उच्चतम न्यायालय 1991 के उपासना स्थल अधिनियम से संबंधित याचिका पर मंगलवार को करेगा सुनवाई
सिम्मी मनीषा
- 31 Mar 2025, 11:43 AM
- Updated: 11:43 AM
नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 के एक प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगा।
इस अधिनियम में किसी स्थान के धार्मिक स्वरूप को 15 अगस्त, 1947 की स्थिति के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान है।
मंगलवार यानी एक अप्रैल की वाद सूची के अनुसार, याचिका पर भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई होगी।
यह अधिनियम किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाता है। कानून में किसी स्थान के धार्मिक स्वरूप को 15 अगस्त 1947 के अनुसार बनाए रखने की बात कही गई है। बहरहाल, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे से संबंधित विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
याचिका में उच्चतम न्यायालय से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि अदालतों को किसी पूजा स्थल के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए उचित आदेश पारित करने की अनुमति दी जाए।
इसमें अधिनियम की धारा 4(2) को चुनौती दी गई है जो किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने की कार्यवाही के साथ-साथ इस पर नये सिरे से मामला दायर करने पर रोक लगाती है।
विधि छात्र नितिन उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘केंद्र सरकार ने अपनी विधायी शक्ति से परे जाकर उस न्यायिक उपचार पर रोक लगाई है जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। यह सर्वविदित है कि सक्षम न्यायालय में मुकदमा दायर करके न्यायिक उपचार पाने के अधिकार पर रोक नहीं लगाई जा सकती और न्यायालयों की शक्ति को कम नहीं किया जा सकता है। यह भी सर्वविदित है कि इस तरह का इनकार विधायी शक्ति से परे है और इसे संविधान की मूल विशेषता का उल्लंघन माना गया है।’’
अधिवक्ता श्वेता सिन्हा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि अधिनियम में पूजा स्थलों की ‘‘संरचना, निर्माण या इमारत’’ में परिवर्तन पर रोक लगाए बिना इनके धार्मिक चरित्र की रक्षा करने को अनिवार्य बनाया गया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘किसी पूजा स्थल के मूल धार्मिक चरित्र को बहाल करने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन की अनुमति है।’’
इसमें कहा गया है कि अधिनियम किसी स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए किसी भी वैज्ञानिक या दस्तावेजी सर्वेक्षण पर रोक नहीं लगाता।
न्यायालय ने उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम पर कई याचिकाएं दायर होने पर नाराजगी व्यक्त करते हुए फरवरी में कहा था कि तीन न्यायाधीशों की पीठ 1991 के कानून से संबंधित लंबित नोटिस के बाद की याचिकाओं पर अप्रैल में सुनवाई करेगी।
शीर्ष अदालत ने हालांकि उन याचिकाकर्ताओं को नए कानूनी आधारों का हवाला देकर लंबित याचिकाओं में हस्तक्षेप के लिए आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की, जिन्होंने हाल में याचिकाएं दायर की हैं और इन पर नोटिस जारी नहीं किए गए हैं।
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर 2024 के अपने आदेश के जरिए विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी ढंग से रोक दिया था। इनमें वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण का अनुरोध किया गया था। संभल की शाही जामा मस्जिद में झड़पों में चार लोग मारे गए थे।
भाषा
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