैसले को रद्द कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी 2023 को येस बैंक के 14 मार्च 2020 के निर्णय को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि प्रशासक के पास ऐसा निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने एटी-1 बॉण्ड निवेशकों को आश्वासन दिया था कि वह उनके सामने आ रही वित्तीय परेशानी का कोई न कोई समाधान निकालने की कोशिश करेगी, क्योंकि ‘एक्सिस ट्रस्टी सर्विसेज लिमिटेड’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि निवेश की गई रकम ‘शून्य’ हो गई है और इसमें उनकी कोई गलती नहीं है।
रोहतगी ने कहा था, ‘‘ बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने ही बैंक को डुबोया...हमारा पैसा शून्य हो गया...हम टाटा-बिड़ला नहीं हैं। हम संस्थागत निवेशक हैं। कुछ लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई निवेश की। हमने क्या गलत किया? हम क्यों भुगतें।’’
शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह बॉण्ड धारकों के लिए कुछ समाधान खोजने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का उपयोग कर सकती है।
भाषा शोभना मनीषा