न्यायपालिका सहयोग और आपसी सम्मान से आगे बढ़ती है: सीजेआई संजीव खन्ना
आशीष नेत्रपाल
- 07 Apr 2025, 08:33 PM
- Updated: 08:33 PM
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने सोमवार को कहा कि न्यायपालिका सहयोग और आपसी सम्मान से आगे बढ़ती है तथा नेपाल के उच्चतम न्यायालय के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर से भविष्य के लिए संस्थागत सौहार्द कायम होगा।
उन्होंने इस अवसर पर कहा कि समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर महज औपचारिक आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह सदियों पुराने बंधन की पुनः पुष्टि है, जिसे सहयोग, पारस्परिक सम्मान और साझा उद्देश्य की भावना के साथ नवीनीकृत किया गया है।
सीजेआई खन्ना ने कहा, ‘‘भारत और नेपाल सिर्फ पड़ोसी देश नहीं हैं। हमारे संबंध इतिहास और सभ्यतागत मूल्यों में अंकित हैं। पवित्र हिमालय से लेकर गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक विरासत तक, हमारे संबंध सीमाओं से परे हैं और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। ये संबंध न केवल हमारी परंपराओं में बल्कि हमारे लोकतंत्रों को आधार देने वाली संस्थाओं में भी दिखाई देते हैं।’’
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के कानूनी तंत्र हमेशा संवाद करते रहे हैं और ‘नेपाली बार एवं बेंच’ के कई प्रतिष्ठित सदस्यों ने भारतीय विश्वविद्यालयों में कानूनी शिक्षा प्राप्त की है।
सीजेआई ने कहा, ‘‘वे न केवल डिग्री लेकर लौटे, बल्कि हमारी साझा कानूनी विरासत की समझ भी लेकर लौटे। यह एक ऐसी कानूनी विरासत है, जो संवैधानिकता और कानून के शासन के सिद्धांतों पर आधारित है।’’
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि भारतीय अदालतों ने अपनी सूक्ष्म व्याख्याओं के लिए नेपाली निर्णयों का सहारा लिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले में, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर करते समय भारत के उच्चतम न्यायालय ने सुनील बाबू पंत बनाम नेपाल सरकार मामले में नेपाल की शीर्ष अदालत के निर्णय का हवाला दिया। भारतीय न्यायालय ने नेपाल के निर्णय का उल्लेख किया, विशेष रूप से इस बात से प्रेरणा लेते हुए कि इसने एलजीबीटीक्यू लोगों के अधिकारों को उनकी निजता के अधिकार से कैसे जोड़ा।’’
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘‘इसी प्रकार, नेपाल में हमारे मित्रों ने भारतीय संवैधानिक सिद्धांतों, जिनमें मूल ढांचे का प्रसिद्ध सिद्धांत भी शामिल है, को अपने संवैधानिक विमर्श में शामिल किया है। मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि किस प्रकार कुछ भारतीय संवैधानिक सिद्धांतों को नेपाल के न्यायशास्त्र में जगह मिली है।’’
सीजेआई खन्ना ने कहा कि ये न्यायशास्त्रीय आदान-प्रदान महज संयोग नहीं, बल्कि दोनों देशों के न्यायविदों के बीच बौद्धिक जुड़ाव का स्वाभाविक परिणाम हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ये आदान-प्रदान दक्षिण एशियाई संदर्भ में कानूनी सिद्धांतों की व्यापक समझ के लिए अवसर प्रदान करते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि हमारे संवैधानिक लोकतंत्र सीमित नहीं हैं, बल्कि सीखने, अनुकूलन और विकास के लिए खुले हैं।’’
सीजेआई ने कहा कि यह समझौता ज्ञापन ‘‘जुड़ाव की हमारी दीर्घकालिक परंपरा को संस्थागत बनाने’’ की दिशा में एक कदम है।
सीजेआई के अनुसार, ‘‘इसके माध्यम से हमारा उद्देश्य न्यायिक आदान-प्रदान, संयुक्त अनुसंधान, प्रशिक्षण कार्यक्रम, संगोष्ठी और यात्राओं के लिए औपचारिक तंत्र बनाना है। इस तरह की भागीदारी न केवल हमारे कानूनी संस्थानों के बीच बेहतर समझ को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि तेजी से बदलती दुनिया में न्याय तक पहुंच, न्यायिक देरी, डिजिटलीकरण और संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा जैसी आम चुनौतियों का जवाब देने के लिए भी महत्वपूर्ण है।’’
भाषा आशीष