आपराधिक कानून के महत्व को कम नहीं आंकना चाहिए: प्रधान न्यायाधीश खन्ना
धीरज वैभव
- 06 Mar 2025, 10:35 PM
- Updated: 10:35 PM
नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने बृहस्पतिवार को कहा कि समाज में आपराधिक कानूनों के महत्व को कम नहीं आंकना चाहिए और उम्मीद जताई कि युवा वकील आपराधिक मुकदमों को पहली पसंद के रूप में अपनाएंगे।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) खन्ना देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित द्वारा संपादित पुस्तक ‘‘रतनलाल और धीरजलालज लॉ ऑफ क्राइम:अ काम्प्रिहेन्सिव कमेंटरी ऑफ भारतीय न्याय संहिता 2023’’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे।
यह कार्यक्रम दिल्ली उच्च न्यायालय के सभागार में पूर्व प्रधान न्यायाधीश, विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की उपस्थिति में आयोजित किया गया।
प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि जब गिरफ्तारी और हिरासत से निपटने की बात आती है, तो आपराधिक कानून सीधे तौर पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक सद्भाव और राज्य की शक्ति एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच मौलिक संतुलन को प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं कानून के छात्रों, पेशे में आए नये व्यक्तियों को देखता हूं, तो उनमें से कई आपराधिक मुकदमे में करियर को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। सच्चाई यह है कि जिला अदालतों में अधिकांश मुकदमे आपराधिक मुकदमे ही होते हैं। इसलिए हमें आपराधिक कानून के महत्व को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और मुझे उम्मीद और विश्वास है कि वकीलों सहित कई युवा धीरे-धीरे आपराधिक कानून को दूसरी या मजबूरी के बजाय पहली पसंद के रूप में अपनाएंगे।’’
प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने कहा कि न्याय व्यवस्था ने आपराधिक कानून में साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण को अपनाया है और भविष्य में आपराधिक न्यायशास्त्र व्यवहार और सामाजिक गतिशीलता के बारे में अपरीक्षित कथनों पर निर्भर नहीं होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘यह डेटा पर अधिकाधिक निर्भर करेगा। डेटा मौजूद है, डेटा बोलता है। विश्लेषणात्मक उपकरण मौजूद हैं। हमें जो करने की आवश्यकता है, वह यह है कि आपराधिक कानून को साक्ष्य के आधार पर आगे बढ़ाया जाए।’’
न्यायमूर्ति ललित ने पुस्तक को इस रूप में लाने से पहले इसके ‘‘जांच के स्तरों’’ से गुजरने पर बात की और कहा, ‘‘यह मेरा पहला प्रयास है, लेकिन यह अंतिम प्रयास नहीं हो सकता।’’
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अधिनियमन पर अपने विचार साझा किए।
उन्होंने कहा कि न्याय सुलभ, कुशल और विकसित होते समाज की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
भाषा धीरज