आदेश के बावजूद सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा न दिया जाना ‘तकलीफदेह’ : न्यायालय
सुरेश रंजन
- 22 Apr 2025, 07:05 PM
- Updated: 07:05 PM
नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मोटर दुर्घटना दावा (एमएसी) न्यायाधिकरणों के आदेश के बावजूद सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिये जाने को "तकलीफदेह" करार दिया है।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मंगलवार को कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत दावा याचिका दायर करते समय घायलों या क्षतिग्रस्त संपत्ति के मालिकों के नाम और पते, उनके आधार और पैन विवरण और ईमेल आईडी प्रस्तुत किए जाने चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि उपरोक्त विवरण प्रस्तुत नहीं किए जाते हैं, तो उस आधार पर आवेदन के पंजीकरण को अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन नोटिस जारी करते समय एमएसीटी याचिकाकर्ताओं को संबंधित जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकते हैं और नोटिस जारी किये जाने को लेकर इसके अनुपालन की शर्त रख सकते हैं।’’
पीठ ने कहा कि मुआवज़ा के अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करते हुए एमएसीटी को मुआवजा पाने के हकदार लोगों को अपने बैंक खाते का विवरण प्रस्तुत करने का आदेश देना चाहिए, साथ ही बैंकर का प्रमाणपत्र जिसमें आईएफएस कोड सहित सभी विवरण प्रस्तुत किए गए हों, या रद्द किए गए चेक की एक प्रति भी प्रस्तुत करनी चाहिए।
इसने कहा कि दावाकर्ताओं को निर्दिष्ट उचित समय के भीतर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
शीर्ष अदालत का यह आदेश एमएसीटी और श्रम न्यायालयों में जमा राशि को स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गयी सुनवाई पर आया है।
पीठ ने कहा कि मुआवज़ा पाने के हकदार व्यक्तियों को बैंक खातों और ईमेल आईडी में परिवर्तन की स्थिति में नयी जानकारी अद्यतन करते रहने के लिए आगे निर्देश जारी किये जाएंगे।
देश में कहा गया है, ‘‘यदि (याचिका की) अनुमति संबंधी आदेश दिया जाता है, तो एमएसी न्यायाधिकरण दावेदारों को जारी किए जाने वाले मुआवज़े की राशि को इसके हकदार व्यक्तियों के बैंक खातों में जमा करने का निर्देश दे सकता है।’’
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सहमति शर्तों में मुआवज़ा पाने के हकदार व्यक्तियों के सभी प्रासंगिक खाता विवरण शामिल होने चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘पक्षों के बीच समझौते के आधार पर राशि के वितरण के लिए पारित आदेश में खाते का विवरण भी शामिल किया जा सकता है।’’
पीठ ने एमएसी न्यायाधिकरणों के न्यायाधीशों को बैंकर द्वारा जारी प्रमाण पत्र से सत्यापित करने और यह पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी कि मुआवजा पाने के हकदार लोग वास्तविक बैंक खाताधारक हैं या नहीं।
शीर्ष अदालत ने आगे एक डैशबोर्ड बनाने का निर्देश दिया, जिसमें 1988 या 1923 के अधिनियमों के तहत दिए गए मुआवजे की जमा राशि की जानकारी होगी, जिसे नियमित रूप से विवरण के साथ अपलोड किया जाएगा।
अदालत ने निर्देश दिया कि सभी उच्च न्यायालयों को एमएसीटी और आयुक्तों को प्रशासनिक निर्देश जारी करने चाहिए ताकि उन लोगों का पता लगाने के लिए व्यापक अभियान शुरू किया जा सके, जिन्हें मुआवजा पाने का हकदार माना गया है, लेकिन उन्होंने मुआवजा नहीं लिया है।
पीठ ने कहा, "राज्य सरकारें स्थानीय पुलिस अधिकारियों/जिला और तालुका के राजस्व अधिकारियों के कानूनी सेवा प्राधिकरणों को उन दावेदारों का पता लगाने में सहायता प्रदान करेंगी जिन्हें मुआवजा पाने का हकदार माना गया है।"
राज्य प्राधिकरण इन दिशानिर्देशों के अनुपालन की निगरानी करेंगे और आज से चार महीने के भीतर अनुपालन रिपोर्ट देंगे।
भाषा सुरेश