लोक सेवक आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा तो मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति जरूरी: न्यायालय
देवेंद्र अविनाश
- 25 Feb 2025, 10:52 PM
- Updated: 10:52 PM
नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यदि कोई लोक सेवक अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा है तो उसके खिलाफ आपराधिक मामलों में मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) में यौन उत्पीड़न के एक मामले में भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की अधिकारी सुनीति टोटेजा के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, ‘‘केवल यह देखा जाना चाहिए कि क्या आरोपी लोक सेवक अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन कर रहा था और यदि उत्तर सकारात्मक है, तो उनके अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी अदालतों द्वारा उनके खिलाफ मामलों के संज्ञान के लिए एक पूर्व शर्त है।’’
इसने कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी प्राप्त किए बिना मामले का संज्ञान लेने में गलती की है।
सीआरपीसी की धारा 197 न्यायाधीशों और लोक सेवकों के अभियोजन से संबंधित है और यह निर्धारित करती है कि यदि किसी लोक सेवक पर आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन के दौरान किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है, तो कोई भी अदालत ‘‘लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में प्रदान की गई पिछली मंजूरी के अलावा ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।’’
उच्चतम न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ टोटेजा की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसने उसके खिलाफ आरोप-पत्र और समन आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहा गया कि अभियोजन के लिए आवश्यक मंजूरी नहीं होने के कारण आपराधिक कार्यवाही और 2022 का समन आदेश अमान्य है।
यह मामला एफएसएसएआई के एक एसोसिएट निदेशक द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी से सामने आया है, जिसमें एक निदेशक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
आरोपों की जांच के लिए गठित एफएसएसएआई की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ने निदेशक को दोषी पाया और कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की।
जब एफएसएसएआई द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई तो शिकायतकर्ता ने 2018 में लखनऊ के अलीगंज पुलिस थाने में निदेशक और अन्य को नामजद करते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई।
टोटेजा, जो उस समय एफएसएसएआई में आईसीसी की पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्यरत थी, का नाम शुरू में प्राथमिकी में नहीं था और उनका नाम बाद में शिकायतकर्ता के बयानों के दौरान सामने आया।
यह आरोप लगाया गया कि टोटेजा ने शिकायतकर्ता की अनुमति के बिना केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के समक्ष जवाबी हलफनामा दायर किया और उस पर मामला वापस लेने के लिए कथित तौर पर दबाव डाला।
टोटेजा ने दावा किया कि उन्होंने आईसीसी की पीठासीन अधिकारी के रूप में अपनी आधिकारिक क्षमता में बिना किसी आपराधिक इरादे के कार्य किया है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि क्योंकि टोटेजा जवाबी हलफनामा दाखिल करते समय अपनी आधिकारिक क्षमता में काम कर रही थीं, इसलिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत उनके मूल विभाग बीआईएस से पूर्व मंजूरी लेना अनिवार्य था।
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