केंद्र त्रिभाषा फार्मूला को लेकर दक्षिणी राज्यों की आशंकाओं के प्रति ‘असंवेदनशील’ : करात
धीरज प्रशांत
- 15 Mar 2025, 07:22 PM
- Updated: 07:22 PM
(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 15 मार्च (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अंतरिम समन्यवक प्रकाश करात ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूले को लेकर चल रही बहस के बीच आरोप लगाया कि केंद्र दक्षिणी राज्यों की आशंकाओं के प्रति असंवेदनशील रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी भाषाओं को समान महत्व दिया जाना चाहिए।
करात ने कहा कि यदि किसी एक भाषा को थोपने के बजाय सभी भाषाओं के साथ समान व्यवहार किया जाए, तो उनमें से एक स्वतः ही ‘संपर्क भाषा’ के रूप में विकसित हो जाएगी।
दक्षिणी राज्यों ने हिंदी थोपे जाने का आरोप लगाया है और इस बहस को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के त्रिभाषा फार्मूले से और बल मिला है, जिसमें छात्रों के कम से कम दो भारतीय भाषाएं सीखने की सिफारिश की गई है।
इस फार्मूले का द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने विरोध किया है, जिसके कारण राज्य और केंद्र के बीच जुबानी जंगी छिड़ गयी है। तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से त्रिभाषा फार्मूले का विरोध किया है और एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने इसे कभी लागू नहीं किया।
इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर करात ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में कहा कि तमिलनाडु की आशंकाओं के पीछे पृष्ठभूमि है। उन्होंने कहा, ‘‘तमिलनाडु में मौजूदा भय त्रिभाषा फार्मूले पर जोर देने से उपजा है। लेकिन मुझे लगता है कि मौजूदा सरकार तमिलनाडु के लोगों के भय और आशंकाओं के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील रही है।’’
माकपा नेता ने कहा, ‘‘ किसी न किसी तरह से हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है। मुझे लगता है कि इसी वजह से ये आशंकाएं पैदा हुई हैं।’’ उन्होंने कहा कि बड़ा सवाल एनईपी का है क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची में शामिल है और राज्यों को नीतियां तय करने का समान अधिकार है।
करात ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें भी इस नीति के कुछ पहलुओं पर कड़ी आपत्ति है। यहां तक कि हमारी केरल की एलडीएफ (वाम लोकतांत्रिक मोर्चा) सरकार को भी आपत्ति है। यह केवल हिंदी थोपने का सवाल नहीं है, बल्कि व्यापक सवाल है। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है और शिक्षा का बड़ा हिस्सा राज्य सरकारों के अधीन है। लेकिन केंद्र द्वारा इसमें लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है।’’
वरिष्ठ माकपा नेता ने कहा, ‘‘इसलिए, यह भी एक कारण है कि तमिलनाडु में यह आशंका है कि न केवल हिंदी, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से शिक्षा में मूल्यों के विभिन्न अन्य मॉडल भी थोपे जाएंगे।’’
करात ने कहा,‘‘हम बहुभाषी समाज हैं। यहां तक कि संविधान में भी 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है। इन्हें राष्ट्रीय (आधिकारिक) भाषा माना जाता है। हम मानते हैं कि सभी भाषाओं को समान दर्जा प्राप्त है।’’
उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा को दूसरों पर थोपा नहीं जा सकता तथा उसे अपने आप विकसित होने देना चाहिए।
करात ने कहा, ‘‘आप कृत्रिम रूप से यह नहीं कह सकते कि यह भाषा आधिकारिक भाषा होगी और सभी को इसे स्वीकार करना होगा या इसका अध्ययन करना होगा अथवा इसका उपयोग करना होगा। भाषाएं सामाजिक संपर्क के माध्यम से अपने आप विकसित होती हैं। आप पाएंगे कि कुछ भाषाओं को दूसरी भाषा बोलने वाले लोग भी स्वीकार कर लेते हैं। जैसे कि अब अंग्रेजी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीखना और उपयोग करना उपयोगी माना जाता है। इसलिए, अगर हिंदी उस तरह की लोकप्रियता हासिल करती है, तो आप पाएंगे कि लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन अभी यह उस स्तर पर नहीं है।’’
पश्चिम बंगाल की राजनीति के बारे में करात ने कहा कि माकपा राज्य में अपना आधार फिर से हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रही है और वह तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ ‘‘वामपंथी और लोकतांत्रिक ताकतों’’ को एक साथ लाने का प्रयास करेगी।
उन्होंने कहा कि इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई है कि वाम मोर्चा और कांग्रेस 2026 में होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ेंगे या नहीं।
करात ने कहा कि माकपा राज्य में अपना पारंपरिक समर्थन आधार फिर से हासिल करने के लिए ग्रामीण गरीबों के बीच काम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
करात ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं सिर्फ अपनी पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि सभी वामपंथी और प्रगतिशील ताकतों की बात कर रहा हूं जो बड़ी संख्या में सामने आईं और बड़े पैमाने पर युवाओं को भी संगठित किया।’’
भाषा धीरज