न्यायमूर्ति वर्मा नकदी बरामदगी विवाद : राज्यसभा के सभापति ने सदन के नेताओं की बैठक बुलाई
मनीषा माधव
- 25 Mar 2025, 02:02 PM
- Updated: 02:02 PM
नयी दिल्ली, 25 मार्च (भाषा) राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को विभिन्न दलों के नेताओं की एक बैठक बुलाई, जिसमें यह तय किया जाएगा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से कथित तौर पर नकदी मिलने के मामले पर चर्चा की मांग करने वाले कुछ सांसदों की अपील पर सदन को क्या कदम उठाना चाहिए।
उच्च सदन की बैठक शुरु होने पर सभापति धनखड़ ने बताया कि उन्हें विभिन्न मुद्दों पर नियम 267 के तहत, नियत कामकाज स्थगित कर चर्चा करने के लिए आठ नोटिस मिले हैं जिन्हें उन्होंने खारिज कर दिया है। इनमें एक नोटिस आईयूएमएल के हारिस बीरन का भी था।
सभापति ने बताया कि उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों के सदन के नेताओं की बैठक मंगलवार को शाम साढ़े चार बजे बुलाई है।
धनखड़ ने बताया कि उन्होंने सोमवार को सदन के नेता जे पी नड्डा और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे से ‘‘बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर मुलाकात की थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह मुद्दा निस्संदेह काफी गंभीर है।’’
उनके अनुसार, खरगे ने सदन के नेताओं की बैठक बुलाने का सुझाव दिया था और नड्डा ने इस पर सहमति जताई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हम तीनों ने घटनाक्रम पर गौर किया और यह भी देखा कि पहली बार, अभूतपूर्व तरीके से, भारत के प्रधान न्यायाधीश ने सब कुछ सार्वजनिक मंच पर डालने की पहल की।’’
धनखड़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर कथित रूप से भारी मात्रा में नकदी मिलने से संबंधित फोटो, वीडियो सहित जांच रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपलोड किए जाने की ओर परोक्ष रूप से इंगित कर रहे थे।
दिल्ली के पॉश लुटियंस इलाके में 14 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास के एक कमरे में आग लगने के बाद, उसे बुझाते समय अग्निशमन कर्मियों और पुलिसकर्मियों ने कथित रूप से नकदी बरामद की थी।
भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने आग की घटना के बाद नोटों की ‘‘चार से पांच अधजली बोरियां’’ जाए जाने की जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया है।
सभापति धनखड़ ने कहा कि विधायिका और न्यायपालिका तब बेहतर तरीके से काम करती हैं, जब वे अपने-अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अपने पास उपलब्ध संपूर्ण सामग्री को सार्वजनिक डोमेन में डाले जाने की को देश भर में सराहना की गई है।
कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने कहा कि न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि ऐसा होते हुए दिखना भी चाहिए और इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
धनखड़ ने संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम की ओर परोक्ष से इंगित करते हुए कहा कि यदि न्यायिक नियुक्तियों की व्यवस्था को उच्चतम न्यायालय ने रद्द नहीं किया होता, तो चीजें अलग होतीं।
उन्होंने कहा कि कानून को राज्यसभा ने लगभग सर्वसम्मति से पारित किया, जिसमें कोई असहमति नहीं थी, केवल एक व्यक्ति अनुपस्थित था। उन्होंने कहा कि बाद में 16 राज्य विधानसभाओं ने इसका समर्थन किया और संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए गए।
सभापति ने कहा ‘‘अब, यह दोहराने का अवसर है (कि यह) एक दूरदर्शी कदम थ।’’
धनखड़ ने कहा कि संविधान के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी को भी संविधान संशोधन के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति देता है।
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान संशोधन की समीक्षा या अपील का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। यदि संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा कोई कानून (पारित) किया जाता है, तो इस पर न्यायिक समीक्षा हो सकती है कि यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं।’’
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि जब तक कोई दोषी साबित नहीं हो जाता, तब तक उसे निर्दोष माना जाता है, लेकिन सांसदों को ‘‘न्यायिक गड़बड़ी’’ के बारे में सोचना चाहिए।
उन्होंने कहा ‘‘देश के सामने दो परिस्थितियाँ हैं। एक वह है जो संसद से निकली है और राज्य विधानसभाओं द्वारा विधिवत अनुमोदित है (और) राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 111 के तहत उस पर हस्ताक्षर किए हैं। दूसरा न्यायिक आदेश है। ’’
उन्होंने कहा ‘‘अब हम एक चौराहे पर हैं। मैं सदस्यों से दृढ़ता से आग्रह करता हूँ कि वे इस पर विचार करें। संसद से निकली हुई और विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किसी भी संस्था द्वारा इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। मैं फिर से दोहराता हूँ कि इस मामले को देखने के लिए यही व्यवस्था होना चाहिए।’’
मौजूदा स्थिति को ‘‘अत्यंत पीड़ादायक’’ बताते हुए धनखड़ ने सांसदों से इसके परिणामों पर विचार करने को कहा।
उन्होंने कहा ‘‘हम इस अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दे पर सदन में वापस आएंगे, जो न्यायिक गड़बड़ी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह संसद की संप्रभुता और संसद की सर्वोच्चता से संबंधित है, और क्या हम प्रासंगिक हैं। ’’
धनखड़ ने कहा, ‘‘यदि हम संविधान में संशोधन करते हैं और वह निष्पादन योग्य नहीं है.... तो मुझे कोई संदेह नहीं है कि संसद के पास शक्ति है, किसी भी संस्था में कोई भी शक्ति यह सुनिश्चित करने की है कि भारतीय संसद से जो निकलता है, उसे आवश्यक संख्या में राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन किया जाता है..., वह बरकरार रहे।’’
खरगे ने कहा कि जब उन्होंने और नड्डा ने सोमवार को धनखड़ से मुलाकात की, तो उन्हें लगा कि अगले कदम पर निर्णय लेने से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को विश्वास में लिया जाना चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने सदन के नेताओं की बैठक का अनुरोध किया था, जो अब मंगलवार दोपहर को होगी।
भाषा मनीषा