न्यायालय ने भ्रष्टाचार मामले को लेकर येदियुरप्पा की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा
संतोष पवनेश
- 11 Apr 2025, 04:50 PM
- Updated: 04:50 PM
नयी दिल्ली, 11 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा द्वारा अपने खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को फिर से शुरू करने के आदेश के विरुद्ध दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पांच जनवरी, 2021 को बेंगलुरु निवासी शिकायतकर्ता ए आलम पाशा की याचिका को स्वीकार कर लिया और उनकी शिकायत से जुड़े मामले को फिर से शुरू कर दिया।
पाशा ने येदियुरप्पा और पूर्व उद्योग मंत्री मुरुगेश आर निरानी और कर्नाटक उद्योग मित्र के पूर्व प्रबंध निदेशक शिवस्वामी केएस के खिलाफ भ्रष्टाचार और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया है।
उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी का अभाव- जिसके कारण पहले की शिकायत को रद्द कर दिया गया - आरोपी के पद छोड़ने के बाद नई शिकायत दर्ज करने पर रोक नहीं लगाता।
हालांकि, इसने भ्रष्टाचार के मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी और राज्य सरकार के पूर्व प्रधान सचिव वी पी बालिगर के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने चार अप्रैल को सुनवाई पूरी की और अपने निर्णय के लिए कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न तैयार किए, जिनमें यह भी शामिल था कि क्या न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत जांच का आदेश देने के बाद, क्या भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 ए के तहत उपयुक्त सरकारी अधिकारियों की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता अब भी होगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) न्यायिक मजिस्ट्रेट को किसी शिकायत की पुलिस जांच का आदेश देने की अनुमति देती है और इसमें प्राथमिक जांच या प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश शामिल हो सकता है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए कहती है, ‘‘बिना पूर्व मंजूरी के कोई भी पुलिस अधिकारी इस अधिनियम के तहत किसी लोक सेवक द्वारा कथित तौर पर किए गए किसी भी अपराध की कोई जांच नहीं करेगा, जहां कथित अपराध ऐसे लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कार्यों या कर्तव्यों के निर्वहन में की गई किसी सिफारिश या लिए गए निर्णय से संबंधित हो।’’
शीर्ष अदालत ने सात महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न तैयार किए, जो मुख्य रूप से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता के विभिन्न प्रावधानों के बीच परस्पर क्रिया पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की पूर्व मंजूरी और न्यायिक मजिस्ट्रेट की निजी शिकायत पर विचार करने, जांच करने और प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने की शक्ति के मुद्दे पर हैं।
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ भाजपा नेता के वकील से कहा कि वे दो सप्ताह के भीतर लिखित दलीलें पेश करें।
पाशा ने शुरू में एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि येदियुरप्पा और अन्य ने देवनहल्ली औद्योगिक क्षेत्र में उन्हें 26 एकड़ औद्योगिक भूमि आवंटित करने के लिए उच्च स्तरीय मंजूरी समिति की मंजूरी को रद्द करने के लिए दस्तावेज को जाली बनाने की साजिश रची थी।
शिकायत में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया गया था, जिसकी जांच शुरू में लोकायुक्त पुलिस द्वारा की गई थी, लेकिन 2013 में उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत अनिवार्य मंजूरी के अभाव में शिकायत को खारिज कर दिया था।
इसके बाद जब आरोपी अधिकारी अपने कार्यालय खाली कर गए, तो पाशा ने 2014 में एक नई शिकायत दर्ज कराई जिसमें तर्क दिया गया कि ए आर अंतुले मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर अब मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
विशेष न्यायाधीश ने 2016 में दूसरी शिकायत को भी मंजूरी के अभाव का हवाला देते हुए खारिज कर दिया। इस बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए पाशा ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जिसने आंशिक रूप से उनके अनुकूल फैसला सुनाया।
भाषा संतोष