कोलकाता में वकीलों की असहमति का सम्मान, दिल में कोई नाराज़गी नहीं है: न्यायमूर्ति डी के शर्मा
नोमान सुरेश
- 04 Apr 2025, 10:11 PM
- Updated: 10:11 PM
नयी दिल्ली, चार अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा ने शुक्रवार को कहा कि वह कलकत्ता उच्च न्यायालय में उनके स्थानांतरण के खिलाफ कोलकाता के वकीलों की "असहमति" का सम्मान करते हैं, लेकिन उनके दिल में कोई नाराजगी नहीं है।
अपने विदाई समारोह में न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि न्याय के प्रति कानूनी बिरादरी की प्रतिबद्धता ने उन्हें सदैव प्रेरित किया है और उन्होंने आश्वासन दिया कि वह अपनी सर्वोत्तम क्षमता से संस्था की सेवा करेंगे।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, ‘‘मैं कोलकाता बार एसोसिएशन को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं अपनी क्षमता और संकल्प के अनुसार संस्था की सेवा करूंगा। मैं कोलकाता बार एसोसिएशन द्वारा व्यक्त की गई असहमति का सम्मान करता हूं। उन्हें अपनी असहमति व्यक्त करने का अधिकार है और मैं पूरी तरह से उनका सम्मान करता हूं तथा मेरे दिल में कोई नाराजगी नहीं है। मैं उनकी हर बात का पूरा सम्मान करता हूं।"
न्यायाधीश ने संविधान और देश के लोगों की सेवा जारी रखने की इच्छा जताई, जिसमें "पंक्ति के अंत में खड़ा व्यक्ति" भी शामिल है।
कोलकाता के वकीलों ने उनके स्थानांतरण का विरोध किया और इस सप्ताह के प्रारंभ में कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन देकर कहा कि वे न्यायमूर्ति शर्मा के शपथ ग्रहण समारोह और उनकी अदालत से दूर रहेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय में अपने विदाई समारोह में बोलते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के उपाध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने कहा कि न्यायिक स्थानांतरण व्यवस्था का एक "अभिन्न" हिस्सा है, जिसका उद्देश्य न्यायपालिका की स्वतंत्रता और शुचिता को बनाए रखना है।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश का स्थानांतरण एक निर्बाध प्रक्रिया होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हालांकि विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन सामूहिक जिम्मेदारी को बनाए रखना और हमारे न्यायालयों का सुचारू संचालन सुनिश्चित करना तथा जनता का विश्वास बनाए रखना अनिवार्य है।
दिल्ली सरकार के स्थायी वकील समीर वशिष्ठ ने भी कलकत्ता के बार एसोसिएशनों से न्याय को बनाए रखने के अपने कर्तव्य को याद रखने का आग्रह किया और इस बात पर जोर दिया कि वकीलों को "असत्यापित आरोपों पर जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालने से बचना चाहिए।"
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय ने कहा कि अपनी विनम्रता के लिए जाने जाने वाले न्यायमूर्ति शर्मा का नजरिया राहत प्रदान करने वाला था और तीन दशकों का उनका न्यायिक अनुभव बहुत मूल्यवान है।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि न्यायाधीश की भूमिका केवल कानून को लागू करना नहीं है, बल्कि उसे स्पष्टता और करुणा के साथ लागू करना है।
न्यायमूर्ति शर्मा को एक अप्रैल को दिल्ली से कलकत्ता उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया। पिछले कुछ दिनों में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा और न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह का भी तबादला किया गया है और न्यायमूर्ति शर्मा स्थानांतरित होने वाले तीसरे न्यायाधीश हैं।
न्यायमूर्ति शर्मा के स्थानांतरण की सिफारिश उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने मार्च के अंत में की थी।
सितंबर 2024 में, न्यायमूर्ति शर्मा ने ओल्ड राजेंद्र नगर कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबने से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे तीन उम्मीदवारों की मौत होने के मामले में जेल में बंद सह-मालिकों को अंतरिम जमानत दे दी थी।
उन्होंने मार्च 2024 में, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और 16 अन्य को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली सीबीआई की अपील को स्वीकार कर लिया था।
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करते हुए, न्यायमूर्ति शर्मा ने मार्च 2023 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को एक गैरकानूनी संघ घोषित करने और उस पर पांच साल का प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले की पुष्टि की।
भाषा नोमान