गोवा के लोगों ने कीर्ति चक्र विजेता लेफ्टिनेंट मायेकर को 25वीं पुण्यतिथि पर याद किया
राखी नरेश
- 26 Feb 2025, 05:28 PM
- Updated: 05:28 PM
पणजी, 26 फरवरी (भाषा) गोवा के लोगों ने बुधवार को कीर्ति चक्र पुरस्कार विजेता लेफ्टिनेंट नरेंद्र मायेकर को उनकी 25वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
असम में उल्फा उग्रवादियों से लड़ते हुए 26 फरवरी 2000 को लेफ्टिनेंट मायेकर शहीद हो गए थे।
मुरगांव के विधायक संकल्प अमोणकर ने बताया कि वास्को क्षेत्र में जल्द ही लेफ्टिनेंट मायेकर की स्मृति में एक स्मारक बनाया जाएगा। सैन्य अधिकारियों, पूर्व सैनिकों और स्थानीय लोगों के साथ अमोणकर ने शहीद जवान को श्रद्धांजलि दी।
बंदरगाह शहर वास्को के सदा क्षेत्र के निवासी लेफ्टिनेंट मायेकर 11वीं सिख रेजिमेंट से थे।
अमोणकर ने पीटीआई-भाषा से कहा, "हमें गर्व है कि हमारे शहर में ऐसा वीर सपूत पैदा हुआ। यह हमारे लिए सम्मान की बात है। हमने वास्को के सदा इलाके में उनके नाम पर स्मारक बनाने का निर्णय लिया है।"
लेफ्टिनेंट मायेकर की 70 वर्षाय मां भागीरथी आत्माराम मायेकर ने कहा कि बेटे के शहीद होने से उनके परिवार को अपूरणीय क्षति हुई।
उन्होंने कहा, "वह अपने सभी भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। वह सुरक्षा बल में शामिल होना चाहता था, इसलिए जब उसने विज्ञापन देखा तो आवेदन किया और उसका चयन हो गया। लेकिन जब परिवार को उसके निधन की खबर मिली, तो हमारी दुनिया थम गई।"
उन्होंने बताया कि उस समय लेफ्टिनेंट मायेकर की बेटी केवल दो साल की थी।
भागीरथी मायेकर को गर्व है कि उनके बेटे को मरणोपरांत कीर्ति चक्र वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लेफ्टिनेंट मयेकर की पत्नी नेहा ने कहा कि उनकी मृत्यु से तीन महीने पहले वे असम में उनके साथ थे।
उन्होंने कहा, "हमारी बेटी बहुत छोटी थी और उसे वहां का मौसम रास नहीं आ रहा था इसलिए हम वापस गोवा आ गए। फिर यह दुखद खबर मिली।"
शहीद जवान की बेटी निधि ने कहा कि परिवार ने उन्हें लंबे समय तक उनके पिता के निधन की जानकारी नहीं दी।
बेटी ने कहा, "मैं हमेशा सोचती थी कि वे कठिन इलाकों में देश की सेवा कर रहे हैं। जब मैं स्कूल जाने लगी और मेरी शिक्षिका उनके बारे में भूतकाल में बात करने लगीं, तब मुझे एहसास हुआ कि वह अब इस दुनिया में नहीं हैं।"
लेफ्टिनेंट मायेकर ने 2000 में असम के एक गांव में तलाशी अभियान चलाया, जहां कुछ उल्फा उग्रवादी छिपे हुए थे।
26 फरवरी 2000 को जब वह एक घर के करीब पहुंचे, तो उन पर गोलियां चलाई गईं और घायल हो गए।
बुधवार को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, "अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किए बिना वह अपनी रेजिमेंट के साथ घर में घुसे। उन्होंने उग्रवादियों से आमने-सामने की लड़ाई की और दो को मार गिराया।"
उन्होंने अपनी रेजिमेंट को अन्य उग्रवादियों का मुकाबला करने के लिए प्रेरित किया।
उनकी बहादुरी और त्वरित कार्रवाई ने अन्य सैनिकों का मनोबल बढ़ाया, जिससे तीन कट्टर उल्फा उग्रवादियों के मारे जाने और हथियार, गोला-बारूद तथा आपत्तिजनक दस्तावेजों की बरामदगी में मदद मिली।
भाषा राखी