एनजीओ एपीसीआर ने वक्फ विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख किया
देवेंद्र संतोष
- 05 Apr 2025, 07:14 PM
- Updated: 07:14 PM
नयी दिल्ली, पांच अप्रैल (भाषा) एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
‘एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ (एपीसीआर) ने कहा कि उसकी याचिका में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है।
अदील अहमद के जरिये अपनी याचिका में इसने कहा, ‘‘यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26 और 300ए का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है, साथ ही प्रस्तावना के उन मूल्यों का भी उल्लंघन करता है जो हमारे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ढांचे का आधार हैं।’’
इसमें कहा गया है कि इस विधेयक द्वारा प्रस्तावित व्यापक बदलाव न केवल अनावश्यक है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप भी है, जो वक्फ के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यह विधेयक तीन अप्रैल, 2025 को लोकसभा और चार अप्रैल, 2025 को राज्यसभा द्वारा जल्दबाजी में पारित किया गया है और अब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलना बाकी है। हालांकि, इसके प्रावधान वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता और प्रभावशीलता के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, विशेष रूप से धारा 40 के माध्यम से, जो मूल अधिनियम में निहित नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को गंभीर रूप से कमजोर करता है।’’
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता विनम्रतापूर्वक कहना चाहता है कि यह विधेयक असंवैधानिक और अनुचित विधायी अतिक्रमण है, जिसे भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक स्वायत्तता को बनाए रखने के हित में रद्द किया जाना चाहिए।’’
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की वैधता को चुनौती दी थी और कहा था कि यह संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है।
आम आदमी पार्टी (आप) विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
शुक्रवार को संसद द्वारा विधेयक पारित किये जाने के बाद से कई याचिकाएं दायर की गई हैं।
खान ने अपनी याचिका में कहा, ‘‘यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को कमतर करता है, यह मनमाने ढंग से कार्यकारी हस्तक्षेप को सक्षम बनाता है और अपने धार्मिक तथा धर्मार्थ संस्थानों का प्रबंधन करने के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करता है।’’
जावेद की याचिका में आरोप लगाया गया है कि विधेयक में वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर "मनमाने प्रतिबंध" लगाने के प्रावधान किये गये हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता कमजोर होगी।
अधिवक्ता अनस तनवीर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि विधेयक में मुस्लिम समुदाय से भेदभाव किया गया है, क्योंकि इसमें ‘‘ऐसे प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो अन्य धार्मिक बंदोबस्तों में मौजूद नहीं हैं।’’
राज्यसभा में 128 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में जबकि 95 ने विरोध में मतदान किया, जिसके बाद इसे पारित कर दिया गया। लोकसभा ने तीन अप्रैल को विधेयक को मंजूरी दे दी थी। लोकसभा में 288 सदस्यों ने विधेयक का समर्थन, जबकि 232 ने विरोध किया।
बिहार के किशनगंज से लोकसभा सांसद जावेद इस विधेयक को लेकर गठित संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य रहे। उन्होंने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि विधेयक में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने के आधार पर ही वक्फ कर सकेगा।
ओवैसी ने अपनी याचिका में कहा कि इस विधेयक के जरिये वक्फ संपत्तियों से संरक्षण छीन लिया गया है जबकि हिंदू, जैन, सिख धार्मिक एवं धर्मार्थ संस्थाओं को यह संरक्षण मिला हुआ है।
अधिवक्ता लजफीर अहमद द्वारा दायर ओवैसी की याचिका में कहा गया है, "वक्फ को दी गई सुरक्षा को कम करना जबकि अन्य धर्मों के धार्मिक व धर्मार्थ बंदोबस्तों का संरक्षण बरकरार रखना मुसलमानों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण भेदभाव है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जिसमें धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक है।”
याचिका में कहा गया है कि ये संशोधन वक्फ और उनके नियामक ढांचे को दी गई वैधानिक सुरक्षा को "कमजोर" करते हैं, जबकि अन्य हितधारकों और समूहों को अनुचित लाभ देते हैं।
ओवैसी ने कहा, ‘‘केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति नाजुक संवैधानिक संतुलन को बिगाड़ देगी।”
भाषा
देवेंद्र