सपा नेता रामगोपाल यादव का दावा : एक तिहाई सांसद एमपीलैड के कारण हार रहे हैं, राशि बढ़ाने को कहा
ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र माधव
- 19 Mar 2025, 01:13 PM
- Updated: 01:13 PM
नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) राज्यसभा में सपा के नेता रामगोपाल यादव ने बुधवार को दावा किया कि एक तिहाई लोकसभा सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (एमपीलैड) यानी सांसद निधि के कारण चुनाव हार जाते हैं और उन्होंने इसकी राशि वर्तमान पांच करोड़ रूपये से बढ़ाकर कम से कम 20 करोड़ रुपये प्रति वर्ष किए जाने अन्यथा इसे समाप्त किए जाने का सुझाव दिया।
उच्च सदन में शून्यकाल के दौरान इस मामले को उठाते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के रामगोपाल यादव ने कहा कि सांसद निधि, खासकर लोकसभा के सदस्यों के लिए एक संकट बन गयी है और इनमें से करीब एक तिहाई सांसद तो सिर्फ सांसद निधि के कारण चुनाव हार जाते हैं।
सांसद निधि के तहत प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए पांच करोड़ रुपये मिलते हैं। राज्यसभा के सदस्य अपने राज्य (जहां से वह निर्वाचित हुआ है) के किसी एक अथवा अधिक जिलों में इस निधि से विकास कार्यों की सिफारिश कर सकता है।
यादव ने कहा, ‘‘सांसद निधि सभी (सांसदों) के लिए संकट बन गयी है, खासकर लोकसभा के सदस्यों के लिए। लोकसभा के एक तिहाई सांसद सिर्फ सांसद निधि के कारण चुनाव हार जाते हैं।’’
उन्होंने कहा कि लोग ये समझते हैं कि पता नहीं सांसदों को कितना पैसा मिलता है क्योंकि गांव का एक प्रधान आता है और 10 करोड़ का काम दे जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘रोजाना सौ से दो सौ लोग सांसदों के खिलाफ हो जाते हैं।’’
सपा के वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि जब सांसद निधि की शुरुआत की गई थी तब एक किलोमीटर सीसी रोड (साढ़े तीन मीटर चौड़ी) 13 लाख रुपये में बनती थी लेकिन अब यही सड़क एक करोड़ 10 लाख रुपये में बन रही है।
उन्होंने कहा कि पहले हैंडपंप 15,000 रूपये में लगता था लेकिन अब यह 85,000 रूपये में लग रहा है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में विधायकों को पांच करोड़ रूपये, दिल्ली में 10 करोड़ रूपये और केरल में सात करोड़ रूपये की निधि मिलती है जबकि सांसदों को अब भी सांसद निधि में पांच करोड़ रूपये ही मिल रहे हैं।
यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश में एक लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सभा क्षेत्र आते हैं जबकि कुछ संसदीय क्षेत्रों में छह विधानसभा क्षेत्र भी आते हैं।
उन्होंने कहा कि सांसदों को पांच करोड़ रूपये मिलते हैं और उसमें भी 18 प्रतिशत जीएसटी कट जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘तो 4 करोड़ 10 लाख रूपये बचे। उत्तर प्रदेश में एक सांसद एक साल में एक विधानसभा क्षेत्र में एक किलोमीटर सड़क भी नहीं बनवा सकता। सबके सामने समस्या है।’’
यादव ने सांसद निधि से किए जाने वाले विकास कार्यो में होने वाले खर्च के लिए निगरानी तंत्र की कमी का मुद्दा भी उठाया।
उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली से जाने वाले पैसे को लोग समझते कि यह फ्री (मुफ्त) का है। इसलिए मनचाहा एस्टीमेट (अनुमानित खर्च) बना देते हैं।’’
सपा सदस्य ने कहा कि अगर कोई खुद 1000 लीटर की पानी की टंकी और समरसिबल पंप लगाए तो एक लाख रूपये में लग जाएगी लेकिन वही जब सांसद निधि से बनती है तो पांच लाख रूपये में लगेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं तीन सुझाव देना चाहता हूं। इस निधि को बढ़ाकर 20 करोड़ प्रति वर्ष किया जाए। जीएसटी से इसको मुक्त रखा जाए। गुणवत्ता की जांच के लिए तकनीकी प्रकोष्ठ बनाया जाए। और अगर यह संभव नहीं है तो सांसद निधि खत्म कर दिया जाए।’’
सदन में मौजूद कई सदस्यों ने इसका समर्थन किया।
इस पर, सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि देश में सांसदों और विधायकों के लिए समान तंत्र नहीं है।
उन्होंने कहा कि कई राज्य अपने विधायकों को सांसदों की तुलना में ‘बहुत अधिक’ वेतन और भत्ते देते हैं।
उन्होंने कहा कि यहां तक कि विधायकों को मिलने वाली पेंशन में भी राज्यवार बहुत अंतर है।
उन्होंने कहा कि ये ऐसे मुद्दे हैं जिनके समाधान विधायिका निकाल सकती है।
धनखड़ ने कहा, ‘‘इससे नेताओं को और सरकार के साथ ही कार्यपालिका को भी मदद मदद मिलेगी। यह उच्च गुणवत्ता का निवेश भी सुनिश्चित करेगा।’’
भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र