भारत को नवीकरणीय ऊर्जा में जाने के लिए बेहतर तैयारी को लेकर सक्रिय कार्रवाई की जरूरत
जितेंद्र मनीषा
- 04 Apr 2025, 05:50 PM
- Updated: 05:50 PM
(अपर्णा बोस)
कार्टाजेना (कोलंबिया), चार अप्रैल (भाषा) भारत सक्रिय दृष्टिकोण अपनाकर और बदलाव के रास्ते पर आगे बढ़कर ही जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकेगा। ‘फॉसिल फ्यूल नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी’ के निदेशक एलेक्स रफालोविच माया ने यह बात कही।
निदेशक माया ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में भारत की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को नवीकरणीय ऊर्जा में बदलने के पीछे की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर चर्चा करते हुए बताया कि इस तरह के बदलाव कई कारकों पर निर्भर करते हैं और कुछ प्रौद्योगिकियों को लेकर व्यापार बाधाओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
माया ने पिछले सप्ताह कोलंबिया में आयोजित डब्ल्यूएचओ सम्मेलन में भी भाग लिया था।
उन्होंने कहा, “कुछ प्रौद्योगिकियों को लेकर व्यापार बाधाओं से संबंधित चुनौतियां रही हैं और शायद कुछ प्रावधानों को लागू करने के तरीके में कुछ व्यवधान भी रहे हैं। हालांकि, मुझे बहुत हैरानी होगी कि अगर इस प्रवृत्ति में ‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी’ में उल्लेखनीय वृद्धि ना हो तो। सार्वजनिक परिवहन का दायरा बढ़ाया जा रहा है और यह प्रवृत्ति और तेज होगी।”
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन, विशेष रूप से कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है और कोयला बिजली उत्पादन और समग्र ऊर्जा खपत दोनों में प्रमुख भूमिका निभाता है।
भविष्य में कम कार्बन उत्सर्जन करने के प्रयासों के बावजूद देश की निर्भरता काफी हद तक जीवाश्म ईंधन पर बनी हुई है। वैज्ञानिक और विशेषज्ञ, जीवाश्म ईंधन को मानव स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा मानते हैं।
उनका तर्क है कि जीवाश्म ईंधन जलवायु संकट का मूल कारण हैं और अपने जीवनचक्र के हर चरण में मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
माया ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग और वंचित समुदायों पर अक्षय ऊर्जा के प्रभाव को लेकर इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान ऊर्जा प्रणाली सबसे गरीब और सबसे हाशिए पर खड़ी आबादी को पर्याप्त ऊर्जा प्रदान नहीं करती।
उन्होंने कहा कि दुनिया भर में लगभग एक अरब लोग आज भी अंधेरे में रहने को मजबूर है या फिर उनकी पहुंच सीमित है।
माया ने बताया, “हमने कोयला, तेल और गैस पर जो व्यवस्था बनाई है, वह अधिकांश लोगों, खास तौर पर वंचित समुदायों के लिए विफल रही है। इन समुदायों के पास अपने स्वयं के ऊर्जा समाधान विकसित करने का अवसर है, जैसा कि हमने विभिन्न स्थानों पर देखा है और इसे सामुदायिक ऊर्जा प्रणाली के रूप में जाना जाता है। सरकार के थोड़े से समर्थन से छोटे पैमाने पर सौर प्रणाली स्थापित करने की क्षमता है।”
अब तक, 16 देशों ने जीवाश्म ईंधन अप्रसार संधि पहल का समर्थन किया है।
भाषा जितेंद्र