कानून यदि उच्चतम न्यायालय ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए: निशिकांत दुबे
राजकुमार माधव
- 19 Apr 2025, 08:52 PM
- Updated: 08:52 PM
नयी दिल्ली, 19 अप्रैल (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को उच्चतम न्यायालय पर निशाना साधते हुए कहा कि कानून यदि शीर्ष अदालत ही बनाएगी तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
दुबे ने पहले ‘एक्स’ पर तीखा पोस्ट किया। बाद में उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में न्यायालय पर आरोप लगाया कि वह विधायिका द्वारा पारित कानूनों को रद्द करके संसद की विधायी शक्तियों को अपने हाथ में ले रहा है और यहां तक कि राष्ट्रपति को निर्देश भी दे रहा है, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कर्ता प्राधिकारी हैं।
उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘कानून यदि उच्चतम न्यायालय ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिए।’’
उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब न्यायालय द्वारा वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सवाल उठाये जाने के बाद केंद्र सरकार ने उसे अगली सुनवाई तक उन्हें लागू न करने का आश्वासन दिया है।
शीर्ष अदालत इस अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इस माह के पहले हफ्ते में संसद ने यह कानून मंजूर किया था।
दुबे ने अधिनियम द्वारा ‘उपयोग के कारण वक्फ’ प्रावधान को कमजोर करने पर अदालत की आलोचनात्मक टिप्पणियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसने अयोध्या में राम मंदिर समेत मंदिरों से जुड़े मामलों में दस्तावेजी सबूत मांगे हैं, लेकिन मौजूदा मामले में इसी तरह की आवश्यकता को नजरअंदाज करने का मार्ग चुना है।
संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है और उच्चतम न्यायालय का काम कानूनों की व्याख्या करना है। उन्होंने कहा कि अदालत सरकार को आदेश दे सकती है, लेकिन संसद को नहीं।
दुबे ने अधिकारक्षेत्र के कथित अतिक्रमण को लेकर अदालत को निशाने पर लेने के लिए उसके पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि उसने सहमति से समलैंगिक संबंध स्थापित करने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया जो पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अंतर्गत आता था तथा आईटी अधिनियम की धारा 66 (ए) को निरस्त कर दिया ।
झारखंड के गोड्डा से सांसद दुबे अक्सर लोकसभा में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भाजपा के राजनीतिक हमलों में अग्रणी भूमिका में रहते हैं और विभिन्न मुद्दों पर सत्तारूढ़ पार्टी का रुख स्पष्टता से सदन में रखते हैं।
राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल में समयसीमा निर्धारित किये जाने पर भी बहस शुरू हो गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शीर्ष अदालत के इस निर्णय से कड़ी असहमति जताई है।
धनखड़ यह भी कहते रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करना गलत था।
दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति के संबंध में शीर्ष अदालत के उक्त निर्देश के साथ-साथ वक्फ (संशोधन) अधिनियम मामले में उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही की सराहना की है।
पिछले महीने यहां न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास के बाहरी हिस्से में भारी मात्रा में नकदी मिलने से भी न्यायिक जवाबदेही के मुद्दे पर बहस फिर से शुरू हो गई है। न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया है।
भाषा राजकुमार