न्यायालय ने कश्मीर विवि के कुलपति की हत्या के मामले में आरोपियों को बरी करने का फैसला बरकरार रखा
अमित पवनेश
- 22 Mar 2025, 06:58 PM
- Updated: 06:58 PM
नयी दिल्ली, 22 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति मुशीर-उल-हक और उनके निजी सचिव के 1990 में सनसनीखेज अपहरण और हत्या के मामले में प्रतिबंधित जम्मू कश्मीर स्टूडेंट्स लिबरेशन फ्रंट (जेकेएसएलएफ) के कथित सदस्यों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्ल भुइयां की पीठ ने अब निरस्त हो चुके आतंकवादी और विध्वंसकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1987 (टाडा) के तहत दर्ज मामले में सात व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की अपील खारिज कर दी।
अदालत ने मामले से निपटने के तरीके की आलोचना करते हुए कहा कि प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को "पूरी तरह दरकिनार" किया गया तथा आरोपियों व पीड़ितों दोनों को ही सत्य और न्याय प्राप्त नहीं हुआ।
शीर्ष अदालत ने कहा कि विधायिका ने पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उससे ऊपर के पुलिस अधिकारियों की निष्पक्षता और ईमानदारी पर बहुत भरोसा जताया है और उन्हें आरोपियों के इकबालिया बयान दर्ज करने की वृहद शक्ति प्रदान की है, जो प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की पूर्ति के अधीन साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘लेकिन हमें डर है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है, प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों को पूरी तरह से दरकिनार किया गया। विशेष अदालत ने यह टिप्पणी करने से परहेज किया कि यह सत्ता और अधिकार के दुरुपयोग का मामला था।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वास्तव में यह दुखद सच्चाई बयां करता है कि इस मामले में जांच और सुनवाई किस तरह से हुई, जिसमें सत्य और न्याय पीड़ितों व आरोपियों, दोनों को ही प्राप्त नहीं हुआ।
पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे कठोर प्रावधानों को निरस्त करना व्यर्थ नहीं है। हम यही कहते हैं और कुछ नहीं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे विशेष अदालत द्वारा आरोपियों को बरी करने के निर्णय में कोई त्रुटि या कमी नजर नहीं आती।
करतार सिंह मामले में अपने पहले के फैसले का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि कबूलनामे को मुक्त माहौल में दर्ज किया जाना चाहिए।
उसने कहा कि भारी सुरक्षा वाले बीएसएफ शिविर में इकबालिया बयान दर्ज करना, जहां आरोपी के लिए माहौल आमतौर पर डरावना होता है, उसे मुक्त माहौल में दर्ज करना नहीं कहा जा सकता।
सीबीआई के अनुसार, जांच से पता चला कि हिलाल बेग प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जम्मू कश्मीर स्टूडेंट्स लिबरेशन फ्रंट (जेकेएसएलएफ) का स्वयंभू मुख्य कमांडर था।
उसने कहा कि बेग ने जेकेएसएलएफ के अन्य आरोपी सदस्यों जावेद शाला, ताहिर अहमद मीर, मुश्ताक अहमद शेख, मुश्ताक अहमद खान, मोहम्मद हुसैन खान और मोहम्मद सलीम जरगर के साथ मिलकर कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीर-उल-हक और अन्य का अपहरण करने की साजिश रची। सीबीआई के अनुसार इसका उद्देश्य लोगों के मन में आतंक पैदा करना और सरकार को उनके सहयोगियों - निसार अहमद जोगी, गुलाम नबी भट और फैयाज अहमद वानी को रिहा करने के लिए मजबूर करना था।
हक और उनके निजी सचिव अब्दुल गनी को आतंकवादियों ने 6 अप्रैल 1990 को अपने साथियों की रिहायी की मांग के लिए अगवा कर लिया था। आरोप है कि मांगें पूरी न होने पर 10 अप्रैल 1990 को दोनों बंधकों की हत्या कर दी गई।
भाषा अमित