माकपा नेता सुधाकरन पर ‘डाक मतपत्र खोलने’ वाली टिप्पणी के लिए प्राथमिकी दर्ज
संतोष नेत्रपाल
- 16 May 2025, 08:27 PM
- Updated: 08:27 PM
अलप्पुझा (केरल), 16 मई (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के वरिष्ठ नेता जी. सुधाकरन के खिलाफ उनकी उस हालिया टिप्पणी को लेकर शुक्रवार को प्राथमिकी दर्ज की गई जिसमें दावा किया गया था कि वर्ष 1989 में अलप्पुझा लोकसभा चुनाव के दौरान डाक मतपत्र खोले गए थे।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।
पुलिस कार्रवाई के बाद माकपा के राज्य सचिवालय ने कहा कि सुधाकरन जैसे कद के लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे क्या बोल रहे हैं।
पार्टी के प्रदेश सचिव एम वी गोविंदन ने शाम को तिरुवनंतपुरम में एक संवाददाता सम्मेलन में यह भी कहा कि माकपा देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बाधित करने वाली किसी भी गतिविधि का हिस्सा नहीं रही और न ही कभी रहेगी।
टीवी चैनलों पर प्रसारित एक कथित वीडियो में सुधाकरन को विवादास्पद टिप्पणी करते हुए सुना जा सकता है। उन्होंने यह कथित टिप्प्णी यहां बुधवार को एनजीओ यूनियन के पूर्व नेताओं की एक सभा में की थी।
उनकी टिप्पणी ने निर्वाचन आयोग को इस मामले की जांच शुरू करने के लिए प्रेरित किया। आयोग के अधिकारियों ने माकपा नेता का बयान बृहस्पतिवार को दर्ज किया था।
इसके बाद, सुधाकरन ने बृहस्पतिवार को यहां एक अन्य कार्यक्रम में दावा किया कि उन्होंने जो पहले कहा था वह पूरी तरह से सच नहीं था और उन्होंने अपनी ‘कल्पना’ से इसमें कुछ अतिरिक्त जोड़ा दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा कभी कुछ भी नहीं हुआ। कोई मतपत्र नहीं खोले गए थे और किसी मतपत्र से कभी छेड़छाड़ नहीं की गई थी। मैंने उस तरह की किसी भी चीज में कभी भी भाग नहीं लिया है। मैंने कभी भी कोई फर्जी मतदान नहीं किया है।’’
सुधाकरन ने कहा, ‘‘मैंने फर्जी मतदान करने के लिए किसी को कभी भुगतान नहीं किया है। मैंने उस दिन जो कहा था, वह केवल इस तरह की गतिविधियों को करने वालों के लिए एक छोटी सी चेतावनी के रूप में था और उन्हें यह बताने के लिए था कि हम इस बारे में जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं।’’
उनके इस दावे के बावजूद पुलिस ने शुक्रवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 128 (मतदान की गोपनीयता बनाए रखना), 135 (मतदान केंद्र से मतपत्रों को हटाना), 135 ए (बूथ कैप्चरिंग) और 136 (जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के तहत अन्य अपराध और जुर्माना), धारा 465 (जालसाजी के लिए सजा), 468 (धोखा देने के लिए जालसाजी) और 471 (जाली दस्तावेज का उपयोग असली के रूप में करने) के तहत मामला दर्ज किया।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत अपराधों की सजा कुछ महीनों से लेकर अधिकतम दो साल तक हो सकती है, जबकि भारतीय दंड संहिता के तहत दो साल से सात साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
प्राथमिकी के अनुसार, जिलाधिकारी द्वारा अलप्पुझा जिला पुलिस प्रमुख को भेजी गई एक रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की गई, जो जिला चुनाव अधिकारी भी हैं।
विवादास्पद वीडियो में, सुधाकरन को यह कहते हुए सुना गया था कि एनजीओ यूनियन के सदस्यों को प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को अपना वोट नहीं देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि एनजीओ के सभी सदस्यों के लिए पार्टी के लिए वोट करना आवश्यक नहीं है, लेकिन जो लोग सील किए गए मतपत्र जमा करते हैं, उन्हें यह नहीं मान लेना चाहिए कि ‘‘हमें इसका पता नहीं चलेगा’’ कि उन्होंने किसे वोट दिया है।
समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित वीडियो में वह कथित तौर पर यह कहते दिखते हैं, ‘‘हम उन्हें खोल देंगे, सत्यापित करेंगे और उन्हें सही करेंगे। भले ही यह कहने के लिए मेरे खिलाफ कोई मामला दायर किया जाए, लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं है।’’
सुधाकरन ने कहा था कि कुछ एनजीओ यूनियन के सदस्यों ने विपक्षी उम्मीदवारों के लिए अपने वोट डाले थे।
उन्होंने कहा कि जब केएसटीए नेता के वी देवदास ने अलप्पुझा से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा, तो डाक समिति के कार्यालय में डाक मतपत्रों को खोलकर उनकी जांच की गई और यह पाया गया कि 15 प्रतिशत ने विरोधी उम्मीदवार के लिए मतदान किया था।
केएसटीए स्कूली शिक्षकों का संगठन है जो माकपा द्वारा समर्थित है।
तिरुवनंतपुरम में शुक्रवार शाम को एक संवाददाता सम्मेलन में गोविंदन ने कहा कि चूंकि सुधाकरन बाद में अपनी पिछली टिप्पणी से पीछे हट गए थे, इसलिए उनके बाद के स्पष्टीकरण वाले बयान को प्राथमिकता दी जाती है।
वीडियो से यह स्पष्ट नहीं हुआ कि 1989 के लोकसभा चुनाव के दौरान अलप्पुझा सीट के लिए हुए चुनाव के दौरान बाद डाक मतपत्रों से छेड़छाड़ उनके या उनके सहयोगियों द्वारा की गई थी या नहीं।
सुधाकरन ने कहा कि देवदास ने उस चुनाव में कांग्रेस के नेता वक्कम पुरुषोथामन के खिलाफ चुनाव लड़ा और 18,000 मतों से हार गए थे।
भाषा संतोष