एआईएमपीएलबी का वक्फ विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन; ओवैसी ने तेदेपा, जद(यू), लोजपा (रामविलास) को चेताया
योगेश पारुल
- 17 Mar 2025, 07:18 PM
- Updated: 07:18 PM
नयी दिल्ली, 17 मार्च (भाषा) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ धरने का नेतृत्व किया, जिसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी सहित कई सांसदों ने हिस्सा लिया।
ओवैसी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा), जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (लोजपा-रामविलास) को आगाह किया कि अगर उन्होंने इस विधेयक का समर्थन किया, तो मुसलमान उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे।
एआईएमपीएलबी के तत्वावधान में कई मुस्लिम संगठनों ने जंतर-मंतर पर वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन किया।
धरना स्थल पर पहुंचे ओवैसी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश में शांति भंग करने के इरादे से वक्फ विधेयक लेकर आई है।
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री की मंशा है कि लोग मंदिर-मस्जिद को लेकर लड़ते रहें। वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा करना इस विधेयक का मकसद नहीं है।”
एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा, “यह विधेयक मुसलमानों की मस्जिदों, दरगाहों और कब्रिस्तानों को छीनने का प्रयास करता है। हम (तेदेपा प्रमुख) चंद्रबाबू नायडू, (लोजपा-रामविलास प्रमुख चिराग) पासवान साहब और (जदयू नेता) नीतीश कुमार को आगाह कर रहे हैं-याद रखें कि अगर आप इस अहम मोड़ पर इस विधेयक का समर्थन करते हैं, तो जब तक दुनिया का अस्तित्व रहेगा, मुसलमान आपको माफ नहीं करेंगे, क्योंकि यह आपके समर्थन से पारित होगा।”
उन्होंने कहा, “इस असंवैधानिक विधेयक का समर्थन न करें।”
ओवैसी ने इस बात को रेखांकित किया कि यह विधेयक गैर-मुस्लिमों को वक्फ परिषद और बोर्डों का हिस्सा बनने की इजाजत देता है, जबकि अन्य धर्मों की धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित संपत्तियों के प्रबंधन का जिम्मा संभालने वाली संस्थाओं में केवल उस समुदाय से संबंधित लोगों को ही सदस्य बनाया जाता है।
उन्होंने आरोप लगाया, “सरकार एक असंवैधानिक और मुस्लिम विरोधी कदम उठाने जा रही है।”
धरना स्थल पर संवाददाताओं से मुखातिब कांग्रेस नेता और अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद ने दावा किया कि यह विधेयक संवैधानिक रूप से वैध नहीं है और लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं।
शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद ने आरोप लगाया कि इस विधेयक का एकमात्र उद्देश्य वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करना है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष और एआईएमपीएलबी के उपाध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी ने सवाल किया, “वक्फ मुसलमानों को वही अधिकार देता है, जो अन्य धर्मों को उनकी संस्थाओं पर हासिल हैं। अगर हर धर्म को अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है, तो मुसलमानों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है।”
कई विपक्षी दलों के राजनीतिक नेताओं ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता धर्मेंद्र यादव ने कहा, “हम वक्फ विधेयक के खिलाफ विरोध का समर्थन कर रहे हैं। यह हमारे मुस्लिम भाइयों के खिलाफ है... सरकार की नजर उनकी जमीनों पर है। विपक्ष के सभी सुझावों को खारिज करके सरकार ने दिखा दिया है कि उसकी मंशा क्या है। हम इस विधेयक के खिलाफ हैं।”
संभल के सपा नेता जियाउर्रहमान बर्क ने कहा कि वे वक्फ विधेयक को संसद में पेश किए जाने के समय से ही इसका विरोध कर रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने सरकार पर समाज में दरार पैदा करने का आरोप लगाते हुए कहा, “यह विभाजनकारी राजनीति है... किसी भी धर्म या समुदाय को इस तरह निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। वे एक समुदाय को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं, जो काम नहीं करेगा। अगर वे इस विधेयक को पूर्ण बहुमत के आधार पर थोपेंगे, तो विरोध-प्रदर्शन होंगे।”
सिन्हा ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए।
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने दावा किया कि संयुक्त संसदीय समिति को दिए गए विपक्षी सदस्यों के सुझावों को खारिज कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “इससे पता चलता है कि सरकार किसी मुद्दे को हल नहीं करना चाहती है, बल्कि समाज में विभाजन पैदा करना चाहती है। हम चाहते हैं कि देश संविधान के अनुसार चले।”
यह धरना 13 मार्च को दिया जाना था, लेकिन होली की छुट्टियों के कारण इसे टाल दिया गया था।
एआईएमपीएलबी प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा कि गहन विचार-विमर्श के बाद बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि प्रस्तावित कानून वक्फ संपत्तियों पर “कब्जा” करने का रास्ता साफ करेगा, जो मुसलमानों पर “सीधा हमला” होगा।
यह विरोध-प्रदर्शन ऐसे समय में हो रहा है, जब संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण चल रहा है, जिसमें वक्फ (संशोधन) विधेयक पेश किया जा सकता है।
विधेयक पर विचार करने वाली संसद की 31 सदस्यीय संयुक्त समिति ने 30 जनवरी को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को 655 पन्नों की अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
भाषा योगेश