अदालत की वेबसाइट पर जारी वीडियो न्यायाधीश के घर से पैसे नहीं मिलने के डीएफएस के दावे के विरोधाभासी
शफीक दिलीप
- 23 Mar 2025, 05:25 PM
- Updated: 05:25 PM
नयी दिल्ली, 23 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय की जांच रिपोर्ट और उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए एक वीडियो ने दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) के इस दावे पर संदेह पैदा कर दिया है कि 14 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग बुझाते समय अग्निशमन कर्मियों को कोई नकदी नहीं मिली थी।
पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय को उपलब्ध कराया गया यह वीडियो शनिवार रात 25 पृष्ठों की रिपोर्ट के हिस्से के रूप में उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) के कर्मी जिन वस्तुओं में आग लगी थी उसे बुझाते दिख रहे हैं। इन वस्तुओं में स्पष्ट तौर पर लगभग आधे जले हुए नोट भी शामिल हैं।
डीएफएस प्रमुख अतुल गर्ग ने शुक्रवार को ‘पीटीआई’ को बताया था कि 14 मार्च को आग लगने की घटना के दौरान अग्निशमन कर्मियों को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से कोई नकदी नहीं मिली थी।
डीएफएस प्रमुख गर्ग ने 21 मार्च को ‘पीटीआई’ और दो समाचार चैनल से कहा था, ‘‘आग बुझाने के तुरंत बाद हमने पुलिस को आग की घटना की सूचना दी। इसके बाद अग्निशमन विभाग के कर्मियों का दल मौके से रवाना हो गया। हमारे अग्निशमन कर्मियों को अग्निशमन अभियान के दौरान कोई नकदी नहीं मिली।’’
हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट गर्ग के बयानों के विरोधाभासी है।
डीएफएस प्रमुख ने यह भी कहा था कि कंट्रोल रूम को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर आग लगने की सूचना 14 मार्च को रात 11 बजकर 35 मिनट पर मिली थी और दो दमकल वाहनों को घटनास्थल पर रवाना किया गया था।
न्यायमूर्ति उपाध्याय की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली पुलिस प्रमुख ने 16 मार्च को उन्हें बताया कि न्यायमूर्ति वर्मा के निजी सचिव ने न्यायाधीश के आवास पर आग लगने की घटना की सूचना देने के लिए सबसे पहले पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन किया था और डीएफएस को अलग से सूचित नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति उपाध्याय ने भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को सौंपी गई अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा है, ‘‘यह भी बताया गया है कि अग्निशमन सेवा को अलग से सूचित नहीं किया गया था। हालांकि, पीसीआर से संपर्क किये जाने के बाद, आग से संबंधित सूचना स्वत: दिल्ली अग्निशमन सेवा को भेज दी गई थी।’’
शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों पर संज्ञान लिया था, जिनके आवास पर आग लगने की घटना के बाद कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी।
साथ ही उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का कथित तौर पर फैसला किया था।
प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने शनिवार को न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की और निर्देश दिया कि उन्हें कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। न्यायमूर्ति उपाध्याय की रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश को सौंपे जाने के बाद जांच का आदेश दिया गया।
जांच समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं।
दरअसल, 14 मार्च को होली की रात लगभग 11:35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास में आग लगने के बाद दमकल कर्मी आग बुझाने पहुंचे थे। इस दौरान वहां कथित तौर पर बड़ी मात्रा में नकदी मिली थी।
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा था कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच शुरू की है और उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने का प्रस्ताव भी है।
बयान में कहा गया था, ‘‘न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर हुई घटना के संबंध में गलत सूचना और अफवाहें फैल रही हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि सूचना प्राप्त होने पर न्यायमूर्ति उपाध्याय ने ‘‘साक्ष्य और सूचना एकत्रित करने के लिए आंतरिक जांच प्रक्रिया शुरू कर दी।’’
बताया जाता है कि न्यायमूर्ति उपाध्याय ने 20 मार्च को कॉलेजियम की बैठक से पहले ही जांच शुरू कर दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उनके तबादले के प्रस्ताव पर विचार 20 मार्च को प्रधान न्यायाधीश और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने किया था और उसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा के अलावा शीर्ष न्यायालय के परामर्शदात्री न्यायाधीशों, संबंधित उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को पत्र भेजे गए थे।
न्यायालय ने कहा, ‘‘प्राप्त जवाबों पर विचार किया जाएगा और उसके बाद कॉलेजियम एक प्रस्ताव पारित करेगा।’’
न्यायमूर्ति वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि घर के स्टोर रूम में तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने कभी नकदी रखी थी। उन्होंने नकदी बरामदगी संबंधी विवाद में अपने ऊपर लगे आरोपों को जोरदार तरीके से खंडन किया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सौंपे गए अपने जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा है कि उनके आवास से नकदी मिलने के आरोप स्पष्ट रूप से ‘‘उन्हें फंसाने और बदनाम करने की साजिश’’ प्रतीत होते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, न्यायमूर्ति वर्मा ने 11 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने से पहले एक फरवरी, 2016 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। उनका आठ अगस्त, 1992 को एक वकील के रूप में पंजीकरण हुआ था।
उन्हें 13 अक्टूबर, 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) की पढ़ाई की और मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।
भाषा
शफीक