जामिया प्रदर्शन: अदालत ने छात्रों के निलंबन पर रोक लगाई
अमित पवनेश
- 04 Mar 2025, 08:27 PM
- Updated: 08:27 PM
नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उन छात्रों के निलंबन पर मंगलवार को रोक लगा दी जिनके विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है और कहा कि इस तरह के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना "नागरिक संस्थाओं के बुनियादी सिद्धांतों और मानदंडों को आत्मसात करने के प्रशिक्षण" का हिस्सा है।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने इसके साथ ही विरोध प्रदर्शन से निपटने के विश्वविद्यालय के तरीके को चिंताजनक भी पाया।
अदालत ने कहा, ‘‘किसी भी पक्ष की दलीलों की सत्यनिष्ठा पर गौर किए बिना, रिकार्ड के अवलोकन से ही अदालत इस बात से चिंतित है कि छात्रों के विरोध प्रदर्शन को विश्वविद्यालय ने किस तरह से संभाला। अदालत फिलहाल विरोध प्रदर्शन के कारणों पर विचार नहीं कर रही है, लेकिन याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज से प्रथम दृष्टया पता चलता है कि वह एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था।’’
उच्च न्यायालय ने मुद्दे को सुलझाने और स्थिति को शांत करने के लिए कुलपति की देखरेख में विश्वविद्यालय अधिकारियों की एक "शांति" समिति गठित करने का आदेश दिया और कहा कि उन्हें चर्चा में छात्र प्रतिनिधियों को भी शामिल करना चाहिए।
सात छात्रों की चार अलग-अलग याचिकाओं पर निलंबन पर 2 अप्रैल तक रोक लगा दी गई। याचिकाकर्ता छात्रों को प्रॉक्टर के 12 फरवरी के आदेश द्वारा निलंबित कर दिया गया था और परिसर में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई थी।
विश्वविद्यालय को एक सप्ताह के भीतर मामले में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
अदालत ने कहा कि सभी छात्र, जो कम उम्र के हैं, ‘‘निश्चित रूप से कानून के दायरे में अपनी आवाज उठाने के प्रयास के लिए विश्वविद्यालय गए थे।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस तरह के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना नागरिक संस्थाओं के बुनियादी सिद्धांतों और मानदंडों को आत्मसात करने के प्रशिक्षण का हिस्सा है। अदालत को पूरा विश्वास है कि विश्वविद्यालय प्रशासन - कुलपति, डीन और प्रॉक्टर - स्थिति को शांत करने के लिए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाएंगे।’’
छात्रों ने अपने वकील के माध्यम से दलील दी कि वह एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था और उन्होंने अपेक्षित अनुमति प्राप्त की थी।
जामिया के वकील अमित साहनी और किस्ले मिश्रा ने कहा कि न केवल छात्रों को विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं थी, बल्कि उन्होंने विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया।
वकील ने कहा कि विरोध प्रदर्शन का शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं था और छात्र कैंटीन के बाहर सो रहे थे, जिसकी अनुमति नहीं थी।
दिल्ली पुलिस ने फरवरी में कुछ प्रदर्शनकारी छात्रों को हिरासत में लिया था, जिसके बाद अन्य छात्रों ने दावा किया कि हिरासत में लिए गए छात्रों का कई घंटों तक पता नहीं चल पाया, जिससे विरोध और भड़क गया। हालांकि, लगभग 12 घंटे बाद सभी छात्रों को रिहा कर दिया गया।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रॉक्टर, प्रिंसिपल, जो भी वहां है, उससे पूछिए। आपको बच्चों को सावधानी से संभालना होगा। अगर कोई आपराधिक गतिविधि में लिप्त है, तो निश्चित रूप से कार्रवाई की जानी चाहिए....।’’
अदालत ने कहा कि उसने छात्रों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर गौर नहीं किया है और उसका आदेश उनके लिए अहितकर नहीं होगा।
छात्रों ने दावा किया कि निलंबन सुनवाई का अवसर दिए बिना की गई और यह आदेश मनमाना, गैरकानूनी और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है।
उनमें से एक ने कहा कि निलंबन आदेश की वजह से उन्हें गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ा, उसने उनकी शिक्षा और करियर की संभावनाओं को खतरे में डाल दिया और बिना किसी ठोस आधार के की गई दंडात्मक कार्रवाई संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
एक अन्य याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह विरोध प्रदर्शन का हिस्सा भी नहीं था, बल्कि केवल एक दर्शक के रूप में मौके पर गया था और अपनी कक्षाओं में वापस आ गया था।
छात्रों ने कहा कि 10 से 13 फरवरी के विरोध प्रदर्शन विश्वविद्यालय अधिकारियों को चार छात्रों के खिलाफ प्रस्तावित अनुशासनात्मक कार्रवाई को वापस लेने के लिए मनाने के लिए किए गए थे।
छात्रों ने "जामिया प्रतिरोध दिवस" मनाने का फैसला किया था - जिस दिन दिल्ली पुलिस ने 15 दिसंबर, 2019 को परिसर में प्रवेश किया था।
याचिकाओं में कहा गया है कि जब छात्रों ने प्रशासन को सूचित किया कि वे 15-16 दिसंबर, 2024 को कार्यक्रम मनाने का प्रस्ताव रखते हैं, तो उन्हें मौखिक रूप से इसके खिलाफ सूचित किया गया, हालांकि वह एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन था।
छात्रों ने कहा कि बदले की कार्रवाई में प्रशासन ने चार छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया और उनमें से दो को अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानकारी दी गई। याचिका में कहा गया कि जामिया की मनमानी के खिलाफ छात्रों ने केंद्रीय कैंटीन के खुले क्षेत्र में बैठकर विरोध प्रदर्शन किया।
भाषा अमित