न्यायालय की पूर्ण पीठ का वरिष्ठ अधिवक्ता को कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला
अमित नरेश
- 21 Mar 2025, 03:24 PM
- Updated: 03:24 PM
नयी दिल्ली, 21 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक वरिष्ठ अधिवक्ता को कारण बताओ नोटिस जारी करके यह पूछने का निर्णय किया है कि शीर्ष अदालत द्वारा उन्हें प्रदान किया गया दर्जा क्यों न रद्द कर दिया जाए।
यह अभूतपूर्व निर्णय वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के खिलाफ कदाचार के आरोपों के मद्देनजर आया है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा बुलाई गई पूर्ण पीठ ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया। इसमें उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष के सभी न्यायाधीश शामिल थे।
शीर्ष अदालत ने 20 फरवरी को मल्होत्रा के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की थी। उन पर शीर्ष अदालत की चेतावनियों के बावजूद भ्रामक बयान देने के अलावा कैदियों की समयपूर्व रिहायी के कई मामलों में तथ्यों को दबाने का आरोप है।
पूर्ण पीठ ने अपने महासचिव भरत पराशर को कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए अधिकृत किया। इसने कहा कि मल्होत्रा को दर्जा रद्द किये जाने से पहले अपने आचरण को स्पष्ट करने के लिए एक और अवसर दिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बीस फरवरी को अपने फैसले में हाल ही में एक मामले में मल्होत्रा के आचरण पर सवाल उठाया था और उन पर यह खुलासा न करने का आरोप लगाया था कि शीर्ष अदालत ने दोषी की सजा कम करने पर 30 साल की रोक लगायी है।
इसी तरह, शीर्ष अदालत ने पाया कि मल्होत्रा ने अन्य अवसरों पर भी उच्चतम न्यायालय को गुमराह किया है।
उसने कहा था, ‘‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि हम वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के विरुद्ध कोई अंतिम निष्कर्ष दर्ज नहीं कर रहे हैं, इस प्रश्न पर कि क्या उनका दर्जा वापस लिया जा सकता है। हम इस मुद्दे पर निर्णय लेने का काम भारत के प्रधान न्यायाधीश पर छोड़ते हैं।’’
पीठ ने कहा कि मल्होत्रा को 14 अगस्त, 2024 को वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा दिया गया था।
उसने कहा, ‘‘इस अपील में पारित इस न्यायालय के आदेशों और अन्य मामलों में अधिवक्ता के आचरण से यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या इंदिरा जयसिंह-I और इंदिरा जयसिंह-II के मामले में इस न्यायालय के निर्णयों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, जो 1961 के अधिनियम के तहत इस न्यायालय और देश भर के उच्च न्यायालयों द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ताओं के दर्जे के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करते हैं।"
पीठ ने सवाल किया कि क्या इन निर्णयों के तहत स्थापित वरिष्ठ अधिवक्ता के दर्जे की प्रणाली ‘‘वास्तव में प्रभावी रूप से काम कर रही है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इस सवाल का जवाब देने के लिए गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है कि क्या उक्त निर्णयों के संदर्भ में बनाए गए नियमों ने यह सुनिश्चित किया है कि केवल योग्य अधिवक्ताओं को ही दर्जा दिया जा रहा है।’’
पीठ ने कहा कि वह न तो दो बाध्यकारी निर्णयों से असहमत हो सकती है और न ही विपरीत दृष्टिकोण अपना सकती है।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह कुछ गंभीर संदेह और चिंताएं व्यक्त करना है। हम यह निर्देश देने का प्रस्ताव करते हैं कि इस मुद्दे को भारत के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए ताकि यह विचार किया जा सके कि क्या इस मुद्दे पर उचित संख्या वाली पीठ द्वारा पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।’’
भाषा अमित