अंधविश्वास और हानिकारक प्रथाओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक जागरूकता की आवश्यकता : कार्यकर्ता
धीरज नरेश
- 09 Apr 2025, 04:23 PM
- Updated: 04:23 PM
जालना, नौ अप्रैल (भाषा) महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (एमएएनएस)की पदाधिकारी नंदिनी जाधव ने दावा किया है कि महाराष्ट्र के कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में अंधविश्वास और अंधश्रद्धा की कुप्रथाएं पनप रही हैं, जिसका मुख्य कारण वैज्ञानिक जागरूकता का अभाव और स्वयंभू बाबाओं का बढ़ता प्रभाव है।
उन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई में एक अहम कानूनी हथियार के रूप में महाराष्ट्र मानव बलि, अन्य अमानवीय और अघोरी प्रथाओं और काला जादू निवारण एवं उन्मूलन अधिनियम, 2013 का हवाला दिया।
दिवंगत तर्कवादी और एमएएनएस के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर द्वारा समर्थित यह कानून राज्य में अमानवीय अनुष्ठानों और काले जादू की प्रथाओं को अपराध घोषित करता है।
जाधव ने मंगलावार को यहां ‘पीटीआई’ से बातचीत में बताया कि मेलघाट क्षेत्र के 72 गांवों में हाल ही में संपन्न 21 दिवसीय जागरूकता अभियान के दौरान एमएएनएस ने विशेष रूप से ‘दंबा’ प्रथा पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें बीमार बच्चों को यह विश्वास दिलाकर उनके पेट पर गर्म लोहे की छड़ से दागा जाता है कि इससे बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हर साल कम से कम एक बच्चे की मौत इस अमानवीय कुप्रथा के कारण होती है।’’
जाधव ने एक ऐसी ही घटना को याद करते हुए बताया, ‘‘ एक हृदय विदारक मामले में, हृदय रोग से पीड़ित एक शिशु को 67 बार गर्म लोहे की छड़ से दागा गया। एक अन्य गांव में, 70 वर्षीय महिला पर जादू-टोना करने का आरोप लगाया गया, उसे प्रताड़ित किया गया और सार्वजनिक रूप से घुमाया गया।’’
जाधव ने ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक सोच और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, ‘‘जब तक हम मूल कारण और वैज्ञानिक जागरूकता की कमी को दूर नहीं करेंगे, हम इन हानिकारक कुप्रथाओं को समाप्त नहीं कर सकते।’’
उन्होंने बताया कि 17 मार्च से सात अप्रैल तक चले अभियान के दौरान एमएएनएस ने विशेष रूप से डिजाइन की गई सूचना वैन की मदद से विदर्भ के मेलघाट क्षेत्र में 140 जागरूकता शिविर आयोजित किए।
भाषा धीरज