स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट बढ़ाएं, स्वास्थ्य बीमा पर से जीएसटी हटाएं : रास में विपक्ष ने की मांग
मनीषा माधव
- 18 Mar 2025, 05:45 PM
- Updated: 05:45 PM
नयी दिल्ली, 18 मार्च (भाषा) सरकार से बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने तथा स्वास्थ्य बीमा पर से जीएसटी हटाने की मांग करते हुए राज्यसभा में विपक्षी दलों के सदस्यों ने कहा कि इलाज का भारी भरकम खर्च आम आदमी की कमर तोड़ देता है और फिर भी उसे सरकारी अस्पतालों में राहत मुश्किल से ही मिल पाती है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के कामकाज पर राज्यसभा में हुई चर्चा में हिस्सा ले रहे राष्ट्रीय जनता दल के प्रोफेसर मनोज कुमार झा ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र की समस्याएं पूंजीवाद से पैदा हुई हैं। ‘‘इलाज का खर्च लोगों को गरीब बना रहा है।’’
उन्होंने सवाल किया कि सांसदों के पास एम्स जैसे संस्थानों में भर्ती कराने के बहुतायत अनुरोध क्यों आते हैं? इसका जवाब है कि पांच सितारा अस्पतालों में आम आदमी कैसे जा सकता है। उन्होंने कहा कि पूंजीवादी समाज की वजह से फार्मा इंडस्ट्री ने स्वास्थ्य के क्षेत्र पर गहरी पकड़ बना रखी है।
झा ने कहा ‘‘अनुबंध व्यवस्था के कारण चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग निजी क्षेत्र का रुख करते हैं। यह समस्या क्यों दूर नहीं की जाती?’’
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट आवंटन को बढ़ाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि आशा कार्यकर्ता जमीन से जुड़ी स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं और उनका मानदेय बढ़ाने के साथ साथ उन्हें सेवानिवृत्ति के लाभ भी दिए जाने चाहिए।
उन्होंने कहा ‘‘एम्स कई जगह बने हैं। लेकिन दिल्ली के एम्स की एक खास संस्कृति है। वह दूसरे संस्थानों में नहीं है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।’’
झा ने कहा ‘‘देश में कहीं भी मौत होगी तो उसमें एक न एक बिहारी जरूर होगा। यह राज्य हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। हमारे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने की बेहद सख्त जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि जीवन बीमा जीवन के लिए होना चाहिए, न कि बीमा कंपनियों के लिए।
समाजवादी पार्टी की जया बच्चन ने कहा कि यह सदन बुद्धिजीवियों का है और उन्हें सोचना होगा कि आज भी देश में बच्चे कुपोषण की गिरफ्त में क्यों हैं।
उन्होंने कहा ‘‘छोटे शहरों में आज भी संयुक्त परिवार हैं। लेकिन बड़े शहरों में संतान अक्सर आजीविका के लिए दूर और कभी कभी देश के बाहर भी चली जाती है। ऐसे में बुजुर्ग माता पिता अकेले रह जाते हैं। उन्हें डिमेन्शिया और अल्जाइमर जैसी समस्या हो जाती है।’’
उन्होंने कहा कि इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये बीमारियां समय पर इलाज के अभाव में बढ़ जाती हैं।
उन्होंने कहा कि देश में अंग प्रतिरोपण के मामले बढ़ रहे हैं लेकिन क्या प्रतिरोपण के लिए अंग मिल पाते हैं और क्या प्रतिरोपण की लागत इतनी किफायती है कि जरूरत पड़ने पर आम आदमी इसके लिए सोच सके।
जया ने कहा कि देश में एक हजार लोगों पर एक साइकायट्रिस्ट (मनोचिकित्सक) है और मानसिक समस्याएं न केवल बढ़ रही हैं बल्कि इनके बारे में लोग बात करने से हिचकिचाते हैं।
उन्होंने कहा ‘‘एक बार मेरे पति की तबियत बहुत खराब थी और उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी। सिलिंडर खत्म हो गया और हमारी जान पर बन गई क्योंकि ऑक्सीजन का सिलिंडर मिल नहीं रहा था। किसी ने ऑक्सीजन की व्यवस्था कर दी। लेकिन वह दौर आज भी कंपकंपा देता है। कल्पना कीजिये की आम व्यक्ति क्या करता होगा इन हालात में।’’
कांग्रेस की जे बी माथेर हीशम ने कहा कि केरल में आशा कार्यकर्ता अपना मानदेय बढ़ाने की मांग कर रही हैं और कल से उनकी भूख हड़ताल शुरू होने जा रही है। ‘‘उनकी समस्याओं की ओर किसी का ध्यान नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं की तरह ही 66 हजार से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का भी मानदेय नहीं बढ़ाया गया है। उन्हें 12500 प्रति माह मानदेय मिलता है जिसे बढ़ाया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इन सभी कार्यकर्ताओं की सेवाओं को ध्यान में रखते हुए उनका मानदेय बढ़ाया जाना चाहिए और उन्हें सामाजिक सुरक्षा दी जानी चाहिए।
आईयूएमएल के अब्दुल वहाब ने कहा कि अस्पतालों में रिक्त पदों पर भर्ती की जानी चाहिए, स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन एवं मानदेय में वृद्धि की जानी चाहिए तथा अस्पतालों में चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस के मोहम्मद नदीमुल हक ने कहा कि उनकी पार्टी ने मेडिकल बीमा से जीएसटी हटाने की लगातार मांग की है लेकिन इस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि अस्पतालों में रिक्त पदों पर ही भर्ती नहीं हो रही है तो आगे की बात सोचना ही बेमानी है। ‘‘सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव है। जब तक सरकारी अस्पतालों को मजबूत नहीं बनाया जाएगा, आम लोगों की स्वास्थ्य समस्या हल नहीं होगी।’’
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने स्वास्थ्य बजट को लगातार बढ़ाया है, राज्य में मेडिकल कालेज, मेडिकल की सीटें, डॉक्टरों की संख्या, अस्पतालों की संख्या, स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या में लगभग दोगुना वृद्धि हुई है। ‘‘अगर हमें विकसित भारत बनाना है तो स्वास्थ्य को पहले मजबूत बनाना होगा।’’
भाषा
मनीषा