बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कई नए दलों के ताल ठोकने से मुकाबला रोचक होने की उम्मीद
धीरज दिलीप
- 20 Apr 2025, 06:04 PM
- Updated: 06:04 PM
नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कई नये राजनीतिक दलों के ताल ठोकने से मुकाबला रोचक होने के साथ-साथ प्रदेश का चुनावी गणित भी गड़बड़ाने की आशंका भी पैदा हो गई है। इन नए राजनीतिक दलों के नेता चर्चित नाम तो हैं, लेकिन चुनावी राजनीति के क्षेत्र में फिलहाल उनकी कोई ठोस साख नहीं है।
कुछ महीने पहले ऐसा लग रहा था कि प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली जन सुराज पार्टी आगामी चुनावों में एकमात्र गंभीर खिलाड़ी होगी, लेकिन कांग्रेस के पूर्व नेता आई पी गुप्ता ने पटना के प्रसिद्ध गांधी मैदान में शक्ति प्रदर्शन किया और ‘भारतीय इंकलाब पार्टी’ बनाने की घोषणा कर दी।
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर उनके प्रतिद्वंद्वियों द्वारा उठाए जा रहे सवालों के बीच, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी शिवदीप लांडे द्वारा गठित ‘हिंद सेना’ ने भी प्रदेश में सियासी हलचल तेज कर दी है। लांडे महाराष्ट्र के निवासी हैं और उनकी तेजतर्रार कार्यशैली ने उन्हें एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया है, भले ही उन्हें कोई लोकप्रिय समर्थन न मिला हो।
एक ओर लांडे अपनी ‘कर्मभूमि’ बिहार में बदलाव के अकांक्षी हैं, तो दूसरी ओर आर सी पी सिंह भी हैं, जो कभी कुमार के सबसे करीबी सहयोगी थे और बाद में उनके धुर विरोधी बन गए। आरसीपी सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन पार्टी के जद(यू) के साथ फिर से गठबंधन करने के बाद वह हाशिये पर चले गए।
पूर्व नौकरशाह और कुमार की तरह कुर्मी जाति से संबंध रखने वाले आरसीपी सिंह भी नई पार्टी ‘आप सब की आवाज’ बनाने के बाद मैदान में जोर आजमाइश के लिये तैयार दिख रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) जैसे स्थापित राजनीतिक दलों के अधिकांश नेताओं का मानना है कि आने वाले महीनों में प्रशांत किशोर और गुप्ता पर नजर रहेगी, क्योंकि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी से संबंधित यादें अभी भी ताजा हैं, जिसने 2020 में लगभग 35 विधानसभा सीट पर जद(यू) की हार में बड़ी भूमिका निभाई थी।
राजद के एक नेता ने दावा किया कि उन्हें लगता है कि किशोर या गुप्ता ज्यादा सीट नहीं जीतेंगे, लेकिन वे कई निर्वाचन क्षेत्रों में इतने मत हासिल कर सकते हैं, जिससे मुख्य दलों में किसी एक की हार सुनिश्चित हो सके।
जहां पूर्व चुनावी रणनीतिकार किशोर शासन के विषय पर लोगों को संगठित कर रहे हैं और अपनी पार्टी के लिए समर्थन जुटाने के लिए पारंपरिक जातिगत पहचान को त्याग दिया है। वहीं, गुप्ता ने पुरानी राह अपनाते हुए तांती और तंतवा जातियों को एकजुट करने का प्रयास किया है। ये दोनों जातियां अत्यंत पिछड़ा वर्ग श्रेणी में आती हैं।
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद इन जातियों को अनुसूचित जाति श्रेणी से हटा दिया गया था और गुप्ता ने इनके हितों की रक्षा के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी।
राजद नेताओं ने हालांकि दावा किया कि गुप्ता, कुमार के वोट को काटेंगे, लेकिन जद(यू) के कुछ सांसदों ने कहा कि कई चुनावों में बनाए गए सामाजिक समीकरणों को एक चुनाव में ध्वस्त नहीं किया जा सकता। जद (यू) नेताओं ने कहा कि उनके नेता नीतीश कुमार महिलाओं के अलावा संख्यात्मक रूप से छोटी जातियों के पसंदीदा मुख्यमंत्री बने हुए हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि किशोर की पार्टी ने पिछले चुनावों में उन निर्वाचन क्षेत्रों में काफी वोट हासिल किए हैं, जहां वह मजबूत उम्मीदवार उतार सकती थी।
उन्होंने कहा कि ये नये दल एक निश्चित वोट बैंक वाले उन नेताओं के लिए उपयोगी मंच साबित हो सकते हैं, जिन्हें मौजूदा प्रमुख दलों से टिकट नहीं मिल पाता।
कुमार की सेहत और राजद के अपने मुख्य वोटबैंक के बाहर वोट खींचने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में नए खिलाड़ी अपनी क्षमता से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
युवा चिराग पासवान की पार्टी भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का घटक है, जिसमें जद(यू) और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी भी शामिल हैं। चिराग पासवान हाल का यह दावा कि वह राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के इच्छुक हैं, इसे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों की कतार में खुद को शामिल करने के उनके प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
दूसरी ओर, राजद अपने गठबंधन में एकजुटता सुनिश्चित करना चाहता है, जिसमें कांग्रेस, वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी (जिसके नेता मुकेश सहनी, जो प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों में आते-जाते रहे हैं) शामिल हैं, ताकि उसके मौजूदा वोट प्रतिशत में किसी भी तरह की कमी न आए, क्योंकि मामूली बदलाव भी बहुत बड़ा अंतर पैदा कर सकता है।
भाजपा-जद(यू) गठबंधन को पारंपरिक रूप से राजद नीत गठबंधन पर पर्याप्त बढ़त हासिल रही है, लेकिन इस बार कई नए कारकों और खिलाड़ियों ने मुकाबले को नया आयाम दे दिया है।
भाषा धीरज