द्रमुक और कांग्रेस सांसद ने नए वक्फ कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया
जितेंद्र नेत्रपाल
- 07 Apr 2025, 08:43 PM
- Updated: 08:43 PM
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
शीर्ष अदालत में अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली अब तक 10 से अधिक याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक और प्रतापगढ़ी के अलावा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी नए वक्फ कानून के खिलाफ याचिका दायर की है।
द्रमुक उपमहासचिव ए राजा ने शीर्ष अदालत का रुख किया और एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “व्यापक विरोध के बावजूद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सदस्यों और अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर उचित विचार किए बिना केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 पारित कर दिया।’’
पार्टी ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का तत्काल कार्यान्वयन तमिलनाडु में लगभग 50 लाख मुसलमानों और देश के अन्य हिस्सों में 20 करोड़ मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
इससे पहले दिन में प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मुद्दे पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और ‘आप’ विधायक अमानतुल्लाह खान सहित अन्य की याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए विचार करने पर सहमति व्यक्त की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पांच अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दे दी, जिसे संसद ने दोनों सदनों में देर रात तक चली बहस के बाद पारित कर दिया था।
एआईएमपीएलबी ने छह अप्रैल को देर रात शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।
इसके प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक बयान में कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई गई है, क्योंकि ये संशोधन ‘मनमाने, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित’ हैं।
बयान के मुताबिक, ये संशोधन न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह स्पष्ट रूप से सरकार की वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण करने की मंशा को भी उजागर करता है।
इलियास ने कहा कि ये कानून मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनके धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित करता है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने भी उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर दावा किया कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की ‘‘खतरनाक साजिश’’ है।
जमीयत ने अपनी याचिका में कहा कि यह कानून देश के संविधान पर सीधा हमला है, जो न केवल अपने नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता भी प्रदान करता है।
केरल में सुन्नी मुस्लिम जानकारों और मौलवियों के धार्मिक संगठन ‘समस्त केरल जमीयत उल उलेमा’ ने शीर्ष अदालत में दायर अपनी अलग याचिका में दावा किया कि यह अधिनियम धार्मिक संप्रदाय के अधिकारों में ‘‘स्पष्ट हस्तक्षेप’’ है।
एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ ने भी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है।
राज्यसभा में 128 सदस्यों ने वक्फ विधेयक के पक्ष में और 95 सदस्यों ने विरोध में वोट दिया जबकि लोकसभा में 288 सदस्यों ने इसे समर्थन दिया जबकि 232 ने विरोध में मतदान किया।
‘आप’ विधायक अमानतुल्लाह खान ने इस कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की। खान द्वारा दायर याचिका में इस कानून को ‘संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए’ का उल्लंघन बताया गया है।
भाषा जितेंद्र