नाश्ता और पैकेट-बंद खानपान कारोबार में काफी संभावनाएं: पेप्सिको
अनुराग अजय
- 16 Mar 2025, 03:31 PM
- Updated: 03:31 PM
नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) पेप्सिको के भारत और दक्षिण एशिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) जागृत कोटेचा ने कहा कि कंपनी पैकेट बंद खानपान खंड में अपनी भूमिका बढ़ाएगी और अलग-अलग स्वाद वाले ‘विभिन्न भारतीयों’ की जरूरतों को पूरा करेगी। कंपनी देश में दहाई अंक की वृद्धि को कायम रखने के लिए नवाचार और प्रीमियम खंड पर दांव लगा रही है।
पेप्सिको भारत में अपने स्नैक्स (नाश्ता) कारोबार का विस्तार करेगी, क्योंकि अन्य देशों की तुलना में यहां खपत बहुत कम है और बढ़ते शहरीकरण तथा बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ जेब में अधिक पैसा आने के कारण कोटेचा को उम्मीद है कि पैकेट बंद खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि कुरकुरे और लेज़ बनाने वाली कंपनी पेप्सिको ने ‘विभिन्न भारतीयों’ की क्षेत्रीय पसंद के अनुरूप भारत को आंतरिक रूप से नौ समूहों में विभाजित किया है।
पेप्सिको के सीईओ ने कहा, “यदि आप कहते हैं कि यह केवल एक भारत है, तो मुझे लगता है कि हम इसके साथ पर्याप्त न्याय नहीं कर रहे हैं।”
कोटेचा ने पीटीआई-भाषा से कहा, “आपको भारत के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखते हुए अपना पोर्टफोलियो को डिजायन करना होगा। इसलिए उपभोक्ता-केंद्रित होना और उस पर काम करना और उस पर गहराई से विचार करना ज़रूरी है। और फिर स्वाद, प्रोफ़ाइल, स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के मामले में रुझान क्या हैं, यह समझना होगा।”
उन्होंने कहा कि कंपनी उपभोक्ताओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए ‘काफी मात्रा में’ निवेश कर रही है, क्योंकि भारत में भोजन, पाककला, पेय और पेय पदार्थों की समृद्ध विरासत है।
पेप्सिको के पास फिलहाल उत्तर प्रदेश के मथुरा, पंजाब के चन्नो, पुणे के रंजनगांव और पश्चिम बंगाल के कोलकाता के पास संकरैल में विनिर्माण संयंत्र हैं। इसके अलावा, इसका अगला संयंत्र असम में बन रहा है, जो इसी साल परिचालन में आ जाएगा।
इसके अलावा, पेप्सिको ने दो और नए संयंत्र लगाने की योजना बनाई है, जिसमें दक्षिण में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भी एक संयंत्र शामिल है।
इसके राजस्व में खाद्य क्षेत्र का योगदान लगभग 80 प्रतिशत है, जिसमें यह लेज़, कुरकुरे, डोरिटोस और क्वेकर जैसे ब्रांड के माध्यम से परिचालन करती है। कोटेचा को आने वाले वर्षों में वृद्धि की उम्मीद है क्योंकि अन्य बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार में खपत बहुत कम है।
भाषा अनुराग