वे त्रि-भाषा फॉर्मूले का सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध कर रहे हैं: डीयू कुलपति
राजकुमार देवेंद्र
- 03 Apr 2025, 08:21 PM
- Updated: 08:21 PM
(मोहित सैनी)
नयी दिल्ली, तीन अप्रैल (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कुलपति योगेश सिंह ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत प्रस्तावित त्रि-भाषा फॉर्मूले का पुरजोर बचाव किया है और आलोचना को राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है।
सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि इस नीति का विरोध अकादमिक चिंताओं पर आधारित नहीं है, बल्कि आवश्यक शैक्षिक सुधारों के प्रतिरोध पर आधारित है।
सिंह ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन भाषाओं पर जोर दिया गया है - एक मातृभाषा है और विद्यार्थी कोई भी दो अन्य भाषाएं चुन सकते हैं। मातृभाषा पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन विकल्प खुला है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘दक्षिण भारत में अनावश्यक भय का कोई कारण नहीं है। विद्यार्थियों को अपनी अपेक्षाओं और पसंद के अनुसार भाषा चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यह नीति विद्यार्थियों को सशक्त बनाने के लिए है, न कि उन पर कोई भाषा थोपने के लिए।’’
उन्होंने कहा कि देश की शिक्षा व्यवस्था में नयी चीजें हो रही हैं और यह एक बदलाव है। उन्होंने कहा कि कई बार बदलाव को स्वीकार करना मुश्किल होता है क्योंकि उसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है।
एक आम गलत धारणा को स्पष्ट करते हुए सिंह ने शिक्षा के माध्यम और भाषा अध्ययन के बीच के अंतर को उजागर किया।
उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली विश्वविद्यालय देशभर के विद्यार्थियों को दाखिला देता है। यहां विद्यार्थी अंग्रेजी को शिक्षा के माध्यम के रूप में लेते हैं और कुछ पाठ्यक्रमों में हिंदी भी उपलब्ध है। हालांकि, अगर कोई विद्यार्थी गुजराती, मराठी या कन्नड़ जैसी भाषा में अध्ययन करना चाहता है, तो हमारे पास उसे प्रदान करने की सुविधाएं नहीं हैं। लेकिन कर्नाटक, महाराष्ट्र या गुजरात के विश्वविद्यालय ये सुविधाएं प्रदान करेंगे। विद्यार्थियों को वहीं जाना चाहिए जहां ऐसे विकल्प उपलब्ध हों।’’
उन्होंने बिना किसी ठोस तर्क के त्रि-भाषा फॉर्मूले का विरोध करने वालों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, ‘‘जब हम विद्यार्थियों को किसी खास भाषा को पढ़ने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं, तो इसका अनावश्यक रूप से विरोध करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वे सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं। मुझे इस तर्क में कोई दम नजर नहीं आता।’’
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