हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है: न्यायालय
वैभव मनीषा
- 21 Apr 2025, 05:01 PM
- Updated: 05:01 PM
नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई ने न्यायपालिका को हाल में निशाना बनाए जाने का स्पष्ट जिक्र करते हुए सोमवार को कहा कि ‘‘हम पर संसदीय और कार्यपालिका के कार्यों में अतिक्रमण करने का आरोप’’ लगाया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हाल में हुई हिंसा की जांच कराए जाने का अनुरोध करने वाली एक नयी याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति गवई ने यह टिप्पणी की। इस पीठ में न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने एक अन्य मामले में भी इसी तरह की टिप्पणी की।
एक मामला जहां वक्फ कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल में हाल में हुई हिंसा से जुड़ा है तो दूसरी याचिका में केंद्र को ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
ऑनलाइन सामग्री पर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘इस पर कौन नियंत्रण कर सकता है? इस संबंध में नियम तैयार करना केंद्र का काम है।’’
न्यायमूर्ति गवई ने मामले में पक्ष रख रहे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से कहा, ‘‘हमारी आलोचना की जा रही है कि हम कार्यपालिका के कामकाज में, विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं।’’
जैन ने कहा, ‘‘यह बहुत गंभीर मामला है’’। इसके बाद पीठ ने सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध कर दी।
जैन ने 2021 की एक अलग लंबित जनहित याचिका में दाखिल आवेदन का उल्लेख करते हुए विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में हिंसा के मद्देनजर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी। उन्होंने पीठ से अनुरोध किया कि मुख्य याचिका के साथ मंगलवार को इस पर सुनवाई की जाए।
जैन ने कहा कि 2021 की याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है तथा पश्चिम बंगाल में हिंसा की और घटनाओं को सामने लाने वाली नयी याचिका पर भी सुनवाई की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘कल की सूची में मद संख्या 42 पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने से संबंधित है। यह याचिका मैंने दायर की है। उस याचिका में मैंने पश्चिम बंगाल राज्य में हुई हिंसा की कुछ और घटनाओं को सामने लाने संबंधी अभियोग और निर्देश के लिए एक इंटरलोक्यूटरी आवेदन दायर किया है।’’
‘इंटरलोक्यूटरी’ आवेदन एक औपचारिक कानूनी अनुरोध होता है जो अंतरिम आदेश या निर्देश प्राप्त करने के लिए न्यायालय की कार्यवाही के दौरान दायर किया जाता है।
जैन ने कहा कि अर्धसैनिक बल की तैनाती और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 355 का हवाला दिया, जो बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्यों की रक्षा करने के संघ के कर्तव्य से संबंधित है। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत इस बारे में रिपोर्ट मांग सकती है कि राज्य में क्या हो रहा है।
जैन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 2021 की याचिका पर पहले नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा, ‘‘जब मामले पर सुनवाई होगी तो मैं बताऊंगा कि हिंसा कैसे हुई।’’
एक नई याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि 2022 से अप्रैल 2025 तक हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघनों और महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं, खासतौर पर मुर्शिदाबाद में हालिया हिंसा की घटनाओं के मामले में जांच के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति की नियुक्ति की जाए।
आवेदन में केंद्र को यह निर्देश देने की भी मांग की गई है कि पश्चिम बंगाल को अनुच्छेद 355 के तहत आवश्यक निर्देश जारी करने पर विचार किया जाए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने पिछले सप्ताह न्यायपालिका के खिलाफ निंदात्मक टिप्पणियां की थीं।
धनखड़ ने राष्ट्रपति के फैसला करने की समयसीमा तय करने और ‘‘सुपर संसद’’ के रूप में काम को लेकर न्यायपालिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘‘परमाणु मिसाइल’’ नहीं दाग सकता।
इसके कुछ समय बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर उच्चतम न्यायालय को ही कानून बनाना है तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने जुलाई 2021 में जनहित याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस याचिका में केंद्र को राज्य में सशस्त्र/अर्धसैनिक बलों को तैनात करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायालय ने याचिका पर केंद्र, पश्चिम बंगाल और निर्वाचन आयोग को नोटिस भी जारी किया था।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के भांगर इलाके में वक्फ कानून से जुड़ी हिंसा की हालियां घटनाएं 14 अप्रैल को हुईं जबकि पुलिस ने दावा किया था कि पिछले दंगों के केंद्र मुर्शिदाबाद में कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है।
मुर्शिदाबाद जिले के कुछ हिस्सों में 11 और 12 अप्रैल को हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम तीन लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे।
इस बीच, शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने सोमवार को एक याचिकाकर्ता को वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर पश्चिम बंगाल में हिंसा के मामले में अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध वाली याचिका को वापस लेने की अनुमति दे दी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटीश्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता शशांक शेखर झा को याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए उन्हें नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
भाषा वैभव