इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर शीर्ष अदालत ने कहा, न्यायाधीशों को काफी सावधानी बरतनी चाहिए
आशीष दिलीप
- 15 Apr 2025, 09:20 PM
- Updated: 09:20 PM
नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बलात्कार के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की हाल की टिप्पणी पर मंगलवार को आपत्ति जतायी, जिसमें कथित तौर पर कहा गया था कि शिकायतकर्ता ने ‘‘खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों को अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए।
न्यायमूर्ति बी आर गवई ने कहा, ‘‘यदि कोई जमानत देना चाहता है तो ठीक है, लेकिन ऐसी टिप्पणियां क्यों की गईं कि उसने मुसीबत को खुद ही आमंत्रित किया और इस तरह की बातें। इस तरफ के लोगों को (पीठ) बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।’’
उच्च न्यायालय ने हाल में बलात्कार के मामले में जमानत प्रदान करते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता ने शराब पीकर याचिकाकर्ता के घर जाने के लिए सहमति जताकर ‘‘खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया।’’
शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के एक आदेश पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने आदेश में कहा था कि स्तनों को पकड़ना और महिला के पायजामे का नाड़ा खींचना बलात्कार के प्रयास के अपराध के दायरे में नहीं आता।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘‘उसी उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश ने एक और आदेश पारित किया है।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आम आदमी ऐसी टिप्पणियों को कैसे लेता है, इसे ध्यान में रखना आवश्यक है।
पीठ ने स्वत: संज्ञान मामले में सुनवाई चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को बलात्कार के प्रयास के मामले में उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसका अर्थ था कि वर्तमान आरोपियों या अन्य द्वारा राहत पाने के लिए किसी भी न्यायिक कार्यवाही में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि उच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियां पूर्णतः ‘‘असंवेदनशील’’ तथा ‘‘अमानवीय दृष्टिकोण’’ वाली थीं।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में मामला लाए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने इस पर स्वतः संज्ञान लिया था।
उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश में कहा गया था कि आरोपियों के खिलाफ बलात्कार के प्रयास का कोई मामला नहीं बनता है और उन्हें महिला पर हमला करने या उसके कपड़े उतारने के इरादे से उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करने के कम गंभीर अपराध के लिए समन किया जा सकता है।
उच्च न्यायालय का आदेश आरोपियों द्वारा दायर एक याचिका पर आया था। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी, जिसके जरिए उन्हें अन्य धाराओं के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) के तहत कथित अपराध के लिए समन जारी किया गया था।
एक अन्य मामले में, उच्च न्यायालय ने एक आरोपी को जमानत देते हुए आदेश पारित किया और कहा, ‘‘पक्षकारों के वकीलों को सुनने और मामले पर समग्रता से गौर करने के बाद, मैं पाता हूं कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि पीड़िता और याचिकाकर्ता दोनों ही बालिग हैं। पीड़िता एमए की छात्रा है, इसलिए वह अपने कृत्य की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी, जैसा कि उसने प्राथमिकी में बताया है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत का मानना है कि यदि पीड़िता के आरोप को सच मान भी लिया जाए तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को आमंत्रित किया और वह इसके लिए स्वयं ही जिम्मेदार है।’’
भाषा आशीष