बचपन बेहद गरीबी में बीता, पिता की चाय की दुकान से सीखे जीवन के सबक: प्रधानमंत्री मोदी
जितेंद्र प्रशांत
- 16 Mar 2025, 11:50 PM
- Updated: 11:50 PM
नयी दिल्ली, 16 मार्च (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबी में बिताए अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपने पिता की चाय की दुकान और अपनी मां से जीवन के सबक सीखे, जिससे उनके मन में छोटी उम्र में ही सेवा की भावना आ गई।
मोदी ने लेक्स फ्रीडमैन के साथ पॉडकास्ट में अपने बचपन के बारे में बताया।
मोदी ने कहा कि उनका बचपन बिना खिड़कियों वाले एक छोटे से घर में बीता, जहां उनके माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची और दादा-दादी एक साथ रहते थे। उन्होंने कहा, “मेरा शुरुआती जीवन बेहद गरीबी में बीता लेकिन हमें कभी गरीबी का बोझ महसूस नहीं हुआ।”
उन्होंने याद किया कि कैसे उनके पिता देर रात तक अथक परिश्रम करते थे और उनकी मां यह सुनिश्चित करती थीं कि बच्चों को कभी भी परिस्थितियों के संघर्ष का एहसास न हो।
प्रधानमंत्री ने कहा, “इन सबके बावजूद, अभावों में जीने की इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों ने कभी हमारे दिमाग पर कोई छाप नहीं छोड़ी।”
मोदी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि कबसे, लेकिन साफ-सुथरे कपड़े पहनने की आदत बचपन से ही है और इस बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने स्कूल जाते समय पहने जाने वाले अपने सफेद कपड़ों के जूतों का उदाहरण दिया।
प्रधानमंत्री ने याद किया कि जब उनके चाचा ने उन्हें नंगे पैर स्कूल जाते देखा तो उन्हें एक जोड़ी सफेद कैनवास के जूते दिलवाए।
उन्होंने कहा कि जूते मिलने के बाद अगली चिंता यह थी कि इन्हें कैसे साफ रखा जाए।
मोदी ने कहा, “शाम को स्कूल खत्म होने के बाद, मैं थोड़ी देर के लिए रुक जाता था। मैं हर कक्षा तक जाता और शिक्षकों द्वारा फेंके गए चाक के बचे हुए टुकड़े इकट्ठा करता। मैं चाक के टुकड़ों को घर ले जाकर उन्हें पानी में भिगोता और उसे मिलाकर पेस्ट बनाने के बाद अपने कैनवास के जूतों को इससे पॉलिश करता, जिससे वे फिर से चमकदार सफेद हो जाते।”
मोदी ने कहा, “मेरे लिए वे जूते एक अनमोल संपत्ति थे, धन का प्रतीक। और मुझे ठीक से पता नहीं क्यों लेकिन बचपन से ही हमारी मां सफाई को लेकर बेहद सजग रहती थीं। शायद यहीं से हमें यह आदत विरासत में मिली।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी मां को पारंपरिक उपचार व उपचार पद्धतियों का ज्ञान था और वह इन घरेलू उपचारों से बच्चों का इलाज करती थीं। उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए कहा, “हर सुबह सूर्योदय से पहले लगभग पांच बजे, वह (मोदी की मां) बच्चों का इलाज करना शुरू कर देती थीं, इसलिए सभी बच्चे और उनके माता-पिता हमारे घर पर इकट्ठा होते थे। छोटे बच्चे रोते थे इसलिए हमें जल्दी उठना पड़ता था।”
मोदी ने कहा, “सेवा की यह भावना एक तरह से इन अनुभवों के माध्यम से पोषित हुई। समाज के प्रति सहानुभूति की भावना, दूसरों के लिए अच्छा करने की इच्छा, ये मूल्य मेरे परिवार से मुझे मिले। मेरा मानना है कि मेरे जीवन को मेरी मां, मेरे पिता, मेरे शिक्षकों और जिस माहौल में मैं बड़ा हुआ, उसने आकार दिया है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि बचपन में वह अपने पिता की चाय की दुकान पर बैठते थे और देखते थे कि लोग एक-दूसरे से कैसे बातचीत करते हैं।
उन्होंने कहा, “मैंने उनके बोलने के तरीके, उनके हाव-भाव देखे। इन चीजों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, भले ही मैं उस समय इसे अपने जीवन में ढालने की स्थिति में नहीं था।, मैंने सोचा कि अगर मुझे कभी मौका मिले, तो क्यों नहीं? मैं खुद को अच्छे से पेश क्यों न करूं।”
भाषा जितेंद्र