मनोसामाजिक अक्षमता से पीड़ित बेघरों के लिए नीति तैयार करने के अनुरोध वाली अर्जी पर केंद्र को नोटिस
अमित मनीषा
- 15 Apr 2025, 05:54 PM
- Updated: 05:54 PM
नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मनोसामाजिक अक्षमता(साइकोसोशल डिसेबिलिटी) से पीड़ित बेघर व्यक्तियों के लिए एक नीति बनाने और लागू करने का निर्देश देने के अनुरोध वाली एक याचिका पर मंगलवार को केंद्र से जवाब मांगा।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी करके जवाब मांगा।
मनोसामाजिक अक्षमता से तात्पर्य उन चुनौतियों से है जिनका सामना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त लोग भेदभाव, समर्थन की कमी आदि के कारण करते हैं।
बंसल ने अपनी याचिका में मनोसामाजिक अक्षमता वाले बेघर व्यक्तियों के साथ मानवीय और प्रभावी व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए कानून प्रवर्तन (पुलिस विभाग) और चिकित्सा स्वास्थ्य विभागों सहित प्रमुख हितधारकों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं को तैयार करने और लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता संरचनात्मक कमियों को उजागर करना चाहता है, जिसमें मनोसामाजिक अक्षमता वाले बेघर व्यक्तियों को उचित देखभाल प्रदान करने के बजाय अक्सर उपेक्षा, सामाजिक अलगाव और शारीरिक और यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।’’
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014 सहित मौजूदा कानूनी और नीतिगत ढांचे के बावजूद, प्रतिवादी मानसिक बीमारी से पीड़ित बेघर व्यक्तियों की सुरक्षा और सहायता करने के वास्ते प्रावधानों को लागू करने में विफल रहे हैं।’’
याचिका में कहा गया है कि बेघरों और मानसिक बीमारी पर एक संरचित राष्ट्रीय नीति के अभाव के चलते व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।
जनहित याचिका में 2015-2016 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा गया है कि इसने मानसिक बीमारियों से पीड़ित बेघर व्यक्तियों की संख्या का पता लगाने में राज्य की विफलता को उजागर किया है।
याचिका में कहा गया है कि सटीक आंकड़ों के अभाव के चलते लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करना या आवश्यक संसाधनों को आवंटित करना असंभव हो गया है।
भाषा अमित