मनोज कुमार : मेरे देश की धरती सोना उगले...
शफीक पवनेश नरेश
- 04 Apr 2025, 05:07 PM
- Updated: 05:07 PM
(फाइल फोटो के साथ)
मुंबई, चार अप्रैल (भाषा) राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत अपने चरित्रों से भारतीय जनमानस में राष्ट्रप्रेम के जज्बे को हवा देने वाले अभिनेता मनोज कुमार सिने प्रेमियों द्वारा हमेशा ‘भारत कुमार’ के रूप में ही याद किए जाएंगे।
मनोज कुमार अभिनीत फिल्म ‘उपकार’ का गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले...’ आज भी देश के अघोषित राष्ट्रगान का दर्जा रखता है। कोई भी राष्ट्रीय पर्व हो, किसी महान नेता की जयंती हो या चुनाव का अवसर हो, यह गीत आज भी जब बजता है तो लोगों की भुजाएं देशभक्ति भावना से फड़कने लगती हैं।
एक अभिनेता और फिल्मकार के रूप में उन्होंने देशभक्ति की भावना को रूपहले पर्दे पर उस समय उतारा जब आजादी के बाद का उदीयमान भारत अपने सपनों और संभावनाओं को साकार कर रहा था।
कुमार ने 1960 और 1970 के दशक के मध्य में ‘‘उपकार’’, ‘‘पूरब और पश्चिम’’ और ‘‘रोटी, कपड़ा और मकान’’ जैसी फिल्मों के जरिये उभरते भारत की कहानियों को बड़े पर्दे पर शानदार तरीके से बयां किया। इन सभी फिल्मों को दर्शकों का खूब प्यार मिला। देशभक्ति पर आधारित ‘शहीद’ और ‘उपकार’ जैसी लोकप्रिय फिल्मों में अभिनय के बाद वह ‘भारत कुमार’ के नाम से मशहूर हुए।
मनोज कुमार (87) का वृद्धावस्था से जुड़ी समस्याओं के चलते मुंबई के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में शुक्रवार तड़के निधन हो गया।
देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के जरिये दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाले मनोज कुमार ने फिल्म ‘‘हिमालय की गोद में’’, ‘‘दो बदन’’ और ‘‘पत्थर के सनम’’ जैसी फिल्मों के रोमांटिक नायक के रूप में भी अपना लोहा मनवाया। मनोज कुमार को पहली सफलता 1962 में फिल्म ‘‘हरियाली और रास्ता’’ से मिली, जिसमें वह अभिनेत्री माला सिन्हा के साथ नजर आये।
मनोज कुमार की फिल्मों की तरह उनके गीत भी बेहद लोकप्रिय हुए। इन गीतों में ''तौबा ये मतवाली चाल'', ''महबूब मेरे, महबूब मेरे ..’’, ''चांद सी महबूबा हो मेरी', ''एक प्यार का नगमा है'' और ''पत्थर के सनम'' आदि गीतों की एक लंबी सूची है।
हालांकि मनोज कुमार की विरासत हमेशा उनके दौर की देशभक्तिपूर्ण फिल्मों से ही जुड़ी रहेगी। उनकी कुछ फ़िल्में, जिनमें "पूरब और पश्चिम" भी शामिल है, आज भी दर्शकों को झकझोर देती हैं।
कुमार ने 1967 में फिल्म ‘‘उपकार’’ से निर्देशन की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका भी निभाई। यह तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के लोकप्रिय नारे ‘जय जवान, जय किसान’ से प्रेरित थी। फिल्म के जरिये ग्रामीण बनाम शहरी जीवन को पेश किया गया, जिसका नायक एक किसान है और वह अपने देश के लिए सैनिक बन जाता है।
कुमार को इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। 'उपकार' में अभिनेता प्राण ने दयालु और बुद्धिमान मलंग चाचा की भूमिका निभा अपनी क्रूर खलनायक की छवि को पीछे छोड़ दिया। यह फिल्म प्राण के करियर में भी महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
फिल्म ‘‘उपकार’’ से दो साल पहले ‘‘शहीद’’ आई थी, जो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन पर आधारित थी जिसमें कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
मनोज कुमार की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक ‘‘रोटी कपड़ा और मकान’’ (1974) है, जिसके वह निर्माता-निर्देशक थे और उन्होंने इस फिल्म में अभिनय भी किया था।
जीनत अमान, अमिताभ बच्चन और शशि कपूर जैसे कलाकारों से सजी यह फिल्म बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दों के साथ-साथ एक आदर्श भारत के विचार को पेश करती है।
मनोज कुमार का वास्तविक नाम हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी था। उनका जन्म वर्ष 1937 में अविभाजित भारत के एबटाबाद शहर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। वर्ष 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में अपना सबकुछ छोड़कर दिल्ली आ गया। वो बहुत ही मुश्किल समय था। उन्होंने अपने दो महीने के भाई को खो दिया, क्योंकि शहर में भड़के दंगों के कारण उसकी अस्पताल में देखभाल नहीं की जा सकी।
कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की, जहां उन्होंने थियेटर की गतिविधियों में सक्रिय तौर पर भाग लिया। अपने अच्छे चेहरे-मोहरे के लिए मशहूर अभिनेता ने इसके बाद हिंदी सिनेमा में पहचान बनाने के लिए मुंबई का रुख किया।
कई साल बाद हरिकृष्ण, मनोज कुमार बन गए।
कुमार ने 2021 में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ''मुझे वह समय याद है जब मैं 1949 में रिलीज हुई 'शबनम' में दिलीप कुमार साहब को देखने गया था। उनकी वजह से ही मैं सिनेमा का प्रशंसक बना। मुझे फिल्म में उनके निभाये किरदार से प्यार हो गया जिसका नाम मनोज था... मैंने तुरंत फैसला किया कि अगर मैं कभी अभिनेता बनूंगा तो अपना नाम मनोज कुमार ही रखूंगा।"
दिलीप कुमार और उनकी पत्नी सायरा बानो जीवनभर उनके मित्र रहे।
उन्होंने साक्षात्कार में कहा था कि वह बहुत खुश हुए थे जब दिलीप कुमार ने 1981 की ऐतिहासिक फिल्म ‘क्रांति’ में काम करने के लिए सहमति जताई थी। यह एक बड़ी हिट फिल्म थी और उनके करियर की आखिरी बड़ी सफलता भी थी।
हालांकि कुमार पहली बार 1957 में "फैशन" में बड़े पर्दे पर दिखे, लेकिन उनके काम को पहचान तीन साल बाद 1960 में आई फिल्म "कांच की गुड़िया" से मिली। उनकी आखिरी फिल्म 1995 में प्रदर्शित हुई "मैदान-ए-जंग" थी।
इसके बाद उन्होंने अभिनय छोड़ दिया, लेकिन 1999 में अपने बेटे कुणाल गोस्वामी को 'लॉन्च' करने के लिए निर्देशक के तौर पर वापसी की। कुणाल को लेकर उन्होंने फिल्म "जय हिंद" बनाई जो देशभक्ति पर आधारित थी। हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई।
बहुत बाद में उन्होंने 2007 में शाहरुख खान अभिनीत फिल्म “ओम शांति ओम” में अपने हावभाव (चेहरे पर हथेली रखने) की पैरोडी करने के लिए निर्माताओं को अदालत में ले जाने की धमकी दी। निर्देशक फराह खान और शाहरुख दोनों ने उनसे माफ़ी मांगी।
मनोज कुमार को कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1992 में पद्मश्री पुरस्कार और 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। ।
भाषा शफीक पवनेश