स्कूल में भटककर आया खोया हुआ भालू का बच्चा, हृदयस्पर्शी प्रयासों से उसकी माँ से पुनः मिलाया गया
नेत्रपाल माधव
- 31 Mar 2025, 09:43 PM
- Updated: 09:43 PM
कोटा (राजस्थान), 31 मार्च (भाषा) यहां एक वन क्षेत्र में अपनी मां से बिछड़कर स्कूल में भटककर पहुंचे एक महीने के भालू के बच्चे को वनकर्मियों ने एक सप्ताह के अथक प्रयासों के बाद उसकी मां से मिला दिया।
कोटा के उप वन संरक्षक अनुराग भटनागर ने सोमवार को इस हृदयस्पर्शी घटना का जिक्र करते हुए बताया कि भालू के बच्चे को पिछले सोमवार को शंभूपुरा के वरिष्ठ राजकीय विद्यालय के कर्मियों ने सौंपा था। स्कूल में छात्रों को भालू का यह बच्चा घूमते हुए मिला था।
चूंकि शावक को जंगल में छोड़ना जोखिम भरा था, इसलिए उसे अभेड़ा जैविक उद्यान में आश्रय देने का निर्णय लिया गया तथा उसकी मां की तलाश के लिए कदम उठाए गए।
भटनागर ने कहा, ‘‘पशु चिकित्सक ने पाया कि बच्चा भालू स्वस्थ है। उसे जैविक पार्क में रखा गया, जहां वनकर्मियों ने उसकी स्थिति पर नजर रखी और उसे नियमित रूप से भोजन दिया।’’
इस बीच, वनपाल बुधराम जाट के नेतृत्व में एक अलग टीम को सोमवार से शनिवार तक हर रात शंभूपुरा के आसपास संभावित स्थानों पर मादा भालू की तलाश के लिए तैनात किया गया। मादा भालू को उसके बच्चे की ओर आकर्षित करने के लिए जंगल में ध्वनि रिकॉर्डिंग बजाई गई।
हालांकि, उसकी मां का पता लगाने के सभी प्रयास निरर्थक साबित हुए और विशेषज्ञों के सुझाव पर यह निर्णय लिया गया कि क्षेत्र में भालुओं के संभावित मार्ग पर 150 ‘कैमरा ट्रैप’ लगाए जाएंगे।
कैमरा ट्रैप गति और ताप सेंसर से सुसज्जित होते हैं तथा इनका उपयोग वन्यजीव गतिविधियों के चित्र या वीडियो बनाने के लिए किया जाता है।
हालांकि, रविवार शाम को एक सफलता तब मिली जब बुधराम जाट को सूचना मिली कि एक भालू और उसका बच्चा शंभूपुरा से लगभग 10 किलोमीटर दूर श्योपुरिया गांव में एक मंदिर के पास एक मांद में रह रहे थे।
भटनागर ने कहा, ‘‘शाम करीब 5.45 बजे जब सूचना मिली तो जाट उस समय अपने बाल कटवाने के लिए सलून में थे। उनके बाल तब तक आधे ही कटे थे, लेकिन वह पूरे बाल कटवाए बिना ही तत्काल संबंधित स्थान पर पहुंचे।’’
वनपाल बुधराम जाट ने बताया कि श्योपुरिया गांव के मंदिर के पुजारी ने उन्हें मंदिर के पास एक मांद में एक मादा भालू के अपने बच्चे के साथ रहने की सूचना दी थी।
उन्होंने कहा कि जैसे ही उन्हें इस बारे में पता चला, वह वन विभाग की टीम के साथ रात करीब आठ बजे बच्चे को लेकर बताए गए स्थान पर पहुंचे।
चूंकि भालुओं की सुनने और सूंघने की क्षमता दृष्टि से अधिक मजबूत होती है, इसलिए वन विभाग की टीम ने मंदिर के पास मांद से लगभग 50 फुट दूर बॉक्स को खोलकर रख दिया और इंतजार करने लगी।
शिशु भालू ने कुछ देर तक जानी-पहचानी गंध और आवाजें महसूस कीं और फिर वह बॉक्स से बाहर कूदकर मंदिर के पास बनी मांद की ओर भाग गया। मादा भालू भी अपने बच्चे के पास आती दिखी।
उप वन संरक्षक ने कहा कि जब मां और बच्चा दोनों करीब आए, तो मां ने कुछ सेकंड तक अपने बच्चे की पहचान की और फिर उसे उठाकर अपनी मांद में चली गई।
भटनागर ने सफल प्रयास के बाद कहा, ‘‘पूरी वन टीम के लिए यह खुशी और संतुष्टि का क्षण था, बच्चे को सफलतापूर्वक मां के साथ मिला दिया गया।’’
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