करुणानिधि के नक्शेकदम पर स्टालिन : राज्यों की स्वायत्तता को मजबूत करने के उपाय सुझाने को बनाई समिति
धीरज पारुल
- 20 Apr 2025, 08:45 PM
- Updated: 08:45 PM
चेन्नई, 20 अप्रैल (भाषा) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के नक्शेकदम पर चलते हुए कुछ दिन पहले राज्यों की स्वायत्तता को मजबूत करने के उपायों की सिफारिश करने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश कुरियन जोसेफ के नेतृत्व में एक समिति गठित करने की घोषणा की थी।
करुणानिधि जब 50 साल पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी राज्यों की स्वायतत्ता के लिए लड़ाई लड़ी थी।
राज्यों की स्वायत्तता की वकालत करते हुए करुणानिधि ने 16 अप्रैल 1974 को तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। राज्यों की स्वायत्तता के लिए आवाज उठाने वाले और 1967 से 1969 के बीच तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के संस्थापक सीएन अन्नादुरई (1909-1969) निश्चित तौर पर करुणानिधि के लिए एक बड़ी प्रेरणा थे।
‘कलईगनर’ के नाम से लोकप्रिय करुणानिधि ने प्रस्ताव पेश करते हुए अन्नादुरई को विस्तार से उद्धृत किया था और इसमें द्रमुक नेता (अन्नादुरई) का अंतिम लेख भी शामिल किया गया था, जो 1969 में अंग्रेजी पत्रिका ‘होम रूल’ में प्रकाशित हुआ था।
अन्नादुरई को प्यार से अन्ना कहकर संबोधित किया जाता है। लेख में उन्होंने लिखा था, ‘‘प्रिय भाइयों, मैं कभी भी सत्ता के पीछे पागल नहीं हुआ। न ही मैं ऐसे संविधान के तहत अपने राज्य का मुख्यमंत्री होने से खुश हूं, जो कागज पर संघीय है, लेकिन वास्तव में अधिक से अधिक केंद्रीकृत होता जा रहा है। इस कारण, मुझे अपने अच्छे मित्र ईएमएस (कम्युनिस्ट नेता, नंबूदरीपाद) की यह बात अच्छी नहीं लगी कि मेरा उद्देश्य केंद्र को परेशान करना या दिल्ली के साथ झगड़ा करना है।’’
अन्ना ने आठ अप्रैल 1967 को नयी दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘‘यह उचित होगा कि केंद्र केवल उतनी ही शक्तियां अपने पास रखे, जितनी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है तथा राज्यों को पर्याप्त शक्तियां दी जाएं। शक्तियों के बंटवारे और संविधान को लागू करने की विधि सुझाने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त आयोग गठित किया जाना चाहिए।’’
करुणानिधि ने इन सभी पहलुओं को रेखांकित करते हुए याद दिलाया था कि उन्होंने 19 अगस्त 1969 को पीवी राजमन्नार के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति गठित करने की घोषणा की थी, जिसमें एएल मुदलियार और पी चंद्र रेड्डी शामिल थे।
उन्होंने कहा था कि तदनुसार, 22 सितंबर 1969 को ‘‘देश की अखंडता को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाए बिना’’ राज्यों की स्वायत्तता के आधार पर केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों के प्रश्न पर विचार करने के लिए समिति गठित की गई।
द्रमुक के 1971 के चुनाव घोषणापत्र में इष्टतम स्वायत्तता के लिए संविधान संशोधन की मांग की गई थी और इस विषय पर अन्नादुरई द्वारा अप्रैल 1967 के संवाददाता सम्मेलन में रखे गए विचार को पार्टी के घोषणापत्र का सक्रिय हिस्सा बनाया गया था।
राजमन्नार समिति की रिपोर्ट 27 मई 1971 को राज्य सरकार को प्राप्त हुई और इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भेजा गया, जिन्होंने 22 जून 1971 को इसे स्वीकार कर लिया। इंदिरा ने कहा था कि प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी इस प्रश्न पर विचार किया है और उसकी रिपोर्ट केंद्र के विचाराधीन है।
दिलचस्प बात यह है कि एचवी हांडे (स्वतंत्र पार्टी) ने एक संशोधन पेश किया, जिसमें निम्नलिखित बातें जोड़ी गईं, ‘‘यह सदन, हालांकि, राज्य सरकार से आग्रह करता है कि वह राज्य की स्वायत्तता के नाम पर विभाजनकारी ताकतों को खुला न छोड़े और विभाजनकारी प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित न करे।’’
हांडे ने यह भी कहा था कि यदि आवश्यक हुआ तो उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, जो राज्य की स्वायत्तता की मांग नहीं माने जाने पर देश के विभाजन की धमकी देते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार को इस प्रवृत्ति के प्रति सतर्क रहना चाहिए कि कुछ लोग स्वायत्तता की मांग को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश को उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं।
मुस्लिम लीग के वीएम अब्दुल जब्बार ने ‘‘अब तक सुलझाए नहीं जा सके कावेरी नदी जल विवाद’’ का जिक्र करते हुए आश्चर्य व्यक्त किया था कि क्या ‘सर्वशक्तिमान’ केंद्र सरकार पानी छोड़े जाने की मात्रा निर्धारित नहीं कर सकती; जिसके पास इतनी अधिक शक्तियां हैं।
जब्बार ने कहा था, ‘‘केवल ईश्वर ही जानता है कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक के साथ कावेरी जल विवाद कब सुलझेगा। केंद्र सरकार के रवैये को देखते हुए लगता है कि यह 10 साल बाद भी सुलझ नहीं सकता।’’
उन्होंने उस समय रूस का राज्य रहे यूक्रेन का उदाहरण भी दिया था और कहा था कि संयुक्त राष्ट्र का सदस्य होने के कारण उसे उच्च दर्जा प्राप्त है।
विधायक के कंडास्वामी (फॉरवर्ड ब्लॉक) ने एक अखबार में छपे लेख का हवाला देते हुए कहा था, ‘‘कांग्रेस आलाकमान स्तर पर केंद्र-राज्य संबंधों को सुलझाने का यह तरीका, वर्तमान परिस्थितियों में संभवतः लागू नहीं किया जा सकता, जब कुछ राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें सत्ता में हैं।’’
द्रमुक के वी अरुणाचलम उर्फ अलादी अरुणा ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरेंद्र पाटिल की निराशा को रेखांकित किया था।
अलादी अरुणा के अनुसार, पाटिल ने टिप्पणी की थी, ‘‘यह आशंका है कि इस स्तर पर राज्यों द्वारा अधिक स्वायत्तता की तत्काल मांग की जा सकती है और एक दिन ऐसा आ सकता है, जब दिल्ली में राज्यों के विभिन्न सदनों और भवनों को दूतावासों का स्वरूप ग्रहण करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।’’
इसके अलावा, अरुणा ने कहा था कि ऐसी चीजों का समाधान ढूंढने के लिए ही राजमन्नार समिति ने सिफारिशें की हैं।
करुणानिधि ने प्रस्ताव (राज्य स्वायत्तता : केंद्र-राज्य संबंधों पर राजमन्नार समिति की रिपोर्ट) पेश किया, जिसमें कहा गया, ‘‘राज्य स्वायत्तता पर तमिलनाडु सरकार के विचारों और राजमन्नार समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सदन यह संकल्प लेता है कि विभिन्न भाषाओं, सभ्यता और संस्कृति के लोगों के साथ भारत की अखंडता को सुरक्षित रखने, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और लोगों के साथ निकट संपर्क रखने वाली राज्य सरकार को बिना किसी रोक-टोक के काम करने में सक्षम बनाने तथा पूर्ण राज्य स्वायत्तता के साथ एक वास्तविक संघीय व्यवस्था स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार राज्य स्वायत्तता पर तमिलनाडु सरकार के विचारों और राजमन्नार समिति की सिफारिशों को स्वीकार करे और भारत के संविधान में तत्काल परिवर्तन करने के लिए आगे बढ़े।’’
करुणानिधि ने चर्चा की शुरुआत की थी, जो 16 से 20 अप्रैल 1974 तक चली थी। कुल 37 सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया था। ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम या अन्नाद्रमुक (जिसे उस समय एडीएमके के नाम से जाना जाता था) के सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया था। प्रस्तावित संशोधनों को या तो वापस ले लिया गया या अस्वीकार कर दिया गया था और प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया था।
भाषा धीरज