विपक्ष को दबाने के लिए रॉलेक्ट अधिनियम लाने की कोशिश हो रही : सुले
धीरज पवनेश
- 15 Mar 2025, 05:43 PM
- Updated: 05:43 PM
मुंबई, 15 मार्च (भाषा) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) सांसद सुप्रिया सुले ने महाराष्ट्र में शहरी नक्सलवाद के खिलाफ प्रस्तावित कानून की तुलना औपनिवेशिक रॉलेक्ट अधिनियम से करते हुए आशंका जताई कि सरकार की आलोचना करने वाले व्यक्तियों या संगठनों के खिलाफ इसका दुरुपयोग किया जा सकता है, जिससे प्रभावी रूप से पुलिस राज स्थापित हो सकता है।
सुले ने मांग की कि सरकार विधेयक के मसौदे की समीक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो।
‘महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024’ विधेयक राज्य में नक्सलवाद से निपटने के लिए पहला कानून बन जाएगा। इसमें गैरकानूनी गतिविधियों से निपटने में सरकार और पुलिस तंत्र को कई शक्तियां देने का प्रस्ताव है। इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत सभी अपराध संज्ञेय एवं गैर-जमानती होंगे।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पिछले साल दिसंबर में राज्य विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दौरान विधेयक को पुनः पेश करते हुए कहा था कि कानून का उद्देश्य शहरी नक्सलियों के अड्डे बंद करना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि प्रस्तावित कानून वास्तविक असहमति की आवाजों को दबाने के खिलाफ नहीं है।
सुले ने शनिवार को दावा किया कि यह विधेयक नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कमतर करेगा।
राकांपा (एसपी) की कार्यकारी अध्यक्ष ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर जारी पोस्ट में कहा, ‘‘इस विधेयक के जरिए आम लोगों से सरकार के खिलाफ बोलने का अधिकार छीन लिया जाएगा। एक स्वस्थ लोकतंत्र में असहमतिपूर्ण विचारों का सम्मान किया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र का सिद्धांत विपक्षी आवाजों को भी महत्व देता है, क्योंकि वे सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग जवाबदेह रहें और जनमत का सम्मान करें।’’
सुले ने कहा कि प्रस्तावित कानून में ‘‘अवैध कृत्यों’’ की परिभाषा से सरकारी एजेंसियों को असीमित शक्तियां प्रदान की गई हैं।
बारामती से लोकसभा सदस्य ने आरोप लगाया, ‘‘इससे सरकार को प्रभावी रूप से पुलिस राज स्थापित करने का लाइसेंस मिल जाता है, जिसका दुरुपयोग उन व्यक्तियों, संस्थाओं या संगठनों के खिलाफ किया जा सकता है जो लोकतांत्रिक तरीके से रचनात्मक विरोध जताते हैं।’’
उन्होंने कहा कि यह विधेयक ‘‘हम भारत के लोग’’ की अवधारणा को कमजोर करता है।
सुले ने कहा कि यह विधेयक प्रशासन को अनियंत्रित शक्तियां प्रदान करेगा, जिसका दुरुपयोग केवल प्रतिशोध की भावना से व्यक्तियों को परेशान करने के लिए किया जा सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सरकारी नीतियों और निर्णयों की आलोचना करना, शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करना या मार्च आयोजित करना, सभी अवैध कार्य माने जा सकते हैं। यह विधेयक वैचारिक विविधता के सिद्धांतों की अवहेलना करता है और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है।’’
सुले ने दावा किया कि यह विधेयक सरकार को कुछ न्यायिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने की शक्ति प्रदान करता है, जो ‘‘न्यायिक स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा पैदा करता है’’।
सुले के अनुसार, विधेयक के कुछ प्रावधान मौलिक संवैधानिक अधिकारों जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ बनाने की स्वतंत्रता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का अतिक्रमण करते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘ऐतिहासिक रूप से, अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान विरोध को दबाने के लिए इसी तरह का कानून (रॉलेक्ट एक्ट) लाने का प्रयास किया था।’’
सुले ने आगे कहा कि यह विधेयक संविधान के मूल सिद्धांतों का ‘‘सीधा खंडन’’ है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस विधेयक के मसौदे की समीक्षा करे और सुनिश्चित करे कि संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन न हो।’’
भाषा धीरज