दुष्कर्म और गैर कानूनी धर्म परिवर्तन का मामला रद्द करने की मांग खारिज की
राजकुमार
- 01 Apr 2025, 10:04 PM
- Updated: 10:04 PM
प्रयागराज, एक अप्रैल (भाषा) एक हिंदू युवती का कथित रूप से गैर कानूनी ढंग से धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बनाने और दुष्कर्म करने के मामले को रद्द करने के लिए दायर की गयी याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसा धर्म परिवर्तन तभी वास्तविक माना जा सकता है जब धर्म बदलने वाले व्यक्ति की ‘ईश्वर (अल्लाह) एक है’ और मोहम्मद के “पैगंबरी चरित्र” पर आस्था हो।
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी कानून का उद्देश्य भ्रम, बल, अनुचित प्रभाव, लोभ या किसी अन्य फर्जी तरीके से एक व्यक्ति का किसी दूसरे धर्म में गैर कानूनी परिवर्तन रोकना है।
न्यायमूर्ति चौहान ने कहा कि कोई भी धर्म परिवर्तन तभी प्रामाणिक माना जाता है जब व्यक्ति का ह्रदय परिवर्तन हुआ हो और उसकी आस्था अपने मूल धर्म से कहीं अधिक नए धर्म में हो।
अदालत ने 27 मार्च को दिए अपने निर्णय में कहा, “एक व्यक्ति द्वारा इस्लाम धर्म अपनाने को तभी प्रामाणिक कहा जा सकता है जब वह वयस्क और मानसिक रूप से स्वस्थ हो एवं अपनी इच्छा से इस्लाम धर्म स्वीकार करे।”
अदालत ने कहा, ‘‘एक महिला के साथ दुष्कर्म का अपराध उस महिला को हिला कर रख देता है और उसकी गरिमा को तार-तार कर देता है । उस अपराध के संबंध में कोई समझौता इस अदालत को स्वीकार्य नहीं है।’’
न्यायमूर्ति चौहान ने कहा, “इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए यह अदालत पाती है कि भादंसं की धारा 376 (दुष्कर्म) और गैर कानून धर्म परिवर्तन के अपराध गंभीर प्रकृति और समझौते के अयोग्य हैं। इसलिए दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर मौजूदा कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती।”
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, सात जून, 2021 को दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि पीड़िता से राहुल उर्फ मोहम्मद अयान नाम के युवक ने अपनी पहचान छिपाकर फेसबुक पर दोस्ती की और शादी के उद्देश्य से उसे इस्लाम अपनाने के लिए बाध्य किया गया। इस बीच, याचिकाकर्ता द्वारा उसका यौन शोषण भी किया गया।
भाषा राजेंद्र