भारत की वायु गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ मानकों से काफी पीछे, एलपीजी सब्सिडी योजना बढ़ाने की जरूरत: निदेशक
देवेंद्र वैभव
- 16 Apr 2025, 08:08 PM
- Updated: 08:08 PM
(अपर्णा बोस)
नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक अधिकारी ने कहा है कि भारत की वायु गुणवत्ता संयुक्त राष्ट्र के इस निकाय के मानकों से काफी कम है और देश की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी अब भी बायोमास ईंधन पर निर्भर है, जिसके कारण हर साल लोगों की मौत होती हैं।
‘पीटीआई वीडियो’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉ. मारिया नीरा ने भारतीय अधिकारियों से मौजूदा कार्यक्रमों को, विशेष रूप से उन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने का आग्रह किया जो खाना पकाने के लिए बायोमास ईंधन के उपयोग से घरों के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से हैं।
नीरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें एलपीजी और सब्सिडी तक पहुंच उपलब्ध कराने जैसे कार्यक्रमों पर विचार करने की जरूरत है, लेकिन निश्चित रूप से प्रयास न केवल जारी रखने होंगे, बल्कि इन प्रयासों को संभवतः बढ़ाना भी होगा।’’
बायोमास ईंधन एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जिनमें पेड़ों की लकड़ी और पशु अपशिष्ट से बने उपले जैसे जैविक पदार्थ होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘एक थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 41 प्रतिशत भारतीय परिवार अब भी बायोमास ईंधन पर निर्भर हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। हम भारत सरकार से आग्रह करना चाहेंगे कि वह घरों के भीतर के प्रदूषण से निपटने के लिए और अधिक उपाय करे क्योंकि इनके क्रियान्वयन के बाद अच्छे परिणाम सामने आए हैं।’’
विश्व स्वास्थ्य संगठन की अधिकारी ने कहा कि आदर्श स्थिति यह होगी कि स्वच्छ ऊर्जा और नवीकरणीय गैर-प्रदूषक स्रोतों की ओर तुरंत कदम बढ़ाए जाएं, लेकिन नीति में निष्पक्षता होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि एक निष्पक्ष बदलाव होना चाहिए, खासकर उन सबसे कमजोर लोगों के लिए जो वर्तमान में प्रदूषणकारी स्रोतों का उपयोग कर रहे हैं। ऊर्जा के बेहतर स्रोतों के माध्यम से इस बदलाव में एलपीजी, बायोगैस, इथेनॉल तक पहुंच शामिल होगी, जो लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए बदलाव सुनिश्चित कर सकती हैं।’’
नीरा ने कहा कि वायु प्रदूषण गैर-संचारी रोगों या एनसीडी का प्रमुख कारण है, जो सितम्बर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव का विषय होगा।
वायु गुणवत्ता मानकों के बीच अंतर के बारे में पूछे जाने पर, नीरा ने ‘द लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ’ में प्रकाशित हाल के निष्कर्षों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि खराब वायु गुणवत्ता केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश भर के सभी क्षेत्रों में है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक अध्ययन से पता चलता है कि जब प्रदूषण की बात आती है तो हम हमेशा नयी दिल्ली पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन मुझे डर है कि लगभग पूरे भारत में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को लागू नहीं किया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वायु प्रदूषण भारत में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है और इस पर पहले से ही लागू कार्रवाई में तेजी लाने के लिए और अधिक राजनीतिक भागीदारी की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा कि देश में प्रदूषण से निपटने के लिए संसाधन, नवाचार और प्रौद्योगिकी मौजूद हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमें पूरी उम्मीद है कि भारत इस स्थिति को पूरी तरह बदल सकता है और अन्य देशों के लिए एक उदाहरण भी स्थापित कर सकता है।’’
डब्ल्यूएचओ के ‘ग्रीन पेज’ के बारे में बात करते हुए नीरा ने पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिमों को पहचानने और उनका समाधान करने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के उनके प्रयासों पर प्रकाश डाला।
हाल में डब्ल्यूएचओ सम्मेलन के दौरान लगभग 50 देशों और शहरों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के बारे में पूछे जाने पर, नीरा ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने प्रतिबद्धताओं की निगरानी के लिए तंत्र स्थापित किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘जहां आवश्यक हो, हम संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं, तथा यह देखना चाहते हैं कि क्षेत्रवार प्रतिबद्धताओं की निगरानी कैसे की जाए और फिर, निश्चित रूप से, ‘ब्रीथ लाइफ’, सी40 तथा अन्य तंत्रों के माध्यम से, हमारा लक्ष्य शहर स्तर पर निगरानी करना है।’’
‘ब्रीथ लाइफ’ अभियान विश्व स्वास्थ्य संगठन और जलवायु एवं स्वच्छ वायु गठबंधन (सीसीएसी) के नेतृत्व में एक वैश्विक पहल है, जिसका उद्देश्य वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्वच्छ वायु के लिए कार्रवाई करने के वास्ते समुदायों को संगठित करना है।
भाषा देवेंद्र