वक्फ संशोधन अधिनियम वक्फ प्रबंधन की मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है: कपिल सिब्बल
देवेंद्र सुरेश
- 16 Apr 2025, 10:17 PM
- Updated: 10:17 PM
नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 से मुसलमानों की अपने धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों के प्रबंधन में धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष दलील देते हुए सिब्बल ने विवादास्पद प्रावधानों का उल्लेख किया और मुस्लिम संगठनों तथा अन्य याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को सूचीबद्ध कराया।
उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दौरान अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिनमें अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति और केंद्रीय वक्फ परिषदों और बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना शामिल है।
सिब्बल ने पूछा, ‘‘सरकार कैसे तय कर सकती है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ करने का पात्र हूं या नहीं?’’
उन्होंने कहा, ‘‘सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ कर सकते हैं जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?’’
सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा कि सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना तथा रखरखाव करने एवं स्वयं के धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है।
उन्होंने कहा कि मुसलमानों को वक्फ के रूप में संपत्ति का स्वामित्व और अधिग्रहण करने तथा कानूनी रूप से उसका प्रशासन करने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, ‘‘ये मौलिक अधिकार हैं और आवश्यक धार्मिक प्रथाओं या संपत्ति के अधिकारों पर अतिक्रमण करने वाला कोई भी कानून उचित होना चाहिए।’’
सिब्बल ने वक्फ करने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करना अनिवार्य बनाने संबंधी प्रावधान का हवाला दिया।
उन्होंने पूछा, ‘‘संशोधित प्रावधान के तहत, वक्फ करने वाले किसी भी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि उन्होंने कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन किया है।’’
उन्होंने धारा-तीन(सी) का हवाला दिया जो सरकार को यह निर्धारित करने की “एकतरफा” अनुमति देता है कि विवादित संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं। यदि ऐसा निर्धारित किया जाता है तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने संशोधित कानून की धारा-तीन(डी) का हवाला दिया और कहा कि अगर संपत्ति को पहले से ही विरासत कानूनों के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है तो यह वक्फ घोषणाओं को रद्द कर देता है।
उन्होंने केन्द्रीय वक्फ परिषद की संरचना को एक केन्द्र बिन्दु बताया और कहा कि गैर-मुस्लिम सदस्यों को, विशेष रूप से बड़ी संख्या में, शामिल करने से मुस्लिम धर्मार्थ निधियों की देखरेख करने वाले निकाय का धार्मिक चरित्र कमजोर हो जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू और सिख धार्मिक बोर्ड के विपरीत, जहां केवल संबंधित धर्म के सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है, इस परिषद में सांसद और पेशेवर शामिल हैं, जिनका मुस्लिम होना जरूरी नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘और इससे अनुच्छेद 26 में धार्मिक संप्रदायों द्वारा अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करने की गारंटी का उल्लंघन होता है।’’
भाषा देवेंद्र