डेटिंग ऐप्स से क्यों होता जा रहा है लोगों का मोहभंग
(द कन्वरसेशन) जोहेब नरेश
- 16 May 2025, 01:35 PM
- Updated: 01:35 PM
(आन्ह लुओंग, वार्विक विश्वविद्यालय)
कॉवेंट्री (ब्रिटेन), 16 मई (द कन्वरसेशन) कुछ समय पहले डेटिंग ऐप्स ने लोगों के रोमांटिक पार्टनर से मिलने के तरीके को बदल दिया था। लेकिन ऐसा लगता है कि अब इनकी लोकप्रियता खत्म होती जा रही है।
आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल, ब्रिटेन में चार बड़े डेटिंग ऐप ने अपने लाखों उपयोगकर्ता खो दिए। मेरे साथी और मैंने जो अध्ययन किया है, उससे पता चलता है कि ऐसा इसलिए हुआ है कि लोग इन ऐप से निराश हो चुके हैं और ऊब गए हैं।
यह निराशा आमतौर पर ऐप के दूसरे उपयोगकर्ताओं के अनुचित व्यवहार के कारण होती है। ऐसा लगता है कि यह बोरियत इस बढ़ते विश्वास से उत्पन्न होती है कि इन ऐप्स द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) सार्थक जुड़ाव की तुलना में अल्पकालिक जुड़ाव को प्राथमिकता देती है।
ये डेटिंग ऐप पहले की ऑनलाइन डेटिंग वेबसाइटों की तुलना में काफी अलग हैं, जो प्रामाणिक संबंध स्थापित करने के तरीके के बारे में अधिक पारदर्शी थीं। उन वेबसाइट पर उपयोगकर्ताओं से कई तरह के सवाल पूछकर और उनके व्यक्तित्व का काफी मूल्यांकन करके पारदर्शिता कायम की जाती थी।
उदाहरण के लिए ‘ओके क्यूपिड डॉट कॉम’ (2003 में स्थापित) पर उपयोगकर्ताओं से कई बहु विकल्प प्रश्न पूछे जाते थे। इसके अलावा उनसे उन्हीं प्रश्नों के उत्तर भी पूछे जाते थे, जो प्रश्न वे भावी पार्टनर से पूछना चाहते थे।
इसके विपरीत, आज के डेटिंग ऐप की बहुत कम पारदर्शी एआई पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। एआई पर आधारित डेटिंग ऐप वास्तविक तौर-तरीकों के बजाय झंझटों से मुक्त नियमों (पसंद-नापसंद की संख्या, संदेश भेजने के तरीके और ऐप पर समय बिताने) पर आधारित प्रतीत होते हैं।
इसकी वजह से लोग अक्सर अस्पष्ट, अल्पकालिक संबंध बना पाते हैं और सार्थक संबंध नहीं बन पाते। आज के डेटिंग ऐप्स के बिजनेस मॉडल की वजह से कई उपयोगकर्ताओं के लिए अपनी पसंद का साथी खोजना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस बिजनेस मॉडल के तहत लोगों से कहा जाता है कि अगर वे कुछ भुगतान करते हैं तो उनकी प्रोफाइल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाएगा और वे भी अधिक से अधिक लोगों से संपर्क कर पाएंगे।
इसकी वजह से, कई उपयोगकर्ताओं में असंतोष की भावना उत्पन्न होती है, जिसके चार चरण होते हैं।
असंतोष की इस भावना की शुरुआत बोरियत से होती है। सामान्य बोरियत के कारण कई उपोयगकर्ताओं की बातचीत अक्सर फिजूल और नीरस बातचीत में बदल जाती है। इससे बोरियत बढ़ती है, जो फिर पूरे डेटिंग ऐप नेटवर्क में फैलती और बढ़ती जाती है।
इसके बाद निराशा की सामान्य भावना महसूस होती है, क्योंकि उपयोगकर्ता नियमित "घोस्टिंग" (बिना बताए बातचीत बंद कर देना), "फ्लेकिंग" (अंतिम क्षण में डेट रद्द करना) और इधर-उधर की बातों से थक जाते हैं और वास्तविक रूप से एक-दूसरे को डेट नहीं कर पाते।
इसके बाद शुरू होता है तीसरा चरण, जिसके "एल्गोरिदम संशयवाद" कहा जाता है। इस मोड़ पर आकर उपयोगकर्ता डेटिंग ऐप एल्गोरिदम के प्रति अधिक सशंकित हो जाते हैं, उन्हें संदेह होता है कि अब प्रामाणिक संबंध स्थापित करने के बजाय उनका काम इन ऐप पर फिजूलखर्च करना रह गया है।
अंत में, उबाउपन शुरू हो जाता है। उपयोगकर्ता यह सोचकर बस स्वाइपिंग (पसंद-नापसंद करना) और टेक्स्टिंग (संदेश भेजना) करते रहते हैं कि कोई बेहतर विकल्प तो है नहीं। यह सब कुछ हद तक अनुभवों को और खराब करता है, जिसके बाद अंततः कई लोग प्लेटफ़ॉर्म से पूरी तरह से दूर हो जाते हैं।
‘स्वाइप ऑन, स्वाइप ऑफ’ शोध से यह भी पता चला है कि जब सोशल मीडिया के प्रति शुरुआती उत्साह था तब नई उम्र के लोगों के बीच ऑनलाइन डेटिंग के उपयोग में वृदधि हुई।
सोशल मीडिया उपयोगकर्ता अब गलत सूचना, धोखाधड़ी और आपत्तिजनक कंटेंट के जोखिमों के बारे में अधिक सशंकित (और सतर्क) हो रहे हैं।
इन सबके बावजूद, लोग अभी भी ‘डेटिंग प्लेटफर्म’ के जरिए साथी तलाश करते हैं, फिर चाहे उनका साथ कुछ समय के लिए हो या फिर लंबे वक्त तक के लिए। लिहाजा समस्या शायद डिजिटल डेटिंग के साथ नहीं है, बल्कि इस बात से है कि उद्योग एआई का उपयोग कैसे करता है।
हमारा शोध बताता है कि जैसे-जैसे डेटिंग ऐप उपयोगकर्ता अधिक समझदार होते जा रहे हैं, वे अधिक पारदर्शिता और बेहतर डेटिंग ऐप अनुभव की उम्मीद कर रहे हैं।
उद्योग का भविष्य अंततः इस बात पर निर्भर कर सकता है कि क्या कंपनियां एआई से ध्यान हटाकर प्रामाणिक जुड़ाव को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। और जो प्लेटफॉर्म पारदर्शिता को अपनाते हैं और उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाते हैं, वे कई लोगों को फिर से डेटिंग ऐप से जुड़ने पर मजबूर कर सकते हैं।
(द कन्वरसेशन) जोहेब