संसद या विधानसभा में आक्रामकता, अभद्रता के लिए कोई जगह नहीं: न्यायालय
प्रशांत दिलीप
- 25 Feb 2025, 09:38 PM
- Updated: 09:38 PM
नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि संसद या विधानमंडल की कार्यवाही में आक्रामकता और अभद्रता के लिए कोई स्थान नहीं है और सदस्यों से एक-दूसरे के प्रति पूर्ण सम्मान और आदर दिखाने की अपेक्षा की जाती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सदन के अंदर बोलने के अधिकार का इस्तेमाल साथी सदस्य, मंत्रियों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से आसन को अपमानित करने और बदनाम करने के उपकरण के रूप में नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने बिहार विधान परिषद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ नारेबाजी करने के लिए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के एमएलसी सुनील कुमार सिंह के आचरण की निंदा की, लेकिन सदन से उनके निष्कासन को कठोर और अत्यधिक बताते हुए खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा, “इस बात पर जोर देने की कोई आवश्यकता नहीं है कि संसद या विधानमंडल की कार्यवाही में आक्रामकता और अभद्रता के लिए कोई स्थान नहीं है। सदस्यों से एक-दूसरे के प्रति पूर्ण सम्मान और आदर दिखाने की अपेक्षा की जाती है। यह अपेक्षा केवल परंपरा या औपचारिकता का मामला नहीं है; यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रभावी संचालन के लिए आवश्यक है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि इससे यह सुनिश्चित होता है कि बहस और चर्चाएं सार्थक हों, मौजूदा मुद्दों पर केंद्रित हों तथा इस तरह से संचालित हों कि संस्था की गरिमा बनी रहे।
इसमें कहा गया है, “सदन के अंदर बोलने के अधिकार का इस्तेमाल साथी सदस्य, मंत्रियों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, अध्यक्ष को अपमानित करने या बदनाम करने के लिए नहीं किया जा सकता है।”
सदन की कार्यवाही की जांच करने में अदालतों की भूमिका के पहलू पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि संवैधानिक अदालतें यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं कि सदस्यों पर दंड लगाने की कार्रवाई आनुपातिक और न्यायसंगत हो।
पीठ ने कहा, “इसमें कोई दो राय नहीं है कि असंगत सजा देने से न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता है, बल्कि सदस्य को सदन की कार्यवाही में भाग लेने से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि इससे निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचक मंडल पर भी असर पड़ता है, जिनका प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता।” न्यायालय ने कहा कि भारत के प्रतिनिधि लोकतंत्र में, एक विधायिका का मुख्य कार्य लोगों की इच्छा के प्रतिबिंब के रूप में कार्य करना है।
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अपने विश्वास का पालन करने के लिए स्वतंत्र एजेंट होने के बजाय, विधायक मतदाताओं के प्रतिनिधि हैं और इस प्रकार उनका दायित्व है कि वे उन लोगों की राय और मूल्यों को प्रतिबिंबित करें, जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं।
पीठ ने कहा, “इसलिए सदन से किसी सदस्य को हटाया जाना उस सदस्य और उसके निर्वाचन क्षेत्र दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया सभी सदस्यों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है, और यहां तक कि संक्षिप्त अनुपस्थिति भी किसी सदस्य की महत्वपूर्ण विधायी चर्चाओं और निर्णयों में योगदान देने की क्षमता को बाधित कर सकती है।”
पीठ ने कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि हालांकि निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किसी सदस्य पर लगाई जाने वाली सजा के निर्धारण में एकमात्र कारक नहीं है, फिर भी यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर उचित विचार किया जाना चाहिए।”
सिंह को 26 जुलाई 2024 को सदन में उनके अशिष्ट व्यवहार के कारण बिहार विधान परिषद से निष्कासित कर दिया गया था।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और उनके परिवार के करीबी माने जाने वाले सिंह पर 13 फरवरी 2024 को सदन में तीखी बहस के दौरान मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी करने का आरोप लगाया गया था।
भाषा प्रशांत