वन मामला: उच्चतम न्यायालय ने राज्यों से एक महीने में विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए कहा
संतोष माधव
- 04 Mar 2025, 09:16 PM
- Updated: 09:16 PM
नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे एक महीने के भीतर वन जैसे क्षेत्रों, अवर्गीकृत और सामुदायिक वन भूमि सहित विभिन्न भूमि का समेकित रिकॉर्ड तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन करें।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि विशेषज्ञ समिति वन (संरक्षण एवं संवर्धन) नियम, 2023 के नियम 16 (1) के तहत आवश्यक कार्य छह महीने के भीतर पूरा करेगी।
पीठ ने कहा कि नियम 16 (1) के तहत सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को विशेषज्ञ समिति द्वारा पहचाने गए वन जैसे क्षेत्रों, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि सहित ऐसी भूमि का समेकित रिकॉर्ड तैयार करने की आवश्यकता है, जिस पर 2023 के वन संरक्षण कानून के प्रावधान लागू होंगे।
इसने 2023 के वन संरक्षण कानून में संशोधन के खिलाफ याचिकाओं के एक खेप पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया।
पीठ ने कहा कि एक बार नियम 16 (1) के तहत की जाने वाली कवायद के पूरा हो जाने के बाद कई मुद्दों का समाधान हो जाएगा।
पीठ ने कहा कि केंद्र राज्यवार स्थिति को समेकित करेगा और उसे अदालत के समक्ष रखेगा। इसने कहा कि शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार (न्यायिक) उसके आदेश के बारे में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को भी सूचित करेंगे।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा निर्देशों का अक्षरशः पालन नहीं किया जाता है, तो वह मुख्य सचिवों और प्रशासकों को चूक के लिए जिम्मेदार ठहराएगी और उचित कदम उठाने पर विचार करेगी।
पीठ इस मामले की अगली सुनवाई छह महीने बाद करेगी।
सुनवाई के दौरान मंगलवार को केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि उन्होंने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया है। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, ‘‘इस संशोधन में, जिसे यहां चुनौती दी गई है, उन्होंने प्रतिपूरक वनीकरण को एक सिद्धांत के रूप में दिया है, जिसका उपयोग वे तब भी करेंगे जब वन भूमि का ‘डायवर्जन’ किया जाएगा।’’
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने देश में वन क्षेत्र के बारे में एक रिपोर्ट का हवाला दिया।
पिछले साल फरवरी में शीर्ष अदालत ने इस दलील पर गौर किया था कि 2023 के संशोधित संरक्षण कानून के तहत वन की परिभाषा में लगभग 1.99 लाख वर्ग किलोमीटर वन भूमि को ‘वन’ के दायरे से बाहर रखा गया है और इसे अन्य उद्देश्यों के लिए उपलब्ध करा दिया गया है।
इसने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 मार्च, 2024 तक अपने अधिकार क्षेत्र के वन भूमि का विवरण केंद्र को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले वन जैसे क्षेत्र, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि के बारे में सभी विवरण पिछले साल 15 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट प्रदर्शित करेगा।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में ‘वन’ की व्यापक परिभाषा को संशोधित कानून में शामिल धारा 1ए के तहत सीमित कर दिया गया है।
भाषा संतोष