इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सर्वेक्षण के खिलाफ संभल की जामा मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज की
राजेंद्र राजकुमार
- 19 May 2025, 04:47 PM
- Updated: 04:47 PM
प्रयागराज/संभल, 19 मई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर से जुड़े विवाद में सर्वेक्षण कराने संबंधी संभल की एक अदालत के आदेश के खिलाफ मस्जिद कमेटी की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अधिवक्ता आयोग की नियुक्ति और वाद दोनों ही विचारणीय हैं।
यह निर्णय न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनाया, जिन्होंने मस्जिद कमेटी के वकीलों, मंदिर पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वकील की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मस्जिद कमेटी ने संभल की एक अदालत के आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। संभल की अदालत ने अधिवक्ता आयुक्त के जरिये मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया था।
उच्च न्यायालय ने सोमवार को अपने फैसले में कहा, “मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी की यह दलील कि मस्जिद से जुड़ा विवाद 1877 में निपटा लिया गया, इस चरण में स्वीकार्य नहीं है क्योंकि 1877 का निर्णय एक पुराने भवन की बात करता है जबकि 1920 में जुमा मस्जिद को 1904 के अधिनियम के तहत एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था।”
उच्च न्यायालय ने कहा, “यदि मालिकाना हक के वाद का 1877 में पुनरीक्षण याचिका दायर करने वाले के पक्ष में निर्णय हो गया था तब यह प्रश्न उठता है कि इन्होंने विवादित ढांचे को लेकर 1927 में 1904 के अधिनियम के तहत समझौता क्यों किया था। कथित समझौता याचिकाकर्ता के स्वामित्व का खुलासा नहीं करता और स्पष्ट रूप से कहता है कि इस ढांचे का पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षण किये जाने की जरूरत है।”
एकल पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वयं 1904 के अधिनियम के मुताबिक कथित समझौते का क्रियान्वयन स्वीकारा है, इसलिए वह इस चरण में यह नहीं कह सकता कि यह वाद 1991 के अधिनियम के प्रावधानों से बाधित है।
उच्च न्यायालय ने कहा, “यह ऐसा मामला नहीं है जहां पूजा स्थल का कोई परिवर्तन हो रहा है या पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र बदला जा रहा है। वादी ने 1920 में घोषित संरक्षित स्मारक में केवल प्रवेश का अधिकार मांगा है।”
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा, “मैं पाता हूं कि निचली अदालत ने सीपीसी की धारा 80(2) के तहत नोटिस की अवधि समाप्त होने से पूर्व मुकदमा कायम करने की अनुमति देने में कोई त्रुटि, अनियमितता या अवैधता नहीं की है। मौजूदा वाद प्रथम दृष्टया 1991 के अधिनियम के प्रावधानों से बाधित नहीं है।”
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा,‘‘ इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए मुझे लगता है कि निचली अदालत के 19 नवंबर के आदेश में कोई हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। पुनरीक्षण याचिका खारिज की जाती है और अंतरिम आदेश हटाया जाता है।’’
‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए हिंदू पक्ष के वकील श्री गोपाल शर्मा ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने नियमों के तहत इसे खारिज किया है। हम उच्च न्यायालय के निर्णय का स्वागत करते हैं। संभल के दिवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) का सर्वे का आदेश कानून की सीमा में था और उचित था।’’
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष के वकील शकील अहमद वारसी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश न्यायिक प्रक्रिया के मुताबिक है।
इससे पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संभल की जिला अदालत में लंबित मूल वाद पर सुनवाई पर अगली तिथि तक के लिए रोक लगा दी थी। मूल वाद में हिंदू पक्ष ने संभल के मोहल्ला कोट पूर्वी में स्थित श्री हरिहर मंदिर (कथित जामा मस्जिद) में प्रवेश का अधिकार मांगा है।
इस याचिका में दलील दी गई है कि उक्त वाद 19 नवंबर, 2024 को दोपहर में दायर किया गया और कुछ घंटों के भीतर ही न्यायाधीश ने एक अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति कर उसे मस्जिद का प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दे दिया। यह सर्वेक्षण उसी दिन और फिर 24 नवंबर, 2024 को किया गया। अदालत ने सर्वेक्षण की रिपोर्ट 29 नवंबर को पेश करने का भी निर्देश दिया था।
अधिवक्ता हरिशंकर जैन और सात अन्य लोगों ने संभल के दिवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत में एक वाद दायर कर रखा है, जिसमें उनकी दलील है कि कथित शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण एक मंदिर को ध्वस्त कर किया गया था।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मुगल बादशाह बाबर ने संभल में हरिहर मंदिर को ध्वस्त करने के बाद 1526 में शाही जामा मस्जिद का निर्माण कराया था।
भाषा राजेंद्र